कुतुबमीनार का मुकुट लगभग 174 साल से पार्क में रखा हुआ है.
दिल्ली. जब भी दिल्ली के पर्यटन स्थलों की बात होती है कुतुबमीनार का नाम जरूर सामने आता है. या यूं कहें कि यदि दिल्ली में कुतुबमीनार नहीं देखी तो आपकी यात्रा कुछ अधूरी रह जाएगी. कई सालों से लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही कुतुबमीनार के मुकुट को सुधारने काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने शुरू किया है. दरअसल कुतुबमीनार का मुकुट लगभग 174 साल से पार्क में रखा हुआ है. सर्वेक्षण के दौरान इसके पत्थरों में कुछ खराबी पाई गई थी. ऐसे में अब खराब पत्थरों को बदलकर नए पत्थर लगाए जाएंगे. इसके साथ की कुतुबमीनार की छतरी के संरक्षण का काम भी शुरू हो गया है.
गौरतलब है कि कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 ई. में शुरू करवाया गया था. लेकिन कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिर्फ पहली मंजिल तक इसे बनवाया था. उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने बाद में इसकी तीन मंजिलें बनवाई थीं. बाद में फिरोजशाह तुगलक के काल में कुतुबमीनार के ऊपर दो मंजिल और बनवाई गई थी. बाद में बनीं इन दोनों मंजिलों का निर्माण तुगलक संगमरमर से करवाया था. बता दें कि कुतुबमीनार में पहली से चौथी मंजिल तक बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ था. हालांकि, फिरोजशाह तुगलक की बनवाई दोनों मंजिलों में से ऊपरी मंजिल 1368 ई. में नष्ट हो गई थी.
यह मीनार दो बार 1326 ई. तथा 1368 ई. में कुछ हद तक नष्ट हुई थी क्योंकि इस मीनार के ऊपर नागरी और फारसी उत्कीर्ण लेख है. पहला नुकसान मुहम्मद तुगलक के 1325-51 ई. के शासन के दौरान हुआ था. इसे 1332 ई. में तुगलक ने ठीक कराया था. दूसरी बार नुकसान फिरोजशाह तुगलक के 1351-88 ई. के शासन के दौरान हुआ था.
छतरी भी है खास
छतरी की बात करें तो एएसआई के अनुसार भूकंप के कारण यह छतरी टूटकर गिर गई थी. हालांकि यह कब और किस भूकंप में गिरी इसकी क्लियर जानकारी नहीं है. ऐसे में यह कुतुबमीनार जितनी ही महत्वपूर्ण है. इसे 1802 ई. में मेजर स्मिथ ने नई छतरी बनवाकर बदला था. लेकिन यह छतरी बेमेल दिखती थी इसलिए 1848 ई. में इसे नीचे उतार लिया गया था. तभी से यह कुतुबमीनार के पास पार्क में ही रखी हुई है. हालांकि सभी पर्यटकों को इसके बारे में पता नहीं है, जिन्हें इसके बारे में जानकारी है वही इसे पास से आकर देखते हैं. बता दें कि 50 साल में यह पहली बार है, जब करीब 10 फीट ऊंची छतरी का बड़े स्तर पर संरक्षण कार्य शुरू हुआ है. इस छतरी के बारे में ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को पता लग सके इसलिए छतरी के पास एक बोर्ड लगाया जाएगा, जिस पर इसका इतिहास लिखा जाएगा.
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