परिक्रमा भगवान की साधना करने की एक प्रक्रिया है. Image- Canva
हिंदू धर्म में विभिन्न प्रकार से देवी-देवताओं की पूजा होती हैं. धार्मिक स्थलों पर देवताओं को अगरबत्ती, फूल, ध्वज, नारियल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं और भगवान की परिक्रमा लगाई जाती है. परिक्रमा को फेरी लगाना भी कहते हैं. किसी भी देवी-देवता की उपासना में परिक्रमा का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि बिना परिक्रमा के पूजा अधूरी रह जाती है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि परिक्रमा भगवान की साधना करने की एक प्रक्रिया है, इससे देवता प्रसन्न होते हैं और सभी संकटों का निवारण करते हैं. लेकिन शास्त्रों में प्रत्येक देवता की परिक्रमा के विशेष नियम बताए गए हैं. ऐसे में नियमों के अनुसार परिक्रमा करनी चाहिए.
परिक्रमा के नियम व लाभ
शास्त्रों के अनुसार, धार्मिक स्थलों पर दंडवत परिक्रमा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है. किसी देवता की मूर्ति की परिक्रमा शुरू करने के बाद उसे अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए और जहां से प्रारंभ की है, वहीं परिक्रमा खत्म करनी चाहिए. परिक्रमा के समय एकदम शांत रहें, किसी से बात नहीं करनी चाहिए और जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ध्यान करना चाहिए.
किस देवता के कितनी परिक्रमा करें
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, जिस प्रकार सभी देवताओं की पूजा विधि विभिन्न होती है, उसी तरह देवताओं की परिक्रमा का अलग-अलग विधान होता है. भगवान शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि सोम सूत्र को लांघना उचित नहीं होता. शिवलिंग से दूध व जल की धारा जहां बहती हो, उसे सोम सूत्र कहते हैं. जिसे लांघना शुभ नहीं होता है.
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इसी तरह सूर्य भगवान की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए और साथ में सूर्य देव के मंत्रों का जाप करना चाहिए. मां दुर्गा की केवल एक परिक्रमा दी जाती है. इसी तरह भगवान गणेश की परिक्रमा तीन बार करनी चाहिए. भगवान विष्णु की परिक्रमा चार बार करनी चाहिए. शास्त्रों में अन्य देवताओं के लिए तीन परिक्रमा का उल्लेख मिलता है.
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