मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल की सीएम एवं त्रिणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी विपक्षी और बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं से मुलाकात कर रहीं हैं. पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव फिर दिल्ली में पवार से लेकर केजरीवाल तक से. ममता यहीं नहीं रूकीं उन्होंने बीजेपी के 'बागी' नेताओं अरुण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा से भी मुलाकात की.
ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती से भी एक साथ मिलना चाहतीं हैं. इसके लिए वो लखनऊ तक जाने को तैयार हैं. ममता दीदी की कोशिश 2019 के आम चुनाव से पहले एक ऐसा मोर्चा खड़ा करने की है जो गैर-कांग्रेसी हो और बीजेपी के खिलाफ एकजुट रहे. ऐसा मोर्चा हो जिसमें बीजेपी विरोधी क्षेत्रीय पार्टियां अपने-अपने राज्यों में अपना जनाधार और सरकार बचा और बना लें.
बीजेपी, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों को छोड़ दें तो यह फ्रंट देश के सियासी मानचित्र पर कैसा होगा और क्या कांग्रेस के बिना राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का मुकाबला हो सकता है...? ऐसे कई सवाल हैं जो जनता के मन में घूम रहे हैं. कोशिश गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दलों के साथ मिलकर मोदी के खिलाफ लामबंद होने की है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री राव ने कोलकाता जाकर इस संबंध में ममता बनर्जी के साथ बैठक भी की थी, बाद दोनों नेताओं ने फेडरल फ्रंट पर जोर दिया था.
बनर्जी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुलाकात पहले हुई है. यूपी के गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की जीत पर बनर्जी ने दोनों नेताओं को शुभकामना देते देर नहीं लगाई थी.
फेडरल फ्रंट बनता है तो उसकी तस्वीर ऐसी हो सकती है
दोनों नेताओं की कोशिश है कि सपा, बसपा, बीजेडी, आरजेडी, शिवसेना, वाईएसआर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर एक मोर्चा खड़ा हो. इसीलिए उन्होंने एनसीपी नेता शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, शिवसेना के संजय राउत, आरजेडी की नेत्री मीसा भारती, डीएमके सांसद कनिमोझी, तेलगू देशम पार्टी के नेता वाईएस चौधरी, टीआरएस नेता के. कविता, बीजेडी के पिनाकी मिश्रा से मुलाकात की है.
जयललिता के निधन के बाद से एआईडीएमके बीजेपी के करीब रही है. लेकिन वह एनडीए का हिस्सा नहीं है. वाईएसआर कांग्रेस और तेलगू देशम पार्टी का कुछ कहा नहीं जा सकता कि वह किधर जाएंगी. माना जा रहा है तेलगू देशम पार्टी के एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी वाईएसआर कांग्रेस को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करेगी. रही बात शिवसेना की तो उसने 2019 का चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर दिया है, हालांकि वह अभी बीजेपी से अलग नहीं हुई है. इसलिए इन दलों को छोड़ भी दिया जाए तो भी गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई करीब सौ सांसद हैं.
ममता बनर्जी ने कहा है कि "बीजेपी में अच्छे लोग नहीं हैं. अखिलेश और मायावती एक हो जाएं, तो देश का कुछ नहीं बिगड़ सकता."
कांग्रेस को क्यों किनारे कर रहीं पार्टियां
-यूपीए की कमान कांग्रेस के हाथ में है. लेकिन उसमें सिर्फ 10 पार्टियां रह गई हैं. संसद सदस्य सिर्फ 52 हैं. लोकसभा इलेक्शन के सबसे बड़े रणक्षेत्र उत्तर प्रदेश में हुए गोरखपुर और फूलपुर उप चुनावों में कांग्रेस का कहीं अता-पता नहीं था. जबकि सपा और बसपा ने मिलकर बीजेपी से उसकी यह सीटें छीन लीं. इसके बाद तय हो गया कि अब कम से कम यूपी में कांग्रेस भाजपा विरोधी दलों को लीड करने की हैसियत में नहीं है.
हिमाचल और गुजरात चुनाव में मायावती कांग्रेस के साथ समझौता करके सीट चाहती थीं लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया. उधर, ममता बनर्जी और कांग्रेस की पुरानी सियासी खटपट है.
कांग्रेस से परहेज के पीछे क्या रणनीति है?
