भगवान विष्णु ने ऋषि दुर्वासा पर चलाया था सुदर्शन चक्र. (image-canva)
हिंदू धर्म ग्रंथों में भक्तों की कई कथाएं प्रसिद्ध है. इनमें एक भक्त- कथा राजा अम्बरीष की भी है, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्होंने पत्नी सहित एकादशी के व्रत का संकल्प पूरा किया था. जिससे प्रसन्न भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा के लिए ऋषि दुर्वासा पर सुदर्शन चक्र चला दिया था. इस लेख में उन्हीं राजा अम्बरीष के बारे में बताया जा रहा है.
राजा अम्बरीष व ऋषि दुर्वासा की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार राजा अम्बरीष वैवस्वत मनु के पपौत्र और राजर्षि नाभाग के पुत्र थे. सात द्वीप वाली पृथ्वी के स्वामी होने पर भी उनकी भोगों में बिल्कुल आसक्ति नहीं थी. उन्होंने अपना पूरा जीवन परमात्मा के चरणों में समर्पित कर दिया था. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने पत्नी सहित एकादशी व्रत का नियम लिया था. व्रत पूरा करने पर जब वे उसका पारण करने लगे तभी महर्षि दुर्वासा वहां आ गए. राजा के भोजन की प्रार्थना स्वीकार कर वे यमुना तट पर स्नान के लिए चले गए.
जब द्वादशी में केवल एक घड़ी शेष होने तक भी महर्षि नहीं पहुंचे तो व्रत भंग होने का विचार कर राजा ने भगवान के चरणामृत से पारण कर लिया. जब दुर्वासा ऋषि को पता चला तो उन्हें भोजन कराए बिना व्रत का पारण करने पर वे नाराज हो गए. उन्होंने सिर के एक बाल से कृत्या नाम की राक्षसी पैदा कर दी, जो राजा अम्बरीष को मारने दौड़ी. तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षसी का वध कर दिया. इसके बाद सुदर्शन दुर्वासा की ओर दौड़ पड़ा. ये देख दुर्वासा ऋषि देवराज इंद्र, ब्रह्मा व भगवान शंकर के पास आश्रय लेने गए. जहां शिवजी ने उन्हें भगवान विष्णु की ही शरण में जाने की सलाह दी.
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अंत में दुर्वासा वैकुंठ गए और भगवान विष्णु के चरणों पर गिर पड़े. उन्होंने भी उन्हें वापस राजा अम्बरीष के पास जाने पर ही शांति मिलने की बात कही. ये सुन दुर्वासा मुनि फिर से राजा अम्बरीष के पास गए और उनके चरणों में गिर पड़े. ये देख राजा को बड़ा संकोच हुआ. उन्होंने स्तुति करके सुदर्शन को शांत कर दुर्वासा ऋषि के प्राणों की रक्षा की और ऋषि को भोजन करवाकर खुद भी भोजन ग्रहण किया.
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