इस तरह हो रही कश्मीरी पंडितों को उनकी भाषा, संस्कृति से जोड़ने की कोशिश!

रेडियो स्टेशन में कश्मीरी कार्यक्रम में चर्चा करती हुईं महिलाएं (File Photo)
दावा: आर्टिकल 370 (Article 370) हटाए जाने के बाद अपने घर से दूर रहने वाले कई कश्मीरियों (Kashmiri) ने घाटी में सगे संबंधियों के बारे में रेडियो स्टेशन से संपर्क किया था!
- News18Hindi
- Last Updated: September 12, 2019, 4:18 PM IST
नई दिल्ली. आर्टिकल 370 (Article 370) में संशोधन के बाद कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits) और उनका विस्थापन फिर से चर्चा में आ गए थे. घाटी से पलायन के बाद लाखों पंडित जम्मू सहित देश के विभिन्न हिस्सों में बसे हुए हैं. इनकी भाषा और संस्कृति को नई पीढ़ी में संजोए रखने के लिए जम्मू (Jammu) से एक कोशिश जारी है. यह कोशिश कम्युनिटी रेडियो (Community Radio) के जरिए हो रही है. रेडियो शारदा अपने कार्यक्रमों के जरिए विस्थापितों को उनकी जड़ों से जोड़े रखने की कोशिश कर रहा है. ताकि कश्मीरी पंडितों के विस्थापन से कहीं उनकी संस्कृति और भाषा न खत्म हो जाए.
इसके संस्थापक रोमेश हंगलू का दावा है कि 370 हटाए जाने के बाद अपने घर से दूर रहने वाले कई कश्मीरियों ने घाटी में सगे संबंधियों के बारे में रेडियो स्टेशन से संपर्क किया था. दावा है कि इंटरनेट पर सौ से ज्यादा देशों में कश्मीरी पंडित इसे सुन रहे हैं. यहां पर श्रोताओं की सबसे बड़ी संख्या और कश्मीरी संस्कृति के संरक्षण के लिए शुरू किए गए कार्यक्रम को लेकर हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इसके संस्थापक रोमेश हंगलू को राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया.
हंगलू ने बताया कि 2011 में इसकी शुरुआत पीर पंजाल नामक एक गैर सरकारी संगठन ने जम्मू से की थी. इसकी रीच रतनी है कि इसे 10 में से 9 परिवार सुनते हैं. नंबर रीच का भी सम्मान मिला है. अब यह कश्मीरी पंडितों के दुख-दर्द की आवाज बन गया है. पीर पंजाल संगठन को कुछ कश्मीरी पंडितों ने मिलकर बनाया हुआ है, ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान का जो संकट है वो खत्म हो.
जम्मू में इसे 90.4 फ्रीक्वेंसी पर सुना जा सकता है. इसका दायरा 20 किलोमीटर है लेकिन इंटरनेट के जरिए इसका आनंद 104 देशों में लिया जा रहा है. रेडियो के माध्यम से लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं उठाई जा रही हैं. इसका ‘वांगूजवोर’ नामक कार्यक्रम काफी फेमस है. जिसका अर्थ है घर खोकर सड़क पर रहना. हंगलू कहते हैं कि इसके जरिए हमने कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का दर्द लोगों के सामने रखा और उनके हितों की बात शुरू की. अपनी संस्कृति और समाज से जुड़े मसलों पर वार्ता शुरू की.
हंगलू ने बताया कि फोकस भले ही कश्मीरी पर है लेकिन हमने पंजाबी और डोगरी भाषा में भी कार्यक्रम शुरू किए हैं. ताकि अन्य वर्गों के लोगों को भी जोड़ा जा सके. 2014 में जब कश्मीर में बाढ़ आई थी तब लोगों तक सूचना पहुंचाने का कम्युनिटी रेडियो बड़ा माध्यम बना था.
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इसके संस्थापक रोमेश हंगलू का दावा है कि 370 हटाए जाने के बाद अपने घर से दूर रहने वाले कई कश्मीरियों ने घाटी में सगे संबंधियों के बारे में रेडियो स्टेशन से संपर्क किया था. दावा है कि इंटरनेट पर सौ से ज्यादा देशों में कश्मीरी पंडित इसे सुन रहे हैं. यहां पर श्रोताओं की सबसे बड़ी संख्या और कश्मीरी संस्कृति के संरक्षण के लिए शुरू किए गए कार्यक्रम को लेकर हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इसके संस्थापक रोमेश हंगलू को राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया.
हंगलू ने बताया कि 2011 में इसकी शुरुआत पीर पंजाल नामक एक गैर सरकारी संगठन ने जम्मू से की थी. इसकी रीच रतनी है कि इसे 10 में से 9 परिवार सुनते हैं. नंबर रीच का भी सम्मान मिला है. अब यह कश्मीरी पंडितों के दुख-दर्द की आवाज बन गया है. पीर पंजाल संगठन को कुछ कश्मीरी पंडितों ने मिलकर बनाया हुआ है, ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान का जो संकट है वो खत्म हो.

रोमेश हंगलू को सम्मानित करते केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर (File Photo)
हंगलू ने बताया कि फोकस भले ही कश्मीरी पर है लेकिन हमने पंजाबी और डोगरी भाषा में भी कार्यक्रम शुरू किए हैं. ताकि अन्य वर्गों के लोगों को भी जोड़ा जा सके. 2014 में जब कश्मीर में बाढ़ आई थी तब लोगों तक सूचना पहुंचाने का कम्युनिटी रेडियो बड़ा माध्यम बना था.
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