दशहरा के दिन रावण, कुंभकर्ण और इंद्रजीत के बड़े-बड़े पुतले बनाए जाते हैं.
Dussehra 2022 : दशहरा नवरात्रि के दसवें दिन मनाया जाता है. ये पर्व हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस दिन रावण के पुतले का दहन असत्य पर सत्य की विजय के रूप में किया जाता है. रावण के पुतले को जलाने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है. कई जगह ऐसी हैं, जहां बड़ी ही अजीबोगरीब परंपराएं देखने को मिलती हैं. जिनमें रावण के पुतले को जलाने के बाद उसकी लकड़ियां शुभ मानकर घर ले जाई जाती हैं. ऐसा क्यों किया जाता है इसके विषय में हमें बता रहे हैं भोपाल के रहने वाले ज्योतिषी एवं पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
बैतूल में है यह परंपरा
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दशहरे पर हर साल रावण के पुतले जलाने की परंपरा पिछले 64 सालों से चली आ रही है. इस शहर में रावण दहन कार्यक्रम देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं. रावण दहन होने के बाद वहां मौजूद लोग उसकी जली हुई लकड़ियां बटोर कर अपने घर ले जाते हैं.
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क्यों ले जाते हैं रावण के पुतले की जली हुई लकड़ियां?
प्रचलित मान्यता के अनुसार रावण दहन के बाद जली हुई लकड़ियां घर ले जाकर अपने घर के पूजा कक्ष में रख देते हैं तो वहीं कुछ लोग इस जली हुई लकड़ी को अपने घर के मुख्य हिस्से में सुरक्षित रख देते हैं. वहां मौजूद लोगों की पूरी कोशिश रहती है कि पुतले की लकड़ी खाक बनने से पहले ही उसे बटोर लिया जाए.
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नहीं होती धन-धान्य की कमी
मान्यता है कि रावण दहन के बाद जली हुई लकड़ी घर ले जाने से परिवार में धन-धान्य की कमी नहीं होती. इस शहर के लोगों का मानना है कि इस जली हुई लकड़ी को घर में लाने से परिवार में खुशियां आती हैं, धन आगमन के साधन बनते हैं और हर काम में सफलता प्राप्त होती है.
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