बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (फाइल फोटो)
लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी शुरू हो गई हैं. छोटी-बड़ी सभी पार्टियां जनसंपर्क अभियान में जुट गई हैं. लेकिन चुनाव जीतने की सबसे ज्यादा भूख बीजेपी में दिखाई पड़ रही है. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जनवरी से लेकर 9 जुलाई तक 19 राज्यों का दौरा कर चुके हैं. जबकि इसी दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिर्फ आठ राज्यों का दौरा किया है. अगर आंकड़ों की बात करें तो सियासी सक्रियता के मामले में राहुल गांधी अमित शाह के मुकाबले बहुत पीछे हैं.
केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष न सिर्फ उन राज्यों का दौरा कर रहे हैं जिनमें बीजेपी की सरकार हैं बल्कि उन पर भी फोकस है जहां अभी भगवा ध्वज फहराया जाना बाकी है. शाह किसी दिन बैठते नहीं, बल्कि पार्टी को मजबूत करने के लिए किसी न किसी जगह का उनका दौरा तय रहता है. उनकी सक्रियता अध्यक्ष बनने के समय से ही दिखती है, लेकिन अब जब 2019 का चुनाव बीजेपी की प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा सवाल है तो जाहिर है पुराने लोगों को जोड़े रखने और नए लोगों को जोड़ने के लिए यात्राएं भी ज्यादा होंगी.
अमित शाह बनाम राहुल गांधी
अमित शाह के ज्यादातर दौरे वो हैं जिनमें वो पार्टी का जमीनी ढांचा मजबूत कर रहे हैं या उसे आंध्र प्रदेश, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं पश्चिम बंगाल जैसे पारंपरिक रूप से कमजोर राज्यों में पूरी तरह जमीन से ही खड़ा करने पर जोर लगा रहे हैं. अपनी यात्रा में वे न सिर्फ संगठन को चुनौतियों से उबारने का मंत्र बता रहे हैं बल्कि उनकी कोशिश है कि सरकार और संगठन की आपसी नाराजगी दूर हो. हरियाणा जैसे राज्य जहां सरकार में कार्यकर्ताओं, विधायकों की सुनवाई नहीं हो रही है वहां वो एसपी, डीसी के साथ पार्टी के लोगों की बैठक करवाने को कह रहे हैं. ताकि चुनाव में इसका खामियाजा न भुगतना पड़े.
अमित शाह की वेबसाइट पर मार्च 2017 तक की यात्राओं का हिसाब मौजूद है. इसके मुताबिक शाह ने एक दिन में औसतन 524 किलोमीटर का सफर किया. आपको शायद यकीन न हो, उन्होंने 32 महीने में पांच लाख 7 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी यात्राएं कीं थीं. सियासी विश्लेषकों का कहना है कि शाह की सक्रियता का ही नतीजा है 19 राज्यों में बीजेपी नेताओं के सिर पर जीत का सेहरा सजा है.
बीजेपी को मजबूत करने के लिए अमित शाह रेगुलर यात्रा करते हैं
देश का राजनीतिक नक्शा बदल चुका है तो उसके पीछे कहीं न कहीं शाह की रणनीति और मेहनत काम करती है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अनिल जैन के मुताबिक ‘2017 में शाह ने 110 दिन का प्रवास किया था.’ अब उनका फोकस सियासी तौर पर बेहद जटिल माने जाने वाले राज्यों पर है. इस समय वो पश्चिम बंगाल और केरल को समझ रहे हैं. कार्यकर्ताओं के घर जा रहे हैं. बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. शाह ने इसमें से आधी जीतने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने यूपी की यात्रा कर 80 में से 74 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य दिया है. 2014 में यहां 73 सीटें मिली थीं.
राहुल गांधी कहां ठहरते हैं?
