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सूरज की रोशनी से स्वराज लाने का सपना! ये हैं सोलर मैन ऑफ इंडिया प्रो. चेतन सिंह सोलंकी

सोलर सस्ता है या महंगा इसका सवाल भी आता है...? प्रोफेसर चेतन सोलंकी कहते हैं कि आज की जो परिस्थिति है, उसमें सस्ते और महंगे का सवाल है ही नहीं, सवाल अस्तित्व का है. (News18 Plus)

सोलर सस्ता है या महंगा इसका सवाल भी आता है...? प्रोफेसर चेतन सोलंकी कहते हैं कि आज की जो परिस्थिति है, उसमें सस्ते और महंगे का सवाल है ही नहीं, सवाल अस्तित्व का है. (News18 Plus)

Solar Man of India: महात्मा गांधी से प्रेरित होकर देश में एनर्जी स्वराज की अलख जगाने निकले हैं आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेस ...अधिक पढ़ें

नई दिल्ली. दीवार पर बाबा महाकाल की तस्वीर और उसके बराबर में इंडिया ग्रीन एनर्जी अवार्ड का प्रमाणपत्र चस्पा है. ये दीवार एनर्जी स्वराज फाउंडेशन की बस की है, जहां पर आईआईटी बॉम्बे (मुंबई) के प्रोफेसर और वैज्ञानिक चेतन सिंह सोलंकी बैठते हैं. वही प्रोफेसर जिन्होंने सौर ऊर्जा को लेकर देश भर में एक जनआंदोलन छेड़ रखा है. उसका नाम है ”एनर्जी स्वराज”. इसके जरिये प्रोफेसर जलवायु परिवर्तन से धरती के बढ़ते तापमान और उससे होने वाले खतरों के प्रति लोगों को आगाह करते हैं.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरित होकर एनर्जी स्वराज की अलख जगा रहे प्रोफेसर सोलंकी ने 11 साल के लिए अपना घर-बार सब छोड़ दिया है और वह इस आंदोलन को लोगों के अस्तित्व की लड़ाई बताते हैं. वह कहते हैं, “ये पॉलिसी नहीं, प्रोजेक्ट नहीं, स्कीम नहीं, बल्कि जन आंदोलन है. सब उसमें भागीदारी करें. इसलिए करें कि अपने बच्चों के लिए जीने लायक धरती छोड़कर जाएं. अस्तित्व का केंद्र सौर ऊर्जा है और इस केंद्र पर हमें फिर से स्थापित होना होगा.”

विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर न्यूज18 हिंदी के साथ प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने अपने मिशन पर विस्तार से बात की. आप भी पढ़ें इस बातचीत के प्रमुख हिस्से…

ताकि बच्चों के लिए जीने लायक धरती छोड़ जाएं…

एनर्जी स्वराज का आइडिया कहां से और कैसे आया? प्रोफेसर चेतन सोलंकी कहते हैं…, पर्यावरण बदल चुका है, हम सब इसे फील कर सकते हैं. उसका कारण हम सब हैं. क्योंकि हम एनर्जी का उपयोग करते हैं. जब भी हम ये करते हैं उससे 85 फीसदी एनर्जी का स्रोत कार्बन है, कोयला, डीजल, पेट्रोल और गैस है, तो जो भी हमारी दिन भर की गतिविधि होती है, उससे कार्बन उत्सर्जन होता है. ये मात्र सरकारों के प्रयासों से ठीक नहीं किया जा सकता है. चाहे जितनी भी पावरफुल सरकार हो. हमने बिगाड़ा है तो हमें ही ठीक करना होगा. इसलिए ये पॉलिसी नहीं, प्रोजेक्ट नहीं, स्कीम नहीं, बल्कि एक जनआंदोलन है, सब उसमें भागीदारी करें और इसलिए करें कि बच्चों के लिए जीने लायक धरती को छोड़कर जाएं.

प्रोफेसर सोलंकी कहते हैं…, इसी धारणा के साथ इस जनआंदोलन की कल्पना की गई. उसके लिए 11 साल की एनर्जी स्वराज की यात्रा पर निकला हूं. बिना घर गए. घर नहीं जाने का संकल्प इसलिए है, ताकि हम लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचें. उन्हें क्लाइमेट की स्थिति से अवगत कराएं कि बहुत गंभीर है और अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति में पहले से ही पहुंच चुके हैं. सब इससे जुड़ें और सब मिलकर इसमें योगदान करें.

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जलवायु परिवर्तन के लिए हर व्यक्ति घर छोड़ सकता है…

11 साल के लिए घर और ‘दूसरा घर’ आईआईटी मुंबई छोड़कर पूरे देश में भ्रमण करने का फैसला, ये कितना कठिन रहा? प्रो. सोलंकी बताते हैं, बिल्कुल भी कठिन नहीं रहा. मैं हमेशा उदारहण देता हूं कि अगर आपके पीछे तेंदुआ खड़ा हो तो भागने के लिए कोई मोटिवेशन नहीं चाहिए. यदि आपको ये समझ है कि जलवायु परिवर्तन इतना गंभीर मसला कि तो फिर से इसमें मोटिवेशन की क्या जरूरत. मैं मानता हूं कि व्यक्ति इस गंभीरता को समझ जाए तो हर व्यक्ति 11 साल के लिए घर छोड़ सकता है.

