राम भक्त शबरी की कथा.,image-canva
भगवान राम की परम भक्त शबरी का नाम तो हर किसी ने सुना है. सीता की खोज करते हुए भगवान राम इस भक्त शिरोमणी के आश्रम पहुंचे थे. जिसके भक्ति भाव को देख श्रीराम ने उसके झूठे फल भी खाए. शबरी ने ही बाद में भगवान राम को सुग्रीव का पता बताया था. जिससे मित्रता के बाद सीता की खोज कर भगवान राम ने रावण का वध किया था. पर कम ही लोग जानते हैं की यह शबरी एक भील कुल में जन्मी थी, जो अपने विवाह के समय घर छोड़कर वन में भाग आई थी. जहां मतंग ऋषि ने उसे श्रीराम का मंत्र दिया था. शबरी की उसी कथा को आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
शबरी की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार धर्म ग्रंथों के अनुसार शबरी भील कुल में जन्मी थी. जब उसका विवाह होने लगा तो घर में बलि के पशु लाए गए थे. जिन्हें देख उसका दिल पिघल गया और वह चुपचाप घर से निकलकर दण्डकारण्य में चली गई. यहां वह छिपकर ऋषि- मुनियों की सेवा करने लगी. उनके आश्रम में लड़कियां रखने के अलावा वह उनके मार्ग को झाड़- बुहार कर साफ करने लगी. इस पर मतंग ऋषि के कहने पर उनके शिष्यों ने पहरा देकर उसे पकड़ लिया. पर जब वह मतंग मुनि के सामने ले जायी गई तो उसका भक्ति भाव देखकर मुनि की आंखें भी आंसुओं से भर उठी. उन्होंने अपने आश्रम में रहने की अनुमति देकर उसे भगवान राम का मंत्र दिया. जिसे जपते हुए वह गुरु की सेवा करने लगी. जब मुनि मतंग शरीर छोड़कर परम धाम को जाने लगे तो शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी. तक गुरु मतंग ने उसे भगवान राम के दर्शन होने की बात कहते हुए उसे भगवान की प्रतीक्षा करने को कहा. तब से वह भगवान राम की प्रतीक्षा करने लगी.
राम भक्ति में यूं खोई थी सुध- बुध
गुरु मतंग के आशीर्वाद से शबरी का राम के नाम में ऐसा मन लगा कि वह अपनी सुध-बुध ही भूल गई. हर दिन वह भगवान राम की उत्साह से प्रतीक्षा करती. जैसे- जैसे दिन बीतते, वैसे- वैसे राम दर्शन की उसकी इच्छा बढ़ती जा रही थी. पत्तो की आवाज व हल्की सी आहट सुनते ही वह उतावली होकर कुटिया से बाहर आकर इधर- उधर देखने लगती. पेड़, व पशु पक्षियों से पूछती कि उसके राम कितनी दूर है. वह सुबह कहती कि मेरे राम शाम को आएंगे और शाम को कहती कि प्रभु सवेरे तो जरूर आएंगे. श्रीराम की प्रतीक्षा में वह थोड़ी- थोड़ी देर में कुटिया से बाहर आकर देखती. श्रीराम को कांटे व कंकड़ ना चुभे, ये सोच वह रास्ता बुहारने लगती. रोजाना अपनी कुटिया को मिट्टी, गोबर व गोमूत्र से लीप कर संवारती.
वन के सबसे मीठे व स्वादिष्ट फल भी वह भगवान के लिए रोजाना तोड़कर रखती. इस तरह हर पहर व हर पल भगवान राम की प्रतीक्षा करते हुए वह भक्ति में पागल सी हो गई थी. आखिर में वो दिन भी आया जब भगवान राम सीता की खोज करते हुए शबरी की कुटिया में आए. जिन्हें देखकर तो भाव से विभोर हुई शबरी प्रेम के आंसुओं से पूरी भीग गई. पद्म पुराण के अनुसार बावली सी हुई शबरी भगवान के लिए लाए फलों को खुद चखकर उन्हें देने लगी. जिसे भगवान राम ने भी भक्ति के वश होकर प्रेम से खाए. बाद में भक्ति का आशीर्वाद देकर उन्होंने शबरी को अपने परम धाम भेजा.
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