नई दिल्ली. गुरुग्राम में पिछले दिनों छह मंजिला इमारत गिरने (Six Storeys Building Collapse) के बाद से ही दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में रहने वाले लोगों को डर सताने लगा है. दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और फरीदाबाद में रहने वाले लोग अब अपने ही इमारतों को संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं. इसका कारण है कि दिल्ली-एनसीआर की इमारतें अब जानलेवा साबित होने लगी है. एमसीडी (MCD) के मुताबिक, दिल्ली के तीनों नगर निगमों में खासकर नॉर्थ और ईस्ट एमसीडी के अंतर्गत आने वाले जोनों में डेंजर बिल्डिंग की भरमार है. बावजूद इसके निगमों की ओर से इस पर कोई ठोस कार्रवाई करने की जरूरत महसूस नहीं की जाती है. हर साल एमसीडी के द्वारा इन बिल्डिंगों का सर्वे जरूर करवाया जाता है, लेकिन जान-माल की रक्षा कैसे हो, इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. नतीजन बवाना जैसी घटनाओं से लोगों की जान चली जाती है.
हाल में घटित दो-तीन घटनाओं ने लोगों के मन में इसको लेकर और डर पैदा कर दिया है. घटिया मटीरियल से लेकर बिल्डरों का रवैया भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है. इसके साथ ही इन मकानों के रखरखाव नहीं होने से भी इस तरह के हादसे हो रहे हैं. दिल्ली में पिछले साल ही मॉनसून से पहले सर्वेक्षण में एमसीडी ने ही नॉर्थ दिल्ली के करीब 700 इमारतों को खतरनाक घोषित किया था. इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरी दिल्ली में कितनी इमारतें खतरनाक होंगी?
बिल्डिंग खतरनाक फिर भी लोग कैसे रहे हैं?
हाल के दो हादसों ने दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लाखों लोगों की नींद छीन ली है. गुरुग्राम के सेक्टर-109 में बीते गुरुवार को एक बिल्डिंग की एक के बाद एक कुल छह मंजिलें धाराशायी हो गईं. छठी मंजिल की छत का हिस्सा गिरने की वजह से उसके नीचे की सभी मंजिलों की छत भरभराकर नीचे आई. इस घटना में दो लोगों की जान चली गई हैं. बता दें कि जिस कंक्रीट की मजबूती के भरोसे लोग अपने मकान या छत को सुरक्षित मानते हैं, वही ढह कर अब मौत का कारण बन रही है.
क्यों हो रहे हैं हादसे?
दिल्ली के बवाना में भी बीते शुक्रवार को राजीव रतन आवास योजना की एक बिल्डिंग अचानक ही भरभरा कर गिर गई. इस हादसे में 4 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दो लोग घायल हुए हैं. दिल्ली सरकार ने जांच के लिए एक कमिटी का गठन कर दिया है. ऐसे में सवाल यह है कि जांच रिपोर्ट आने भर से ही लोगों को न्याय मिल सकेगा?
क्या कहते हैं रहनेवाले
बवाना के इसी राजीव रतन आवास योजना के पास रहने वाले मुकुंद बिहारी कहते हैं, ‘शहरी गरीब लोगों के लिए राजीव रतन योजना की शुरुआत की गई थी. शीला दीक्षित के कार्यकाल में दिल्ली के कई हिस्सों में इस योजना के अंतगर्त मकान बने थे, लेकिन घटिया निर्माण और देख-रेख के अभाव में ये इमारतें अब जानलेवा साबित हो रही हैं. धीरे-धीरे ये इमारतें अब खंडहरों में तब्दील हो रही हैं. इसका कारण है कि सैंकड़ों इमारतें ऐसी हैं, जिसका देखभाल सालों से नहीं हो रहा है.’
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हर साल इस तरह के मकान पर कार्रवाई करने के लिए या मरम्मत करने के लिए मई-जून महीने में नगर निगमों के द्वारा एक मॉनसून पूर्व सर्वेक्षण किया जाता है. अधिकारी इसको लेकर रिपोर्ट सौंपते हैं. ऐसे इमारतों की पहचान कर मरम्मत का काम भी कराया जाता है. हालांकि, ज्यादातर मॉनसून के दौरान ही जर्जर बिल्डिंग्स के गिरने की खबरें आती हैं, लेकिन इस बार तो मॉनसून के कई महीने बीत जाने के बाद बिल्डिंग गिरने की खबरें आ रही हैं.
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