दिल्ली. वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट के अनुसार वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में प्रथम दृष्टया सजा मिलनी चाहिए और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की यौन स्वायत्तता, शारीरिक अखंडता और ना कहने के अधिकार से कोई समझौता नहीं हो सकता है. लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि एक पैने दृष्टिकोण के साथ हमें यह भी देखना होगा कि पति की ओर से पत्नी के साथ एक बार बिना इच्छा के बनाए गए यौन संबंध को भी बलात्कार कहा जा सकता है जिसके लिए पति को 10 साल की सजा होगी.
हाई कोर्ट ने को देश में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर विचार करते हुए यह मौखिक टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि हम यहां यह कहने के लिए नहीं हैं कि क्या वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में दंडित किया जाना चाहिए बल्कि हम इस सवाल पर विचार करने के लिए बैठे हैं कि क्या ऐसी स्थिति में व्यक्ति को दुष्कर्म का दोषी ठहराया जाना चाहिए?
वैवाहिक और गैर वैवाहिक संबंध समानांतर नहीं
मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा वैवाहिक और गैर-वैवाहिक संबंध समानांतर नहीं हो सकते हैं. लड़का और लड़की चाहे कितने भी करीबी हों उनमें से किसी को भी एक दूसरे से यौन संबंध की उम्मीद करने का अधिकार नहीं है. लड़का या लड़की दोनों में से कोई भी यौन संबंध बनाने से इनकार कर सकता है.
नहीं होनी चाहिए छूट
हालांकि उन्होंने रेप के लिए दस साल की सजा होने के बाद भी कहा कि वैवाहिक बलात्कार में दी गई छूट को हटाने पर काफी ‘गंभीरता से विचार’ होना चाहिए. उन्होंने कहा कि पति पत्नी को मजबूर नहीं कर सकता है लेकिन अदालत को ये समझना होगा कि इसे समाप्त करने का क्या परिणाम हो सकता है.
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Tags: DELHI HIGH COURT, Marital Rape