बकरीद का त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के अंतिम माह जु-अल-हिज्ज में मनाया जाता है. बकरीद (Bakrid) को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जानते हैं. ईद-उल-अजहा का अर्थ है कुर्बानी वाली ईद. यह त्योहार कुर्बानी का संदेश देता है, जिसका अर्थ है खुदा के बताए रास्ते पर चलना. इस साल भारत में बकरीद 10 जुलाई दिन रविवार को मनाए जाने की संभावना है. इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. बकरीद की तारीख चांद के दिखने पर निर्धारित होता है. आइए जानते हैं बकरीद क्यों मनाते हैं और इसका इतिहास क्या है?
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बकरीद का इतिहास और धार्मिक महत्व
बकरीद मनाने के पीछे हजरत इब्राहिम के जीवन से जुड़ी हुई एक बड़ी घटना है. हजरत इब्राहिम खुदा के बंदे थे, उनका खुदा में पूर्ण विश्वास था. एक बार हजरत इब्राहिम ने एक सपना देखा, जिसमें वे अपने जान से भी ज्यादा प्रिय बेटे की कुर्बानी दे रहे थे.
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इस सपने को उन्होंने खुदा का संदेश माना. फिर क्या था, उन्होंने खुदा की इच्छा मानकर अपने 10 वर्षीय बेटे को खुदा की राह पर कुर्बान करने का फैसला कर लिया. लेकिन तब खुदा ने उनको अपने बेटे की जगह किसी एक जानवर की कुर्बानी देने का पैगाम दिया.
तब उन्होंने खुदा के संदेश को मानते हुए अपने सबसे प्रिय मेमने की कुर्बानी दे दी. तब से ही ईद-उल-अजहा के दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा शुरु हुई.
बकरीद का त्योहार
बकरीद के लिए लोग सालभर पूर्व एक बकरे को खरीदते हैं. फिर परिवार के सदस्य की तरह ही उसकी देखभाल और पालन पोषण करते हैं. जब ईद-उल-अजहा का दिन आता है, तो उसे कुर्बान करके खुदा की राह पर चलने का प्रयास करते हैं.
बकरीद पर बकरा, भेड़ और ऊंट की कुर्बानी देने की परंपरा है. उस बकरे के गोश्त को अपने परिवार, रिश्तेदारों और जरूरतमंद लोगों में बांट दिया जाता है. इस बात का ख्याल रखा जाता है कि जिस जानवर की कुर्बानी दी जा रही है, वह किसी प्रकार से बीमार न हो.
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