शहर से दूर होकर पता चला इसे स्वराज के रूप में अपनाना होगा…

एनर्जी स्वराज से पहले एक सोलर मॉडल लेकर आए, रिमोट एरिया में काम किया…, कितना फायदा मिला? प्रोफेसर चेतन सोलंकी कहते हैं… सौर ऊर्जा की 100 फीसदी जरूरत है. हमें 100 फीसदी जीवन सोलर एनर्जी से चलाना होगा. उसका कोई विकल्प नहीं है. जैसे कैंसर हो जाता है तो उसका इलाज करने के लिए उस सेल को हटाना पड़ता है. उसी तरह से जलवायु परिवर्तन हो चुका है, उसका कारण है कार्बन उत्सर्जन. इसलिए हमें कोयला, डीजल, पेट्रोल और गैस को बंद करना होगा. फिर हमारी ऊर्जा की जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी करेंगे.

मैं लोगों से पूछता हूं कि हम सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं? लोग हाथ नहीं उठाते हैं, फिर मैं उन्हें बताता हूं कि हम खाना नहीं खाते क्या, पानी नहीं पीते हैं क्या, सांस नहीं लेते हैं क्या? भोजन, हवा और पानी, ये सब सोलर ऊर्जा के कारण है तो हमारा तो अस्तित्व ही यही है. हम सोलर एनर्जी के कारण ही जी पाते हैं. अगर हमारी लाइट, पंखा, टीवी, खाना, गाड़ी ये सब सोलर से चले तो कौन सी बड़ी बात है. इसलिए मैं कहता हूं कि इसका कोई विकल्प नहीं है. सोलर ऊर्जा हमारे अस्तित्व का केंद्र है और हमें फिर से उसी केंद्र पर स्थापित होना पड़ेगा.

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सबसे बड़ा सवाल- 100-200 साल बाद मनुष्य का जीवन धरती पर रहेगा कि नहीं?

यदि ऐसा नहीं किया तो मुझे लगता है कि आज से 100-200 साल बाद मनुष्य का जीवन धरती पर रहेगा कि नहीं ये बहुत बड़ा सवाल है? जो मैंने प्रयोग किए हैं, गांवों में सोलर ऊर्जा पर, जिससे लोगों तक सोलर लैंप पहुंचा, उससे बाकी लोगों के जीवन में फर्क पड़ा है, लेकिन उससे ज्यादा मुझे फर्क पड़ा है. क्योंकि उससे ये सीखने को मिला कि सोलर ऊर्जा को अपनाना स्वराज के रूप में आना चाहिए, जो मेरा मुख्य मिशन है. लोग एनर्जी में आत्मनिर्भर बनें, जलवायु परिवर्तन हुआ तो मिट्टी, पानी और हवा की हालत खराब है. ये एनर्जी के उपयोग से खेल बिगड़ा है. हिंसा बढ़ी है, ये भी एनर्जी की वजह से हुआ है.

अगर सच में हमें इन समस्याओं को खत्म करना है तो हमें सोलर एनर्जी को 100 फीसदी अपनाना होगा. ऊर्जा स्वराज के रूप में, हर व्यक्ति को इसमें आत्मनिर्भर बनेगा और देश आत्मनिर्भर बनेगा , तब जाकर एक शक्तिशाली देश बना सकते हैं. अभी देखिए यही हो रहा है कि दुनिया में कहीं भी युद्ध होते हैं तो हमारे यहां पर सब्जी भाजी के भाव बढ़ जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 15 अगस्त को लाल किले से कहा था कि भारत जब तक ऊर्जा में आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है, तब तक सही मायने में आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है.

सरकारों का अच्छा सहयोग मिला, लेकिन जनता को जुड़ना होगा…

इस मिशन में आपको सरकारों का कितना सहयोग मिल पा रहा है…? प्रो. सोलंकी कहते हैं, ‘जब मैंने सोलर लैंप बनाए तो केंद्र सरकार ने मदद की, फिर जब एनर्जी स्वराज लेकर निकला तो मध्य प्रदेश सरकार का सहयोग मिला. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मुझे प्रदेश का ब्रांड एम्बेसडर बनाया. ये भी सपोर्ट ही है.’ लेकिन हमें इससे इतर हमें ये समझना होगा कि हम सुबह उठकर टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं तो क्लाइमेट चेंज में भागीदार बनते हैं…, और ऐसा हर व्यक्ति करता है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन मात्र सरकारों के प्रयास से नहीं हो सकता है. चाहे कितनी भी पावरफुल सरकार हो, लेकिन मात्र सरकारों से यह ठीक नहीं कर सकता है, लेकिन इसमें हर व्यक्ति को जूझना होगा. क्योंकि हम सब बिगाड़ रहे हैं.

