मार्च 2016 में सीबीडीटी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) ने चिट्ठी लिखकर मामले की छानबीन करने के आदेश दिए थे. सरकार ने पाया था कि पिछले कुछ सालों में कृषि से 1 करोड़ रुपये से ज्यादा आय दिखाने वाले टैक्स पेयर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है.
नवंबर 2014 में पार्थसारथी शोम कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि खेती नहीं करने वाले लोग कृषि आय को टैक्स बचाने के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. इससे हर साल सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व घाटा होता है. इसीलिए कमेटी ने ज्यादा अमीर किसानों पर टैक्स लगाने की भी सिफारिश की थी.
बजट नजदीक आ गया है. ऐसे में इससे जुड़े एक सुझाव पर बहस तेज हो गई है. आरएसएस से प्रेरित वित्तीय सलाहकारों के संगठन भारतीय वित्त सलाहकार समिति ने केंद्र सरकार से उन किसानों को टैक्स के दायरे में लाने की मांग की है जिनकी सालाना कमाई एक करोड़ रुपये से अधिक है.
संगठन के प्रमुख अनिल गुप्ता ने कहा है कि "वेतनभोगी भी कमाता है और किसान भी. अगर बड़े किसानों का टैक्स माफ है तो 10 साख रुपये सालाना कमाने वाले वेतनभोगी पर क्यों टैक्स लगे. उसे भी छूट दो."
मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है
इस प्रस्ताव पर कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना कि "एक तरफ कारपोरेट टैक्स को घटाने की बात हो रही है तो दूसरी ओर कृषि पर टैक्स थोपने की सिफारिश हो रही है, यह गलत है. देश में करीब 30 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं. सिर्फ 3 फीसदी ही टैक्सपेयर हैं. पहले इस 27 फीसदी से तो टैक्स लीजिए. देश में 4 फीसदी ही ऐसे किसान हैं जिनके पास 10 हेक्टेयर से अधिक जमीन है. 2016 के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय सिर्फ 20 हजार रुपये है."
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