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Budget 2018: क्या टैक्स के दायरे में आने चाहिए ये 'किसान'?

मार्च 2016 में सीबीडीटी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) ने चिट्ठी लिखकर मामले की छानबीन करने के आदेश दिए थे. सरकार ने पाया था कि पिछले कुछ सालों में कृषि से 1 करोड़ रुपये से ज्यादा आय दिखाने वाले टैक्स पेयर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है.

मार्च 2016 में सीबीडीटी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) ने चिट्ठी लिखकर मामले की छानबीन करने के आदेश दिए थे. सरकार ने पाया था कि पिछले कुछ सालों में कृषि से 1 करोड़ रुपये से ज्यादा आय दिखाने वाले टैक्स पेयर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है.

मार्च 2016 में सीबीडीटी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) ने चिट्ठी लिखकर मामले की छानबीन करने के आदेश ...अधिक पढ़ें

    नवंबर 2014 में पार्थसारथी शोम कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि खेती नहीं करने वाले लोग कृषि आय को टैक्स बचाने के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. इससे हर साल सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व घाटा होता है. इसीलिए कमेटी ने ज्यादा अमीर किसानों पर टैक्स लगाने की भी सिफारिश की थी.

    बजट नजदीक आ गया है. ऐसे में इससे जुड़े एक सुझाव पर बहस तेज हो गई है. आरएसएस से प्रेरित वित्तीय सलाहकारों के संगठन भारतीय वित्त सलाहकार समिति ने केंद्र सरकार से उन किसानों को टैक्स के दायरे में लाने की मांग की है जिनकी सालाना कमाई एक करोड़ रुपये से अधिक है.

    संगठन के प्रमुख अनिल गुप्ता ने कहा है कि "वेतनभोगी भी कमाता है और किसान भी. अगर बड़े किसानों का टैक्स माफ है तो 10 साख रुपये सालाना कमाने वाले वेतनभोगी पर क्यों टैक्स लगे. उसे भी छूट दो."

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    इस प्रस्ताव पर कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना कि "एक तरफ कारपोरेट टैक्स को घटाने की बात हो रही है तो दूसरी ओर कृषि पर टैक्स थोपने की सिफारिश हो रही है, यह गलत है. देश में करीब 30 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं. सिर्फ 3 फीसदी ही टैक्सपेयर हैं. पहले इस 27 फीसदी से तो टैक्स लीजिए. देश में 4 फीसदी ही ऐसे किसान हैं जिनके पास 10 हेक्टेयर से अधिक जमीन है. 2016 के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय सिर्फ 20 हजार रुपये है."

    मैं तो कहता हूं कि जिन किसानों की कमाई के दो स्रोत हैं, उनकी सालाना आय 20 लाख रुपये भी है तो उन्हें टैक्स के दायरे में लाइए, लेकिन आम किसान को मत मारिए. सरकार सब जानती है कि नेता, उद्यमी और न जाने किन-किन पेशे से जुड़े लोग किसान बनकर टैक्स बचा रहे हैं. ऐसे लोगों को पकड़िए. सरकार सब जानती है, लेकिन पकड़ती नहीं.
    देविंदर शर्मा, कृषि अर्थशास्त्री


    भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का कहना है कि "बजट में किसानों के कल्याण के लिए कई प्रस्ताव दिए गए हैं. बड़े किसानों को टैक्स के दायरे में लाने पर अभी कुछ नहीं कर सकता. चर्चा हो जाएगी तब कह पाउंगा कुछ."

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    इस समय देश में करीब 9.5 करोड़ किसान परिवार हैं. नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक किसान परिवारों की औसत मासिक आय 6426 रुपये है. इसीलिए मोदी सरकार ने 2022 तक इनकी आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा हुआ है. उनका कर्ज भी माफ किया जा रहा है. लेकिन इस सब के बीच कृषि आय दिखाकर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को झांसा देने का मामला भी सामने आ चुका है. व्यापारी, बड़े अधिकारी, नेता 'फर्जी' किसान बने हुए हैं, जिनकी बंजर जमीनें सोना उगल रही हैं, दूसरी ओर खेत में पसीना बहाने वाला किसान आत्महत्या कर रहा है.


    भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि "एक कृषि के नाम पर जो सालाना एक करोड़ रुपये कमाते हैं वो किसान नहीं, बिजनेसमैन हैं. कृषि के नाम पर कंपनी बना रखी है. किसान टैक्स देने के लिए राजी हैं सरकार उनकी इनकम एक करोड़ रुपये सालाना से ज्यादा तो कर दे. हम सहयोग करेंगे. असल में कहीं किसान की इतनी आय है ही नहीं."

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    मार्च 2016 में सीबीडीटी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) ने चिट्ठी लिखकर मामले की छानबीन करने के आदेश दिए थे. सरकार ने पाया था कि पिछले कुछ सालों में कृषि से 1 करोड़ रुपये से ज्यादा आय दिखाने वाले टैक्स पेयर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है. 2006 से लेकर 2015 तक के आंकड़ों की बात करें तो बेेंगलुरु में सबसे ज्यादा 321 लोगों ने कृषि से आय 1 करोड़ रुपये से ज्यादा दिखाई थी. वहीं राजधानी दिल्ली में 275, कोलकाता में 239, मुंबई में 212, पुणे में 192, चेन्नई में 181 और हैदराबाद में 162 ऐसे लोगों का पता चला था.

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