मृत्यु के बाद शरीर को पंचतत्वों में विलीन करते हैं. Image- Canva
जीवन और मरण इस सृष्टि का शाश्वत नियम है. धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु भी निश्चित है. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा अजर-अमर होती है, लेकिन आत्मा को धारण करने वाला शरीर नश्वर होता है. मृत्यु के बाद हिंदू धर्म के 16वें संस्कार दाह संस्कार की रस्में निभाई जाती हैं. परिजन मृत्यु के बाद नश्वर शरीर के लिए विलाप करते हैं और उस नश्वर शरीर को पंचतत्वों में विलीन करते हैं. मृत्यु के बाद ना तो शरीर का तुरंत दाह संस्कार नहीं किया जाता है और ना ही दाह संस्कार करने तक शव को अकेला छोड़ा जाता है. आइए जानते हैं अंतिम संस्कार की रस्मों से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.
तुरंत दाह संस्कार की मनाही
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद रस्मों के अनुसार उसका तुरंत दाह संस्कार नहीं किया जाता है. इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं. गरुड़ पुराण में वर्णन है कि दाह संस्कार से पहले मृतक के रिश्तेदारों का इंतजार किया जाता है. सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने से मृतक अगले जन्म में असुर बनता है. व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शरीर से पूरी तरह से प्राण निकलने में समय लगता है, इसलिए मृतक का तुरंत अंतिम संस्कार नहीं किया जाता.
इसलिए शव को नहीं छोड़ते अकेला
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृतक के शरीर के अंतिम संस्कार से पहले उसके शव को अकेले नहीं रखना चाहिए. माना जाता है कि शव को अकेले रखने से उसमें बुरी आत्माएं प्रवेश कर मृत शरीर पर अधिकार कर सकती है. शव को अकेला छोड़ने से हिंसक पशु-चींटी या कोई अन्य नरभक्षी जानवर उसे नोच कर खा सकता है. शव को अकेले रखने से उस पर कीड़े या दूसरे छोटे कीट पतंगे रेंग सकते हैं, इसलिए किसी भी व्यक्ति का शव के पास होना अनिवार्य है.
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