आज आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता आशुतोष और आशीष खेतान ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है. पार्टी छोड़ने की इनकी कई वजहें हो सकती हैं लेकिन शुरुआत से लेकर आज तक इसके मूल में एक ही बात है कि पार्टी में मैकेनिज्म नहीं है. पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी है. अरविंद केजरीवाल तानाशाह हैं लेकिन इन्हें तानाशाह बनाने में भी इन्हीं लाेगों का योगदान है जो आज आम आदमी पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं. ऐसे में ये अब केजरीवाल की शिकायत भी नहीं कर सकते.
मुझे याद है वह दौर भी जब आम आदमी पार्टी में से सबसे पहले पार्टी के चार संस्थापक सदस्यों प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, प्रोफेसर आनंद कुमार और खुद मैं (प्रोफेसर अजीत झा) काे बाहर का रास्ता दिखाया गया था. उस दौरान कई अन्य लोगों को भी पार्टी से विदाई मिली थी जिनमें आईआईटी बनारस के प्रोफेसर राकेश सिन्हा और एक तमिलनाडू की कार्यकर्ता भी शामिल थीं. ये फैसला अरविंद और उनकी हां में हां मिलाने वाली ब्रिगेड का ही था.
पार्टी को छोड़ने का यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा. पार्टी से लंबे समय से जुड़े लोगों की अवहेलना एक प्रमुख वजह है. हमारे समय के मुद्दे अलग थे लेकिन अभी पार्टी छोड़ने का जो कारण नजर आ रहा है वह यह है कि जो खुद को राज्यसभा के लिए उम्मीदवार माने बैठे थे. वे इस वक्त बाहर हो गए. आने वाले वक्त में लोकसभा के लिए खुद को दौड़ में मान रहे लोग निराश होकर बाहर जाएंगे. यही हाल विधानसभा चुनावों के दौरान भी होगा.
आशुतोष और आशीष खेतान
एक समय था जब आंदोलन से पटल पर आई पार्टी में एक वॉलंटियर का भी सम्मान था. उसका महत्व था. लेकिन सरकार बनते-बनते आम आदमी पार्टी पोजीशन, पद और सियासत तक सिमटती चली गई. आज हाल ये है कि पार्टी में अगर किसी के पास पोजीशन नहीं है तो उसका कहीं-कोई सम्मान नहीं है. यही वजह है कि पार्टी में से धीरे-धीरे पलायन हो रहा है.
पार्टी छोड़ने वाले या पार्टी से बाहर किए गए सदस्य आज बेहतर जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल के अलावा पार्टी में किसी का फैसला स्वीकार्य नहीं है. वन मैन पार्टी की एक ही आवाज है अरविंद, अरविंद और अरविंद. तो आज इस बात में भी हैरत नहीं है कि आशुतोष और आशीष ने भी पार्टी के जरूरी फैसलों से अलग-थलग कर दिए जाने के बाद इस्तीफा देने का फैसला किया होगा.
हम संस्थापक सदस्यों का मसला भी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का था. जिसपर झगड़ा लगातार बढ़ता गया. अरविंद केजरीवाल सभी मुद्दों में चर्चा और विमर्श तो चाहते थे लेकिन अंतिम फैसले को लेकर वे मोनोपॉली चाहते थे. हम लोग पार्टी को नैतिक मापदंडों पर खड़ा करने पर जोर दे रहे थे. जिससे हम सभी केजरीवाल के मनमाने फैसलों में बाधा बनते जा रहे थे. लिहाजा उन्होंने षड़यंत्र कर हम सभी को बाहर निकालने का प्रस्ताव पास किया.
प्रशांत भूषण- योगेन्द्र यादव (फाइल फोटो) Image: PTI
वे मुद्दे जब अरविंद केजरीवाल ने मारी पलटी, तोड़े पार्टी के नियम अरविंद केजरीवाल मनमाने फैसले लेना चाहते थे. आज भी अरविंद वही करते हैं. जो उनके रास्ते में बाधा बनता है वे उसे निकाल फेंकते हैं. पार्टी के गठन के बाद से ही अरविंद और पार्टी के सदस्यों में मतभेद उभरते रहे.
. पार्टी संविधान के खिलाफ जाकर लोकपाल की विदाई पार्टी के गठन के दौरान फैसला किया था कि आंतरिक नैतिकता के लिए पार्टी के अंदर लोकपाल का गठन किया जाए. यह ऐसा व्यक्ति होगा जो पार्टी का सदस्य नहीं होगा और स्वतंत्र होगा. इसके लिए शुरुआत से ही एडमिरल रामदास को पार्टी का लोकपाल नियुक्त किया गया. ताकि वे हर जरूरी फैसले में शामिल हों और मत दें.
लेकिन नेशनल एक्जीक्यूटिव में शामिल पार्टी के कई संस्थापक सदस्यों (योगेंद्र, प्रशांत, अानंद और अजीत) को बाहर निकालने के लिए केजरीवाल ने नेशनल काउंसिल की बैठक में लोकपाल एडमिरल रामदास को शामिल होने से रोक दिया. कुछ समय बाद लोकपाल को ही हटा दिया. इसके बाद आज तक पार्टी में कोई लोकपाल नहीं है.
अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया की फाइल फोटो- PTI
. जिन पार्टियों को चोर कहा उन्हीं के नेताओं को पार्टी में भर्ती कर दी टिकट पार्टी के गठन के बाद कांग्रेस, भाजपा सहित अन्य पार्टियों से भी लोग आकर जुड़ने लगे. पार्टी का संविधान कहता है कि चुनाव के दौरान सिर्फ टिकट के लिए आए लोगों को आम आदमी पार्टी में भर्ती नहीं करना है. लेकिन नियमों के विरुद्ध जाकर अरविंद ने न केवल उन लोगों को शामिल किया बल्कि चुनाव में पार्टी प्रत्याशी बनाने के लिए बाकायदा अन्य पार्टियों के नेताओं को आमंत्रित भी किया.
. 50-50 लाख रुपयों के चार चैकों का मामला पार्टी को मिले दो करोड़ रुपयों पर जब सदस्यों ने अरविंद केजरीवाल से पूछा कि ये पैसा कहां से आया है तो उन्होंने कहा- मालूम नहीं. पार्टी के संविधान के अनुसार 10 लाख रुपये से ऊपर के चंदे पर नेशनल एक्जीक्यूटिव के सदस्यों से चर्चा की जानी थी. उस चंदे के स्त्रोत का पता किया जाना था. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने किसी भी चर्चा या स्त्रोत का खुलासा करने से मना कर दिया. यह मनमानी का एक और स्तर और पार्टी के नियमों का खुला उल्लंघन था.
. विधायक नरेश बाल्यान के यहां से पकड़ी गई शराब पार्टी विधायक नरेश बाल्यान के घर से शराब पकड़ी जाने पर हम सभी लोगों ने आंतरिक जांच और कार्रवाई की मांग की लेकिन अरविंद केजरीवाल इसके लिए तैयार नहीं हुए. इस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की उम्मीदें लेकर आगे बढ़े केजरीवाल उन उम्मीदों को एक-एक कर तोड़ते नजर आए.
यही वजह रही कि आंदोलन के दम पर खड़ी हुई आम आदमी पार्टी आज एक पर्सनल लिमिटेड कंपनी बन गई है. आज आम आदमी पार्टी वह पार्टी नहीं है जो किसी उद्धेश्य और लक्ष्य के लिए खड़ी की गई थी. आज पार्टी सिर्फ सरकार है. विधायक हैं, सत्ता है और जो इनके साथ हैं वे ही पार्टी हैं. अब नए लोग नहीं जुड़ रहे. अब लोग आप में महीनों मुफ्त में काम करने के लिए अपनी नौकरियों से छुट्टी लेकर नहीं आ रहे.
आम आदमी पार्टी को संबोधित करते अरविंद केजरीवाल
ऐसे अस्तित्व में आई थी आम आदमी पार्टी मैं आम आदमी पार्टी का संस्थापक सदस्य था. पार्टी की पहली नेशनल एक्जीक्यूटिव कमेटी (highest decision making committee) का भी सदस्य था. आम आदमी पार्टी बनने से पहले अरविंद जंतर-मंतर पर आखिरी अनशन पर बैठे थे. उस दौरान सरकार की ओर से उनसे कोई मिलने नहीं आया था.
तब देश के कुछ गणमान्य लोगों ने अरविंद को पत्र भेजकर अनशन तोड़ने के लिए कहा था. योगेंद्र यादव के अलावा उसमें मैं भी सिग्नेटरी था. उस पत्र में यह लिखा गया था कि यह संवेदनहीन सरकार है. अगर ये अनशन से नहीं मान रही तो अनशन क्यों किया जाए. बेहतर होगा कि इसके आगे राजनीतिक विकल्प खड़ा किया जाए. यह आम आदमी पार्टी के गठन का पहला संकेत था.
जंतर-मंतर पर ही संकेतों में पार्टी के गठन का एलान भी किया गया. उसके बाद पार्टी के गठन की रूपरेखा तैयार हुई. मैं, योगेंद्र और भी कई लोग इसके सिद्धांतों को बनाने के लिए कई जगह घूमे. काफी काम किया. अंत में जब पार्टी बनी तो हम लोग संस्थापक सदस्य ही नहीं थे बल्कि नेशनल स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों में भी हमारी भागीदारी तय की गई. मुझे नेशनल स्तर पर पार्टी का विस्तार करना था तो केरल से लेकर बंगाल तक मैंने हर यूनिट का दौरा किया.
देशभर के बुद्धिजीवी और अनुभवी लोगों के सहयोग से ये पार्टी बनी, इसके नियम बनाए गए. अन्य पार्टियों से अलग रखने के लिए इसके नैतिक मूल्य तय किए गए. लेकिन ये सभी मूल्य अरविंद केजरीवाल ने तोड़े. आज आम आदमी पार्टी सिर्फ अन्य पार्टियों की तरह एक पार्टी है. अब इसके पास पहली वाली दिमागी ताकत, मूल्य और सिद्धांत नहीं रहे. अब ये सिर्फ वोट लेने और सरकार चलाने वाली पार्टी है.
(दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर अजीत झा आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य, आप की नेशनल एक्जीक्यूटिव कमेटी और नेशनल काउंसिल के सदस्य रहे हैं. अजीत झा को योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के समय ही पार्टी से बाहर निकाला गया था. फिलहाल ये योगेंद्र यादव के साथ मिलकर स्वराज इंडिया में महासचिव का पद देख रहे हैं)