सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली 2 याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया है. (File Photo)
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को कुछ ऐसे लोगों के बयानों के आधार पर बेपटरी नहीं की जानी चाहिए जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हों. इसके साथ ही न्यायालय ने जोर दिया कि सर्वोच्च अदालत सबसे पारदर्शी संस्थानों में से एक है. न्यायपालिका के भीतर विभाजन और न्यायाधीशों द्वारा संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था को लेकर सरकार के साथ बढ़ते विवाद के बीच उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह कुछ पूर्व न्यायाधीशों के बयानों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता जो कभी ‘उच्चतम कॉलेजियम’ के सदस्य थे और अब व्यवस्था के बारे में बोल रहे हैं.
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘इन दिनों कॉलेजियम के समय के फैसलों पर टिप्पणी करना एक फैशन बन गया है, जब पूर्व न्यायाधीश कॉलेजियम का हिस्सा थे. हम उनकी टिप्पणियों पर कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं.’
‘बेपटरी नहीं होना चाहिए मौजूदा कॉलेजियम’
पीठ ने कहा, ‘मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली जो काम कर रही है, बेपटरी नहीं होना चाहिए. कॉलेजियम किसी ऐसे व्यक्ति के आधार पर काम नहीं करता जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हों. कॉलेजियम को अपने कर्तव्यों के अनुसार काम करने दें, हम सबसे पारदर्शी संस्थानों में से एक हैं.’ पीठ आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई है.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें 12 दिसंबर, 2018 को हुई ‘सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम’ की बैठक के एजेंडे की मांग की गई थी, जब उच्चतम न्यायालय में कुछ न्यायाधीशों की पदोन्नति को लेकर कथित रूप से कुछ निर्णय लिए गए थे. भारद्वाज की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमबी लोकुर जो 2018 में कॉलेजियम का हिस्सा थे, ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उस साल 12 दिसंबर को कॉलेजियम की बैठक में लिए गए फैसलों को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए था.
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