दिल्ली हिंसा: कोर्ट ने रूसी उपन्यासकार के लेख का हवाला देकर दो आरोपियों को किया बरी

पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में CAA-NRCके मुद्दे पर दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प और जमकर उपद्रव हुआ था (फाइल फोटो)
एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने सुनवाई के दौरान कहा, 'दोस्तोयेव्स्की ने ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ में कहा है कि सौ खरगोशों से आप घोड़ा नहीं बना सकते और सौ संदेहों से कोई सबूत नहीं बना सकते हैं. लिहाजा आरोपियों को IPC की धारा 307 और आर्म्स एक्ट से बरी किया जाता है'
- News18Hindi
- Last Updated: March 2, 2021, 10:39 PM IST
नई दिल्ली. दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) के मामले में दो लोगों पर लगे हत्या के प्रयास के आरोपों को हटाते हुए दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट (Karkardooma Court) के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की का हवाला दिया. उन्होंने उपन्यासकार द्वारा लिखी गई लाइनों का जिक्र करते हुए कहा, सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, वैसे ही सौ संदेह (शक) से एक सबूत नहीं बना सकते हैं.
अमिताभ रावत हिंसा के दो आरोपियों इमरान अलियास तेली और बाबू की अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे. दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए अभियोजक सलीम अहमद ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि आरोपियों को 25 फरवरी, 2020 को हथियारों से लैस होकर गैरकानूनी समूह का हिस्सा बनने और हिंसा में हिस्सा लेने के लिए आरोपित किया जाना चाहिए. उन्होंने कोर्ट से यह अपील करते हुए कहा कि इन दोनों पर धारा 143, 144, 147, 148, 149, 307 के तहत चार्ज लगाया जाना चाहिए.
मामले में सुनवाई के दौरान जज इस दलील से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का कहना है कि आरोप लगाने वालों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए कुछ सामग्री होनी चाहिए, कुछ सबूत होने चाहिए. केवल शक के आधार पर सबूत को आकार नहीं दिया जा सकता है. चार्जशीट में IPC या आर्म्स एक्ट की धारा 307 के तहत उन्हें आरोपी ठहराने के लिए कुछ भी नहीं दर्शाया गया है. उन्होंने कहा, 'दोस्तोयेव्स्की ने ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ में कहा है कि सौ खरगोशों से आप घोड़ा नहीं बना सकते और सौ संदेहों से कोई सबूत नहीं बना सकते हैं. लिहाजा आरोपियों को IPC की धारा 307 और आर्म्स एक्ट से बरी किया जाता है.'
अमिताभ रावत हिंसा के दो आरोपियों इमरान अलियास तेली और बाबू की अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे. दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए अभियोजक सलीम अहमद ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि आरोपियों को 25 फरवरी, 2020 को हथियारों से लैस होकर गैरकानूनी समूह का हिस्सा बनने और हिंसा में हिस्सा लेने के लिए आरोपित किया जाना चाहिए. उन्होंने कोर्ट से यह अपील करते हुए कहा कि इन दोनों पर धारा 143, 144, 147, 148, 149, 307 के तहत चार्ज लगाया जाना चाहिए.
मामले में सुनवाई के दौरान जज इस दलील से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का कहना है कि आरोप लगाने वालों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए कुछ सामग्री होनी चाहिए, कुछ सबूत होने चाहिए. केवल शक के आधार पर सबूत को आकार नहीं दिया जा सकता है. चार्जशीट में IPC या आर्म्स एक्ट की धारा 307 के तहत उन्हें आरोपी ठहराने के लिए कुछ भी नहीं दर्शाया गया है. उन्होंने कहा, 'दोस्तोयेव्स्की ने ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ में कहा है कि सौ खरगोशों से आप घोड़ा नहीं बना सकते और सौ संदेहों से कोई सबूत नहीं बना सकते हैं. लिहाजा आरोपियों को IPC की धारा 307 और आर्म्स एक्ट से बरी किया जाता है.'