नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने सोमवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि जीवन का अर्थ (Meaning Of Life) कोर्ट केस से कहीं अधिक है. उच्च न्यायालय ने एक वैवाहिक मामले में टिप्पणी करते हुए विवाहित जोड़े (Married Couple) से कहा कि आपसी बातचीत से सौहार्दपूर्ण तरीके से मामले का निपटारा कर लें. अदालत ने कहा कि इंसान का जीवन बहुत छोटा है. इसका अर्थ अदालत में मामलों में उलझने से कहीं अधिक है. ऐसे में कोर्ट ने दंपति को वैवाहिक विवाद के लिए मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए कहा.
जानकारी के मुताबिक, जस्टिस नजमी वजीरी याचिकाकर्ता पर्ल अरोड़ा द्वारा अपने पति रोहित अरोड़ा के खिलाफ दायर अवमानना मामले की सुनवाई कर रही थीं. इसी दौरान उन्होंने ये टिप्पणी की. दरअसल, याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी (पति) ने लगभग एक दशक से पत्नी और बच्चे के लिए भरण पोषण के रूप में किसी राशि का भुगतान नहीं किया. और याचिकाकर्ता और उनके बच्चे के भरण पोषण के लिए 31 लाख रुपये से अधिक का बकाया है. दूसरी ओर प्रतिवादी पति ने लगभग 24,63,000/- रुपये का भुगतान करने का दावा किया था.
न कहने का अधिकार है
वहीं, बीते हफ्ते दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक इसी तरह की टिप्पणी की थी, जिसपर पूरे देश में चर्चा हुई थी. उच्च न्यायालय कहा था कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के सम्मान में अंतर नहीं किया जा सकता और कोई महिला विवाहित हो या न हो, उसे असहमति से बनाए जाने वाले यौन संबंध को ‘न’ कहने का अधिकार है.
अलग तरीके से नहीं तौला जा सकता
अदालत ने कहा था कि महत्वपूर्ण बात यह है कि एक महिला, महिला ही होती है और उसे किसी संबंध में अलग तरीके से नहीं तौला जा सकता. उच्च न्यायालय ने कहा, ‘यह कहना कि, अगर किसी महिला के साथ उसका पति जबरन यौन संबंध बनाता है तो वह महिला भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) का सहारा नहीं ले सकती और उसे अन्य फौजदारी या दीवानी कानून का सहारा लेना पड़ेगा, ठीक नहीं है.’
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