सरकारों की मदद जरूरी है, उनकी पॉलिसी जरूरी है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है, वह तभी ठीक होगा, जब हम लोग सरकार के साथ मिलकर, अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य समझकर इसे ठीक करें, तभी ये बदलाव आ सकता है. इसलिए मैं कहता हूं कि बिना जनआंदोलन के ये काम हो ही नहीं सकता है. हर व्यक्ति को आर्थिक मापदंड से ऊपर उठकर हमें इसे अपनाना होगा.

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ये सस्ते और महंगे का नहीं, इंसान के अस्तित्व का सवाल है…

सोलर सस्ता है या महंगा इसका सवाल भी आता है…? प्रोफेसर चेतन सोलंकी कहते हैं कि आज की जो परिस्थिति है, उसमें सस्ते और महंगे का सवाल है ही नहीं, सवाल अस्तित्व का है. फिर सस्ता-महंगा कहां होता है. दूसरा मैं कहता हूं कि लोग इस आधार पर कोई चीज नहीं खरीदते हैं, सोना 50 हजार 10 ग्राम होता है, लेकिन उसे खरीदते हैं. कार 5-10 लाख रुपये की होती है फिर क्यों खरीदते हैं? तो हम जीवन में सस्ते महंगे के कारण चीजें नहीं खरीदते हैं, हम प्राथमिकताओं के आधार पर चीजें खरीदते हैं. इसलिए सोलर ऊर्जा को अपनाना सस्ते और महंगे का सवाल नहीं है. इसे अपनाना हमारे जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. फिर भी आर्थिक दृष्टि से बहुत सस्ता है. मैं सोलर वैज्ञानिक हूं और मैंने 20 साल रिसर्च किया है तो जब हम रिसर्च कर रहे थे तो ये सोच भी नहीं सकते थे कि इतना सस्ता हो सकता है. ये मेरी कल्पना से परे सस्ता है.

फिर भी मैं हाथ जोड़कर सभी से प्रार्थना करता हूं कि वह सस्ता महंगा करके सोलर ऊर्जा को यदि अपनाएंगे तो हो सकता है कि मनुष्य का जीवन बना रहे. यह हमारे अस्तित्व का केंद्र है, तभी हमारा जीवन सरल और स्वस्थ हो जाएगा. क्योंकि कहीं मनुष्य भी वैसा न हो जाए एक जमाने में डायनासोर क्लाइमेट चेंज होने के कारण वह खत्म हो गए. वैसे ही कहा जाए कि कभी मनुष्य था, उसका अस्तित्व भी खत्म हो गया. मैं कहता हूं कि कम से कम अपने बच्चों के लिए भगवान के लिए पर्यावरण को जीने लायक छोड़ दो.

क्या है सोलर मैन ऑफ इंडिया का एनर्जी स्वराज…

लक्ष्य है 11 साल में एक करोड़ घरों में सौर ऊर्जा से खुद की बिजली बनाना. भारत के ‘सोलर मैन’ के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके नेमित गांव के 45 वर्षीय प्रोफेसर चेतन सोलंकी 11 सालों तक भारत सहित 50 देशों की यात्रा करेंगे. सोलंकी ने गांधी के आदर्शों का पालन करते हुए इसे ‘ऊर्जा स्वराज’ नाम दिया है. ऊर्जा स्वराज आंदोलन, लोगों तक ऊर्जा पहुंच, ऊर्जा स्थिरता आवश्यकता और जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण जनांदोलन के रूप में कार्य कर रही है. यह ऊर्जा स्वराज यात्रा 26 नवंबर 2020 से शुरू होकर दिसंबर 2030 तक, जो कि लगभग 11 साल चलेगी, ताकि ऊर्जा स्वराज को एक सार्वजनिक आंदोलन बनाया जा सके, लोग ऊर्जा के उपयोग और भविष्य में आने वाले संकटों के प्रति सचेत हो सकें. इस दौरान वे लगभग 10 करोड़ लोगों को सौर ऊर्जा के उपयोग का प्रशिक्षण भी देंगे. आईआईटी मुंबई में प्रोफेसर रहे डॉ. सोलंकी ने इस काम के लिए नौकरी से लंबा अवकाश ले रखा है.

28 राज्यों का सफर तय करेगी बस

ये यात्रा मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम और एनर्जी स्वराज संयुक्त रूप से निकाल रहा है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के मिंटो हॉल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरी झंडी दिखाकर यात्रा को रवाना किया था. अब इस यात्रा को दो साल पूरे हो गए हैं और यात्रा ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर पहुंच चुकी है. एनर्जी स्वराज यात्रा देश के 28 राज्यों में लगभग दो लाख किलोमीटर का सफर तय करेगी. यात्रा के दौरान 5000 से अधिक वार्ताएं, 1000 से अधिक प्रदर्शनियां, 1 लाख लोगों को बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाएगा. साथ ही 1 लाख पौधे लगाए जाएंगे. 11 साल चलने वाली यात्रा पूरे देश को लगभग 8 से 10 बार पार करेगी.

Tags: Climate Change, IIT Bombay, Mahatma gandhi, News18 Hindi Originals, Solar system, World environment day

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