रेल यात्री एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करते हैं. कभी ये यात्रा एक ही जिले तक होती है तो कभी दूसरे राज्यों तक की. कभी कुछ किमी की होती है तो कभी हजारों किमी की भी होती है. हर तबके के लोग रेल की सवारी करते. कोई किसी कार्यक्रम में जा रहा होता है तो कोई कॉलेज. कोई दफ्तर-बिजनेस करने तो कोई किसी का इलाज कराने. कोई त्योहार में घर लौट रहा होता तो कोई गमी में शामिल होने जा रहा है. ट्रेन यात्रियों में आपको सब कुछ दिख जाएगा. उन्हें बहुत-सी सहूलियत भी मिलती हैं तो कई बार परेशानी भी झेलनी पड़ती हैं. लेकिन, अब एक शख्स ने अपनी मेहनत से रेल यात्रियों को अतिरिक्त सुविधा देने की मुहिम छेड़ रखी है. वह सुविधा है यात्रियों का छूटा या खोया सामान उन तक पहुंचाने की. शख्स का नाम राकेश शर्मा है.
56 साल के राकेश शर्मा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के स्टेशन प्रबंधक हैं. न्यूज 18 से बात करते हुए वह कहते हैं, “24 साल की उम्र में नौकरी लग गई थी. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 1998 से कार्यरत हूं. तकनीक को अपने सामने बदलते देख रहा हूं. ऐसे यात्रियों को भी देखा है जो सामान खो जाने या छूट जाने पर बिलखते हैं. रेलवे के स्टाफ को कोई छूटा या खोया सामान मिलता है तो वे लॉस्ट प्रॉपर्टी ऑफिस में जमा करा देते हैं और अगर यात्री पहुंचा तो उसे मिल जाता है. कई बार सामान को ले जाने कोई नहीं आ पाता क्योंकि उन्हें जानकारी ही नहीं हो पाती है.”
राकेश शर्मा कहते हैं, “मैं हमेशा कोशिश करता रहा हूं कि अगर किसी यात्री का सामान मिले तो वह उस तक पहुंच जाए. लेकिन, अप्रैल 2016 से मैंने इसके लिए ऑफिस के काम से इतर प्रयास शुरू कर दिया. मैंने अब तक करीब 468 यात्रियों के छूटे या खोए हुए सामान उन तक पहुंचवाए हैं. ये क्रम लगातार जारी है और लगातार इसे बेहतर तरीके से करने की कोशिश कर रहा हूं.”
किस तरह करते हैं काम
वह कहते हैं, “रेलवे स्टाफ को किसी यात्री का सामान मिलता है तो वह एलपीए ऑफिस में जमा करवा देते हैं. लेकिन,अब जब भी कोई कुली, कैटरिंग स्टाफ या दूसरा स्टाफ किसी के सामान को लेकर आता है तो मैं इस कोशिश में लग जाता हूं कि वह सामान यात्री तक पहुंच जाए. इसके लिए मैं सबसे पहले कोशिश करता हूं कि यात्री का बर्थ नंबर मिल जाए. बर्थ नंबर मिलने पर मैं उसके जरिए उसका फोन नंबर, या एजेंट के फोन नंबर के जरिए उनके फोन नंबर तक पहुंच जाता हूं. फिर उन तक सामान पहुंचवाने में मदद करता हूं.”
राकेश शर्मा कहते हैं, “कई बार बर्थ कोच की जानकारी नहीं होती है तो आधार कार्ड, पैन कार्ड जो भी मिल जाए उसके जरिए यात्री तक पहुंचने की कोशिश होती है. बस कोई क्लू खोजते हैं, जिससे यात्री की पहचान हो सके और उसके बाद उससे संपर्क करते हैं.” वह कहते हैं, “रेलवे का स्टाफ सामान लाता है तो मैं उनसे सबसे पहले पूछता हूं कि बर्थ नंबर क्या था. बर्थ नंबर मिलने पर मैं उसके जरिए फोन नंबर निकाल लेता हूं और फोन करता हूं. मान लीजिए उस आदमी का सामान नहीं है तो उसकी आसपास के बर्थ नंबर से उन यात्रियों को ट्रैक करके नंबर निकाल लेता हूं और सही आदमी तक पहुंच जाता हूं. इससे उनका सामान उन तक पहुंच जाता है.”
