वनवास के समय ऋषि दुर्वासा द्रौपदी की परीक्षा लेने के लिए पहुंचे थे. image-canva
Mahabharat: महाभारत काल में पांडव पत्नी द्रौपदी का जीवन बहुत कठिनाई भरा रहा, पर वह भगवान श्रीकृष्ण की परम सखी भक्त थीं, ऐसे में भगवान ने कदम- कदम पर उनका साथ दिया. द्रौपदी की वनवास काल की ऐसी ही एक कथा काफी प्रसिद्ध है, जिसमें एक हजार शिष्यों के साथ भोजन करने आए ऋषि दुर्वासा को द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की कृपा से एक चावल के दाने से संतुष्ट कर दिया.
द्रौपदी और ऋषि दुर्वासा के भोजन की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार द्रुपद की बेटी द्रौपदी धनुष यज्ञ में अर्जुन द्वारा जीते जाने पर पांडवों की पत्नी बनी. कौरवों से जुए में हार के बाद मिले वनवास में वह पांडवों के साथ थी. इसी समय दुर्योधन के कहने पर ऋषि दुर्वासा द्रौपदी की परीक्षा लेने अपने दस हजार शिष्यों के साथ पांडवों के पास पहुंच गए.
यहां उन्होंने भोजन करने की इच्छा जताई. तब तक पांडवों सहित द्रौपदी भोजन कर चुकी थी. चूंकि पांडवों के पास भगवान सूर्य के चमत्कारिक पात्र से तब तक ही भोजन प्राप्त करने का वरदान था, जब तक द्रौपदी भोजन नहीं कर लेती. ऐसे में भोजन कराना संभव नहीं जान पांडव ऋषि के शाप की आशंका से चिंता में पड़ गए.
पर हमेशा की तरह इस संकट में भी द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को ही याद किया. भक्त की पुकार सुन भगवान भी तुरंत वहां पहुंच गए. इस समय ऋषि दुर्वासा शिष्यों सहित स्नान के लिए नदी पर गए हुए थे. श्रीकृष्ण ने भी आते ही भूख लगने की बात कहकर भोजन ही मांग लिया.
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ये सुन द्रौपदी ने शर्म से सिर झुकाकर सारा भोजन खत्म होने की बात कही. इस पर कृष्ण ने द्रौपदी को भोजन का पात्र लाने को कहा. जब द्रौपदी वह पात्र लेकर आईं तो उस पर चावल का एक दाना बचा हुआ मिला. श्रीकृष्ण ने वही दाना खा लिया. परमब्रह्म के उस एक दाने के खाने से ही ब्रह्माण्ड के सभी जीवों का पेट भर गया. जिसके बाद दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों सहित वापस वहां से लौट गए. इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की वनवास में भी लाज रखी.
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