नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दिल्ली की आप सरकार को दिए गए उस आदेश पर लगाई गई रोक को हटाने का अनुरोध किया गया था, जिसमें कोविड-19 के दौरान किराया चुकाने में असमर्थ रहे गरीब किरायेदारों का किराया सरकार द्वारा चुकाने के मुख्यमंत्री केजरीवाल के ऐलान पर अमल करने के लिए नीति बनाने के लिए कहा गया था.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता किरायेदार ने पहले ही उच्चतम न्यायालय के समक्ष स्थगन आदेश को चुनौती दी थी, जिसने 28 फरवरी को इसे खारिज कर दिया था. पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत को 27 सितंबर, 2021 को लगाई गई रोक को हटाने का कोई कारण नहीं दिखता.’’ अदालत ने किरायेदार के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि स्थगन आदेश एकतरफा पारित किया गया था और कहा कि आदेश में वकील की उपस्थिति को चिह्नित किया गया था.
मकान मालिकों के खिलाफ एक आदेश पारित करें
जब किरायेदार के वकील ने अदालत से कुछ अंतरिम संरक्षण देने का आग्रह किया, तो पीठ ने कहा, ‘‘आप चाहते हैं कि हम दिल्ली के सभी मकान मालिकों के खिलाफ एक आदेश पारित करें.’’ इस पर वकील ने कहा कि वह केवल इस संबंध में एक नीति तैयार करने के लिए कह रहे थे. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘क्या हम उन्हें नीति बनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं. चुनावी घोषणापत्र में सौ चीजें कही जाती हैं, क्या हम उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर सकते हैं?’’
इस संबंध में एक अधिसूचना जारी करनी होगी
दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि इसी किरायेदार ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और इस तथ्य को अदालत से छुपाया. पीठ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में इसी तरह की याचिका दायर करने के बाद भी रोक हटाने के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन दायर किया. शीर्ष अदालत ने 28 फरवरी को याचिका खारिज करने से पहले केजरीवाल के भाषण का अध्ययन किया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि भाषण के आधार पर वचन बंधन लागू नहीं होगा, कुछ नीति होनी चाहिए, इस संबंध में एक अधिसूचना जारी करनी होगी.
मुख्यमंत्री का वादा लागू करने योग्य है
‘प्रॉमिसरी एस्टॉपेल’ संविदा कानून में एक सिद्धांत है, जो एक व्यक्ति को वादे से मुकरने से रोकता है, भले ही कोई कानूनी अनुबंध मौजूद न हो. शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अस्थायी आदेश था और इसलिए वह इसमें हस्तक्षेप नहीं कर रहा है. पिछले साल 27 सितंबर को उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की अपील पर नोटिस जारी किया था. उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा था कि नागरिकों से किया गया मुख्यमंत्री का वादा लागू करने योग्य है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Aam aadmi party, DELHI HIGH COURT, Delhi news, Delhi news update