सामान पाने वाले खुश होते हैं तो संतुष्टि मिलती है
वह कहते हैं, “मैं किसी को भी सामान हैंड ओवर करता हूं तो उससे उसका आईडी प्रूफ ले लेता हूं. उसका एड्रेस और कॉन्टेक्ट डिटेल भी ले लेता हूं. यह काम अप्रैल 2016 से कर रहा हूं. इससे पूरा एक डेटाबेस है. गलती होने की संभावना नहीं है और अगर गलती हुई तो फिर से जिस आदमी को सामान दिया है उस तक पहुंचना आसान है. हालांकि, अभी तक ऐसी गलती कभी नहीं हुई है.”
राकेश शर्मा कहते हैं, “किसी यात्री का एक रुपये का सामान हो या एक करोड़ का. उसे वापस मिल जाता है तो वह खुश हो जाता है. कुछ पैसेंजर्स के पेरेंट्स का ऐसा सामान छूट जाता है जो उनके दिल के बहुत करीब होता है. कुछ के पेरेंट्स की यादें छूट जाती हैं. ऐसे में ये सब उन्हें मिलता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं होता है. उसे वे व्यक्त नहीं पाते हैं. इसे देखकर मुझे भी संतुष्टि होती है कि ऑफिस के काम के इतर भी मैं कुछ काम कर रहा हूं, जिससे लोगों को मदद पहुंच मिल रही है.”
मुहिम है कि रेलवे में किसी का सामान न खोए
राकेश शर्मा मूलरूप से पंजाब के गुरुदासपुर के रहने वाले हैं. लेकिन, उनकी पढ़ाई-लिखाई अमृतसर में हुई है. दिल्ली में वह पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं. वह कहते हैं, “मेरी चाहत है कि रेलवे में किसी भी स्टाफ के पास कोई सामान आए तो वह यात्री को खोजकर उस तक पहुंचा दे. उसे मेरी कोई भी मदद चाहिए तो मैं देने के लिए तैयार हूं. मैं देता रहता हूं. मेरी मुहिम है कि रेलवे में किसी का सामान न खोए. ये सिर्फ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए नहीं है. पूरे देश के हर रेलवे स्टेशन के लिए है. वे अपने यहां इस तरह की कोशिश करें.”
वह कहते हैं, “मेरा काम मेरे अकेले का काम नहीं है. ये पूरा टीम वर्क है. इसमें सफाईकर्मी से लेकर ऊपर के अधिकारी तक शामिल हैं. सबका सपोर्ट जिस तरह से मिलता है उसी से हम यात्रियों की बेहतर से बेहतर सेवा कर पाते हैं.”
शताब्दी में छूट गया बैग, जिसमें था पासपोर्ट-वीजा
वह सोमवार की ही एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं, “एक पैसेंजर अमृतसर शताब्दी में सी-1 कोच में 33-34 सीट नंबर पर आ रहे थे. उन्हें नई दिल्ली रेलवे स्टेशन उतरकर एयरपोर्ट जाना था, जहां से उन्हें ऑस्ट्रेलिया के लिए फ्लाइट पकड़नी थी. लेकिन, उनका हैंडबैग कोच में ही छूट गया. उसी बैग में उनका पासपोर्ट-वीजा था. मेरे पास वो बैग आया तो मैंने चेक किया. उसमें कोई मोबाइल नंबर नहीं मिला. टिकट में जो मोबाइल नंबर था वह एजेंट का था. फिर मुझे उनकी बिटिया का नंबर मिला जो ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं. मैंने उन्हें कॉल किया और उनके पेरेंट्स का नंबर लिया. उन्हें फोन करके अपने पास बुलाया. और उनका पासपोर्ट वीजा हैंडओवर कर दिया.”
एक यात्री की प्रतिक्रिया- मैं किस मुश्किल से निकला हूं
अश्विनी कुमार कहते हैं, “मैं अमृतसर का हूं. ऑस्ट्रेलिया जाना है. दिल्ली तक ट्रेन से आया हूं और रात में फ्लाइट है. लेकिन, मेरा हैंडबैग ट्रेन में ही छूट गया था. काफी खोजा मिला नहीं. उसी में मेरा वीजा-पासपोर्ट और दूसरे जरूरी डॉक्यूमेंट्स थे. लेकिन, इसी बीच एक कॉल आया और उन्होंने बताया कि आपका बैग मेरे ऑफिस में है. मैं फटाफट उन तक पहुंचा. वहां राकेश शर्मा जी मिले. उन्होंने ही कॉल किया था. आप समझ लो उनके प्रयास से मैं किस मुश्किल से निकला हूं आपको बता नहीं सकता. उनके जैसे ऑफिसर्स हर रेलवे स्टेशन पर हों तो रेलवे की यात्रा और बेहतर हो जाएगी.”
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