श्रीकृष्ण लीला में अक्रूरजी के कई प्रसंग हैं. image-canva
श्रीकृष्ण लीला में अक्रूरजी के कई प्रसंग है. इनके पिता श्वफल्क व माता गांदिनी थी. पारिवारिक रिश्ते में ये श्रीकृष्ण के चाचा व कंस के पिता उग्रसेन के दरबारी थे. जब कंस ने पिता उग्रसेन कैद कर लिया तो भी उन्होंने दरबार नहीं छोड़ा. वे गुपचुप में लोगों को कंस के अत्याचारों से बचाते थे. वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी को उन्होंने ही मथुरा से यशोदा के पास गोकुल पहुंचाया था. श्रीकृष्ण के भी ये परम भक्त थे. जिन्हें भगवान ने नदी में स्नान करते समय अपने चतुर्भुज रूप का दर्शन करवाया था. आज वही कथा हम आपको बताने जा रहे हैं.
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श्रीकृष्ण को मरवाने के लिए अक्रूर को भेजना
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार अक्रूरजी के प्रसंगों का उल्लेख महाभारत, भागवत, भक्तमाल व ब्रह पुराण सहित कई धर्म ग्रंथों में मिलता है. जिनके अनुसार जब श्रीकृष्ण को मरवाने के कंस के सभी उपाय विफल हो गए तब उसने एक धनुष यज्ञ रचा. वह मल्लयुद्ध में श्रीकृष्ण को मरवाना चाहता था. इसके लिए उसने अक्रूरजी को श्रीकृष्ण व बलराम को व्रज से लाने को कहा. यह सुनकर अक्रूरजी चल दिए. वे भगवान के दर्शन के लिए बड़े उत्सुक थे. रास्ते में वे कई प्रकार के मनोरथ करते जाते थे. सोचते थे कि उन पीतांबरधारी भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर रूप को अपनी आंखों से देख सकूंगा. तरह-तरह की कल्पना करते हुए वे वृंदावन पहुंचे. जहां पहुंचते ही वह रथ से कूदकर श्रीकृष्ण के चरण पडऩे वाली धूल में लौटने लगे. जैसे- तैसे घर पहुंचकर नंद बाबा व यशोदा को समझाकर वे श्रीकृष्ण व बलराम को लेकर मथुरा रवाना हुए.
नहाते समय हुए चतुर्भुज रूप के दर्शन
मथुरा जाते समय रास्ते में अक्रूरजी ब्रह्मह्रद स्थान पर यमुना में स्नान के लिए रुके. उनके मन में कंस के षडय़ंत्र की चिंता थी. जिसे दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना चतुर्भुज रूप दिखाया. स्नान करने के लिए जैसे ही अक्रूरजी ने नदी में डुबकी लगाई, वैसे ही उन्हें पानी में चतुर्भुज भगवान श्रीकृष्ण दिखाई दिए. घबरा कर बाहर निकले तो दोनों भाई रथ पर बैठे दिखे. दुबारा डुबकी लगाई तो फिर वही मूर्ति जल के भीतर दिखाई दी. तब अक्रूर जी को ज्ञान हो गया कि श्रीकृष्ण सर्वव्यापक ब्रह्म है. इसके बाद उन्हें प्रणाम कर वे मथुरा पहुंचे. यहां अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण से घर चलने की प्रार्थना की तो उन्होंने कंस के वध के बाद ही घर आने की बात कही. फिर कंस को मारकर भगवान अक्रूरजी के घर गए. जिन्हें देख अक्रूरजी के आनंद का ठिकाना नहीं रहा.
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श्रीकृष्ण को बताया पांडवों का हाल
श्रीमद्भागवत व ब्रह्म पुराण के अनुसार महाभारत काल में हस्तिनापुर के समाचार लेने के लिए श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी को ही भेजा था. जिन्होंने ही श्रीकृष्ण को पाण्डवों पर कौरवों के अन्याय की जानकारी दी थी. पुराणों में सत्राजित की स्यमंतक मणि भी अक्रूरजी के पास ही रहने का जिक्र है. जिसे द्वारका में अकाल पडऩे पर श्रीकृष्ण ने उसने मंगवाई थी. कथाओं के अनुसार मृत्यु के बाद अक्रूरजी की पत्नियां तपस्या के लिए वन में चली गई थी. जिन्हें श्रीकृष्ण के पौत्र वज्र ने रोकने की कोशिश की थी.
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