लक्ष्मी कवच से धन संपत्ति, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
आज शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है. आज शाम को पूजा के समय माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें. उस दौरान श्री लक्ष्मी कवच का पाठ करें. यह लक्ष्मी कवच इतना प्रभावशाली माना जाता है कि इसका पाठ करने मात्र से माता लक्ष्मी सुरक्षा प्रदान करती हैं. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी बताते हैं कि लक्ष्मी कवच से धन संपत्ति, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. इस कवच के प्रभाव से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है, दुश्मनों पर विजय मिलती है. भगवान मधुसूदन ने जब देवराज इंद्र को लक्ष्मी कवच प्रदान किया था, उस समय उन्होंने बताया था कि जो भी व्यक्ति लक्ष्मी कवच को धारण करता है, उसे सभी दुखों का नाश हो जाता है और परम ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
लक्ष्मी कवच पाठ विधि
श्री लक्ष्मी कवच का पाठ प्रारंभ करने से पूर्व आप माता लक्ष्मी की मूर्ति को स्नान कराएं. उसके बाद माता लक्ष्मी को लाल गुलाब, कमल पुष्प, कमलगट्टा, कुमकुम, अक्षत्, नैवैद्य, पान का पत्ता, सुपारी, इलायची, हल्दी, नारियल, पीली कौड़ी, धूप, दीप आदि अर्पित करें. फिर माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं. मखाने की खीर या चावल का खीर ठीक रहेगा.
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इसके बाद माता लक्ष्मी का ध्यान करें और लक्ष्मी कवच का पाठ प्रारंभ करें. लक्ष्मी कवच का पाठ करते समय शुद्ध उच्चारण करें. शुद्ध उच्चारण न करने पर पाठ का लाभ प्राप्त नहीं होता है.
लक्ष्मी कवच
श्रीमधुसूदन उवाच
गृहाण कवचं शक्र सर्वदुःखविनाशनम्।
परमैश्वर्यजनकं सर्वशत्रुविमर्दनम्॥
ब्रह्मणे च पुरा दत्तं संसारे च जलप्लुते।
यद् धृत्वा जगतां श्रेष्ठः सर्वैश्वर्ययुतो विधिः॥
बभूवुर्मनवः सर्वे सर्वैश्वर्ययुतो यतः।
सर्वैश्वर्यप्रदस्यास्य कवचस्य ऋषिर्विधि॥
पङ्क्तिश्छन्दश्च सा देवी स्वयं पद्मालया सुर।
सिद्धैश्वर्यजपेष्वेव विनियोगः प्रकीर्तित॥
यद् धृत्वा कवचं लोकः सर्वत्र विजयी भवेत्॥
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मूल कवच पाठ
मस्तकं पातु मे पद्मा कण्ठं पातु हरिप्रिया।
नासिकां पातु मे लक्ष्मीः कमला पातु लोचनम्॥
केशान् केशवकान्ता च कपालं कमलालया।
जगत्प्रसूर्गण्डयुग्मं स्कन्धं सम्पत्प्रदा सदा॥
ओम श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा पृष्ठं सदावतु।
ओम श्रीं पद्मालयायै स्वाहा वक्षः सदावतु॥
पातु श्रीर्मम कंकालं बाहुयुग्मं च ते नमः॥
ओम ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः पादौ पातु मे संततं चिरम्।
ओम ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा पातु नितम्बकम्॥
ओम श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा सर्वांगं पातु मे सदा।
ओम ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मां पातु सर्वतः॥
फलश्रुति
इति ते कथितं वत्स सर्वसम्पत्करं परम्।
सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं शरयेत्तु यः।
कण्ठे वा दक्षिणे बांहौ स सर्वविजयी भवेत्॥
महालक्ष्मीर्गृहं तस्य न जहाति कदाचन।
तस्य छायेव सततं सा च जन्मनि जन्मनि॥
इदं कवचमज्ञात्वा भजेल्लक्ष्मीं सुमन्दधीः।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः॥
॥इति श्रीब्रह्मवैवर्ते इन्द्रं प्रति हरिणोपदिष्टं लक्ष्मीकवचं॥
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