एक तरफ अमित शाह की यात्राएं हैं तो दूसरी ओर राहुल गांधी ज्यादातर राज्यों में जाने की बजाय खुद अपने आवास या फिर पार्टी के केंद्रीय कार्यालय पर पदाधिकारियों को बुलाकर बैठक कर रहे हैं. गांधी ने पार्टी की आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार और प. बंगाल यूनिट को दिल्ली में बुलाकर मीटिंग ली है.
राहुल गांधी: कब शुरू होगी राजनीतिक दौड़?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसी निष्क्रियता की वजह से कांग्रेस राजनीतिक मानचित्र से खत्म होती जा रही है. हालांकि जब से राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं तब से कांग्रेस पहले के मुकाबले ज्यादा सक्रिय मानी जा सकती है. कठुआ रेप केस और मंदसौर में किसानों के मामले में राहुल गांधी सक्रिय दिखे हैं. वो अब आरएसएस की काट के लिए कांग्रेस सेवादल को नए सिरे से खड़ा रहे हैं.
राहुल गांधी ने जनवरी से 9 जुलाई तक सिर्फ आठ राज्यों की यात्रा की है. इस साल गांधी ने सबसे ज्यादा 20 दिन कर्नाटक में बिताए, क्योंकि वहां चुनाव था. त्रिपुरा और मेघालय में भी उन्होंने चुनावी यात्राएं कीं. यूपी में वो अपने पुराने गढ़ अमेठी, रायबरेली से बाहर नहीं गए. जबकि यहां पर सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं. पूरब से पश्चिम तक कांग्रेस की हालत पतली है. यहां पर कांग्रेस का संगठन 28 साल से निष्क्रिय सा है. फिर भी वो इन दो जिलों से बाहर नहीं निकले. बीच-बीच में अचानक होने वाली उनकी विदेश यात्राएं जरूर चर्चा का विषय बन जाती हैं.
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के सचिव विनीत पूनिया कहते हैं ‘सबके काम करने का स्टाइल अलग-अलग है. हमें शाह से नहीं सीखना है. जब से राहुल गांधी अध्यक्ष बने हैं काफी कुछ बदला है. वो प्रदेश कमेटियों से रोजाना रिपोर्ट ले रहे हैं. कई नए संगठन तैयार किए हैं. वो प्रदेश कमेटियों को बुलाकर उन्हें मजबूत करने का मंत्र दे रहे हैं.’
‘24 अकबर रोड’ नामक पुस्तक के लेखक राशिद किदवई कहते हैं “अलग-अलग प्रदेशों में राजनीतिक दौरों से जनता पर असर पड़ता है. यह बात अमित शाह तो समझते हैं लेकिन राहुल गांधी नहीं. क्योंकि राहुल गांधी के आसपास जो टीम है वह उन्हें सही बात नहीं बताती. जिसकी वजह से उनका पब्लिक कनेक्ट नहीं हो पाता.”
2019 में क्या सुधरेगी कांग्रेस की हालत?
वरिष्ठ पत्रकार किदवई का मानना है " कांग्रेस का वर्क कल्चर भी ऐसा है, जिसे समय के साथ न बदलना भूल साबित हो सकती है. ‘राजशाही’ का रवैया छोड़कर लोगों के बीच जाने का वक्त है. जो जनता के बीच जितना अधिक समय बिताएगा वो उतना ही फायदा उठाएगा. मुझे नहीं लगता कि अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने कोई विदेश यात्रा की हो, जबकि राहुल गांधी विदेश यात्रा पर ज्यादा फोकस करते हैं.”
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अब्दुल रहीम कहते हैं कि राहुल गांधी अमित शाह जैसी मेहनत नहीं करते. उन्हें आगे बढ़ना है तो लोगों के बीच जाना होगा. पदयात्रा, रैलियों और दौरों का सिलसिला शुरू करना चाहिए. ऐसा न करना कांग्रेस के लिए घातक होगा, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले टर्म के लिए भी जोर लगा रहे हैं और उनकी टीम इसके लिए फील्ड में काम कर रही है.
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