भगवान शिव की सती त्याग की कथा, image-canva
भगवान शिव महादेव ही नहीं, महाभक्त भी हैं. रामचरितमानस व कई पौराणिक कथाओं में उन्हें भगवान विष्णु व उनके स्वरूप श्रीराम का परम भक्त कहा गया है. उनकी भक्ति की महिमा से जुड़ी कई कथाएं भी धर्म ग्रंथों में हैं. उन्हीं में एक कथा भक्ति के लिए पत्नी सती का त्याग करने की भी है. आज हम आपको वही कथा बताने जा रहे हैं.
भगवान शंकर द्वारा सती त्याग की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार त्रेतायुग में रावण ने जब सीता का हरण कर लिया था, तब भगवान राम भाई लक्ष्मण के साथ व्याकुल होकर उन्हें वन में ढूंढ रहे थे. इसी समय भगवान शंकर पत्नी सती के साथ ऋषि अगस्त्य से राम कथा सुनकर दण्डक वन होते हुए कैलाश जा रहे थे. दण्डक वन में भगवान राम को देखकर उनकी लीला में बाधा नहीं डालने की सोचकर उन्होंने दूर से ही उन्हें प्रणाम किया.
ये भी पढ़ें: कारगर और प्रभावी होते हैं फेंगशुई के ये उपाय, घर पर रखें इनसे जुड़ी चीजें
ये भी पढ़ें: भगवान राम के चरणों में हैं 22 चिह्न, जानें क्या हैं उनकी विशेषताएं
ये देख सती को बहुत शंका हुई कि जिन भगवान शंकर की पूजा सब करते हैं, वे एक तपस्वी को क्यों प्रणाम कर रहे हैं? यदि ये भगवान विष्णु हैं तो स्त्री के लिए इतने व्याकुल क्यों हैं? इन्हीं शंकाओं के साथ जब उन्होंने भगवान शंकर से सवाल किया तो उन्होंने सती को भगवान की लीला बताते हुए खूब समझाया. फिर भी सती को संतोष नहीं हुआ. इसके बाद वे मना करने पर भी श्रीराम की परीक्षा लेने दण्डक वन चली गईं.
सीता रूप धरने पर भी किया प्रणाम
गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस के अनुसार, श्रीराम की परीक्षा के लिए सती ने सीताजी का रूप धारण कर लिया. जैसे ही भगवान राम ने उन्हें देखा तो पहचानकर सिर झुकाकर प्रणाम किया. फिर मुस्कुरा कर पूछा कि भगवान शंकर कहां हैं? आप वन में अकेली कैसे घूम रही हैं? इसके बाद उन्होंने अचरज में पड़ी सती जी को अपना विराट रूप भी दिखाया.
तब सती जी सकुचाकर वहां से कैलाश पर्वत चली गईं. जब भगवान शंकर ने जाना कि सती ने मां सीता जी का रूप बनाया था, तो भक्तिवश उन्होंने उस शरीर से पत्नी भाव छोड़ दिया और भगवान की लीला समझते हुए समाधि में लीन हो गए. हजारों वर्षों बाद जब उनकी समाधि टूटी, तब सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया. जहां पहुंची सती ने जब अपने पति भगवान शंकर का यज्ञ में भाग नहीं देखा तो क्रोधित होकर उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया.
बाद में फिर हिमालय के घर में जन्म लेकर तप से शंकर जी को फिर से प्राप्त किया. इस तरह भगवान राम की भक्ति में भगवान शंकर ने सती का परित्याग कर उन्हें अगले जन्म में फिर प्राप्त किया.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Dharma Aastha, Lord Ram, Lord Shiva