कांग्रेस के साथ पार्टी और पार्टी अध्यक्ष की इमेज से भी जुड़े सवाल हैं. दरअसल, बीजेपी सबसे ज्यादा कांग्रेस को टारगेट करती है तो इसके पीछे सोची-समझी रणनीति है. भाजपा में ही कुछ लोग यह मानते हैं कि जब तक कांग्रेस के पास राहुल गांधी जैसा नेतृत्व रहेगा, तब तक हमारे लिए कांग्रेस का मुकाबला करना बेहद आसान रहेगा.
राजनीति के कई जानकार नरेंद्र मोदी की इतनी बड़ी छवि के लिए राजनीतिक तौर पर उनके सामने खड़े राहुल गांधी की कमजोर छवि को जिम्मेदार बताते हैं. बीजेपी अन्य पार्टियों के मुकाबले बहुत आसानी से भ्रष्टाचार एवं अन्य मसलों पर कांग्रेस को घेर लेती है. बीजेपी ने राहुल गांधी की इमेज अभी नौसिखिए की बनाई हुई है. इसलिए कांग्रेस से दूरी बनाकर मोदी के सामने खड़े होने की कोशिश हो रही है.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता घनश्याम तिवारी का कहना है कि उनकी पार्टी हर उस मोर्चे के साथ है जो केंद्र में एक साफ-सुथरी सरकार दे सके. हमारी पार्टी के प्रतिनिधि सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई डिनर पार्टी में भी गए थे. अखिलेश यादव और ममता बनर्जी में पहले से ही अच्छा तालमेल है.
जबकि बसपा नेता उम्मेद सिंह का कहना है कि सपा, बसपा, टीएमसी और टीआरएस जैसी पार्टियों के लिए गैर कांग्रेसी मोर्चा ज्यादा मुफीद है. क्योंकि यदि राहुल गांधी किसी मोर्चे के नेता होंगे तो उसे हराना बीजेपी के लिए बहुत आसान होगा. इसलिए बीजेपी विरोधी कोई भी मोर्चा बने वह बहन मायावती को पीएम कंडीडेट घोषित करे इससे देश भर के दलितों का वोट कहीं और नहीं जाने पाएगा.
असंतुष्ट भाजपा नेताओं से ममता बनर्जी ने की मुलाकात (तस्वीर- एएनआई)
कांग्रेस का छलका दर्द
कांग्रेस नेता एम. वीरप्पा मोइली का कहना है कि कांग्रेस के बिना फेडरल फ्रंट नहीं बन सकता. गैर भाजपा और गैर कांग्रेस फेडरल फ्रंट का उद्देश्य भाजपा विरोधी पार्टियों को बांटना है. फेडरल फ्रंट के लिए राव का कदम अच्छा और स्वागत योग्य है लेकिन इसके लिए सभी दलों को विश्वास में लेना होगा. कांग्रेस के बिना इस तरह का फ्रंट प्रभावी रूप से काम नहीं कर पाएगा.
कांग्रेस, कर्नाटक चुनाव और थर्ड फ्रंट
राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया का मानना है कि कांग्रेस को अभी भले ही बहुत कमजोर माना जा रहा है लेकिन यदि उसने कर्नाटक का अपना किला बचा लिया तो उसके लिए राजस्थान और मध्य प्रदेश का रास्ता भी आसान हो सकता है. यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी विरोधी फ्रंट का नेतृत्व उसी के हाथ में आएगा. दूसरी कोई कोशिश बेकार हो सकती है.
असली लड़ाई राज्यों में अपनी सत्ता बचाने की है
भदौरिया कहते हैं " बिना कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ मोर्चा तैयार करना कांसेप्ट के लेवल पर तो ठीक है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या अलग-अलग राज्यों के क्षत्रप एक दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे. दरअसल ये सभी क्षत्रप बात तो कर रहे हैं मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा बनाने की लेकिन उनकी नजर अपने-अपने राज्यों में सत्ता बरकरार रखने की है. इस सोच के साथ कोई फ्रंट कामयाब नहीं हो सकता."
अखिलेश-मायावती की सियासी दोस्ती ने बढ़ाई बेचैनी
भदौरिया के मुताबिक "इमरजेंसी के बाद गैर कांग्रेसी मोर्चा बना था लेकिन उसका नेतृत्व जय प्रकाश नारायण जैसे एक बड़े नेता के हाथ में था. ममता बनर्जी ने पिछले लोकसभा चुनावों में भी मुलायम सिंह यादव को साथ लेकर बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने की कोशिश की थी लेकिन मुलायम पलट गए थे. इसलिए कैसे कहा जाए कि इस बार यह कोशिश सफल होगी."