Gujarat assembly election result 2017: एक्जिट पोल के 'चाणक्य' फेल

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सवाल ये है कि क्या कोई एजेंसी सिर्फ पांच हज़ार लोगों से बात करके पूरे राज्य की नब्ज़ टटोल सकती है?
- News18Hindi
- Last Updated: December 18, 2017, 7:11 PM IST
एक बार फिर एक्जिट पोल की साख दांव पर लग गई है. गुजरात चुनाव में ज्यादातर एक्जिट पोल गलत साबित हुए. कुछ एजेंसियां बीजेपी को 135, 124, 110-115 सीट तक मिलने का दावा कर रही थीं. सिर्फ एक एजेंसी का आकलन परिणामों के नज़दीक रहा है. हिमाचल में भी सर्वे सही साबित नहीं हुए हैं.
एग्जिट पोल पहले भी कई बार गलत साबित हुए हैं. इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं. पिछले दिनों सोशल मीडिया में ये बात वायरल हो रही थी कि 'रोज़ाना कोई न कोई सर्वे ज़रूर आता है. लेकिन अब तक कोई सर्वे वाला मुझसे पूछने नहीं आया.' तो क्या ये मान लिया जाए कि ये रायशुमारी फर्ज़ी होती हैं. क्या इसकी उपयोगिता सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स पर बहस के लिए होती है?
एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां दावा करती हैं कि एग्जिट पोल लोगों की राय होते हैं. लेकिन हकीकत ये है कि ये अक्सर सही साबित नहीं होते. यूपी विधानसभा चुनाव की ही बात कर लीजिए. क्या कोई एजेंसी कह रही थी कि बीजेपी को 324 सीटें मिलेंगी? कोई बता रहा था क्या कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटों पर जीत जाएगी. या फिर 2014 में कोई बता रहा था कि बीजेपी की आंधी में कई पार्टियों का खाता तक नहीं खुलेगा.
एक्जिट पोल, क्या बताया और क्या हुआराजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया का मानना है कि 'एग्जिट पोल फर्ज़ी तो नहीं होते, लेकिन इनके सैंपल साइज छोटे होने की वजह से सवाल उठते रहते हैं. सवाल ये कि क्या कोई एजेंसी सिर्फ पांच हज़ार लोगों से बात करके पूरे राज्य की नब्ज़ टटोल सकती है?'
एग्जिट पोल पहले भी कई बार गलत साबित हुए हैं. इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं. पिछले दिनों सोशल मीडिया में ये बात वायरल हो रही थी कि 'रोज़ाना कोई न कोई सर्वे ज़रूर आता है. लेकिन अब तक कोई सर्वे वाला मुझसे पूछने नहीं आया.' तो क्या ये मान लिया जाए कि ये रायशुमारी फर्ज़ी होती हैं. क्या इसकी उपयोगिता सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स पर बहस के लिए होती है?
एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां दावा करती हैं कि एग्जिट पोल लोगों की राय होते हैं. लेकिन हकीकत ये है कि ये अक्सर सही साबित नहीं होते. यूपी विधानसभा चुनाव की ही बात कर लीजिए. क्या कोई एजेंसी कह रही थी कि बीजेपी को 324 सीटें मिलेंगी? कोई बता रहा था क्या कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटों पर जीत जाएगी. या फिर 2014 में कोई बता रहा था कि बीजेपी की आंधी में कई पार्टियों का खाता तक नहीं खुलेगा.

दरअसल भारत का वोटर उतना मुखर नहीं है जितना कि विकसित देशों का वोटर. वो कहीं बीजेपी से डरता है, कहीं कांग्रेस और कहीं एसपी, बीएसपी, आरजेडी से. इसलिए वो सही बात नहीं बताता. इसलिए अब तक एग्जिट पोल अपनी साख नहीं बना पाए.
— आलोक भदौरिया, राजनीतिक विश्लेषक
सीएसडीएस के कई सर्वे में शामिल रहने वाले सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रोफेसर ए के वर्मा मानते हैं कि जनता का मूड जानने के लिए हर वोटर से रायशुमारी और वोटिंग होने तक का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं है.
हम तय कर लेते हैं कि हर आठवें या दसवें वोटर से पूछेंगे. लेकिन ज्यादातर मामलों में ये सैंपलिंग मेथड पूरा नहीं हो पाता. हालांकि बहुत हद तक हम उसके नज़दीक होते हैं. सैंपल के साइज से कुछ नहीं होता. मान लीजिए कि कोई एजेंसी एक-दो तरह के ही 50 हज़ार लोगों से बातचीत कर ली तो क्या परिणाम निकलेगा?

इसके लिए जनगणना की प्रोफाइल से मैच करता हुआ सर्वे होना चाहिए. यानी आपके सर्वे में हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, महिलाएं, दलित, ओबीसी, जनजाति, गांव और शहर हर श्रेणी के मतदाता उसी अनुपात में होने चाहिए, जितने प्रतिशत वो उस राज्य में हैं. इसके लिए सर्वे में शामिल लोगों की सोशल प्रोफाइल बनती है. जिसके सर्वे में इसकी जितनी समानता होगी वो उतना ही सही होगा.
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