के बीच सुप्रीम कोर्ट में बौद्धों के दावे की भी सुनवाई होगी. बौद्धों के दावे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार हो गई है. याचिकाकर्ता विनीत कुमार मौर्य ने दावा किया है कि विवादित जमीन पर मंदिर, मस्जिद नहीं, बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की खुदाई में मिले गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे बौद्ध विहार की विशिष्टता हैं न कि मंदिर या मस्जिद की. याचिकाकर्ता
सुनवाई के लिए मौर्य भी इस वक्त दिल्ली में हैं. मौर्य ने न्यूज18 हिंदी से बातचीत में दावा किया कि वो इस मामले में तीसरे पक्षकार हैं. उन्होंने कहा, "अयोध्या में मंदिर-मस्जिद से पहले बौद्ध स्थल था. एएसआई द्वारा उस जगह पर की गई खुदाई के आधार पर मैंने यह दावा किया है. एएसआई ने विवादित स्थल पर चार बार खुदाई करवाई थी. जिसमें पता चला है कि वहां ऐसे स्तूप, दीवार और खंभे थे, जो बौद्ध विहार की निशानी हैं."
मौर्य ने कहा, "वहां 50 गड्ढों की खुदाई हुई है. जिसमें किसी भी मंदिर या हिंदू धर्म से संबंधित ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं. पुरातात्विक स्रोतों, चीनी यात्रियों (फाह्यान, ह्वेनसांग) के यात्रा वृतांतों, बौद्ध साहित्यों (त्रिपिटक) के अनुसार अयोध्या की विवादित भूमि एक बौद्ध स्थल है. अयोध्या को हम साकेत मानते हैं. वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर ही कोर्ट ने हमारी याचिका स्वीकार की है."
मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच दावा किया गया है कि राजा प्रसेनजीत के समय अयोध्या (साकेत) कहलाता था. अयोध्या बौद्ध धर्म का बड़ा केंद्र रहा है. यह शहर श्रावस्ती, कुशीनगर जैसे बौद्ध केंद्रों के पास बसा है. मौर्य ने अदालत से अपील की है कि वह इस विवादित जगह को कुशीनगर, सारनाथ, श्रावस्ती और कपिलवस्तु की तरह बौद्ध विहार घोषित करे.
इस मामले में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन हमसे पहले ही कह चुके हैं, "अयोध्या बहुत सारे संप्रदायों की पवित्र भूमि है, वो बौद्धों की भी है, जैनियों की भी है. हमें बौद्धों के दावे से कोई परेशानी नहीं है. वहां पर सवाल ये है कि बाबर का कुछ रहेगा या नहीं. बाकी से कोई दिक्कत नहीं है. बाकी तो हम बैठकर समाधान कर लेंगे. वहां बाबर का अवशेष नहीं रहना चाहिए. अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनना चाहिए. भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे और भगवान राम भी विष्णु के अवतार थे."
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FIRST PUBLISHED : October 29, 2018, 10:48 IST