Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा पर क्यों किया जाता है गंगा स्नान, क्या है इसका महत्व

गंगा सहित पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है.
स्कंद पुराण के अनुसार जो इंसान कार्तिक मास (Kartik Month) में प्रतिदिन स्नान करता है, वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय (Sunrise) से पूर्व iगंगा स्नान (Ganga Snan) करे तो भी पूर्ण फल का भागी हो जाता है.
- News18Hindi
- Last Updated: November 25, 2020, 12:00 PM IST
कार्तिक मास की अमावस्या का जितना महत्व माना गया है उतना ही महत्व कार्तिक मास की पूर्णिमा (Kartik Purnima) का माना जाता है. इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा 30 नवंबर 2020 को पड़ रही है. इस दिन दान और गंगा स्नान (Ganga Snan) करने का विशेष महत्व माना गया है. प्रत्येक वर्ष में 12 पूर्णिमा आती हैं लेकिन जब अधिक मास या मलमास आता है तो इनकी संख्या 13 हो जाती है. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन जब चंद्रमा आकाश में उदित होता है उस समय चंद्रमा की 6 कृतिकाओं का पूजन करने से शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पूरे वर्ष का स्नान करने का फल मिलता है.
गंगा स्नान से मिलता है पूरे वर्ष का फल
कार्तिक पूर्णिमा लोगों को देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है. इस माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को पुराणों ने अति पुष्करिणी कहा है. स्कंद पुराण के अनुसार जो इंसान कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है, वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करे तो भी पूर्ण फल का भागी हो जाता है. कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है. माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है. इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है.
इसे भी पढ़ेंः Kartik Purnima 2020: कब है कार्तिक पूर्णिमा, जानें इस दिन दान-स्नान का महत्व और पौराणिक कथाब्रह्म सरोवर का अवतरण हुआ था
इसी दिन ब्रह्मा जी का ब्रह्म सरोवर पुष्कर में अवतरण हुआ था. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों तीर्थ यात्री पुष्कर आते हैं. पवित्र पुष्कर सरोवर में स्नान कर ब्रह्मा जी के मंदिर में पूजा करते हैं और दीपदान करते हैं. एक कथा यह भी प्रचलित है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया, जो शिव के अनेक नामों में से एक है.
इसी दिन हुआ था त्रिपुरासुर का अंत
इस संदर्भ में एक कथा है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे. त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया था. त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था. उसके तप से तीनों लोक जलने लगे. तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं. इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा. सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से इस दैत्य के अंत का उपाय पूछा. ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया. देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए प्रार्थना की. तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का निर्णय लिया. महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा. कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया. उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानी काशी में आकर दीपावली मनाई.
इस दिन देवता काशी में मनाते हैं दीपावली
यह परंपरा काशी में चली आ रही है. माना जाता है कि कार्तिक मास के इस दिन काशी में दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है. पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने धर्म, वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था. इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को दोबारा जगते हैं.
योगनिद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु
भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवताओं ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती करके दीप प्रज्ज्वलित किए थे. इस दिन देवताओं की दीपावली होती है. इस दिन दीप दान व व्रत-पूजा करके हम भी देवों की दीपावली में शामिल होते हैं ताकि हम अपने भीतर देवत्व धारण कर सकें अर्थात सद्गुणों को अपने अंदर समाहित कर सकें. देवों की दीपावली हमें आसुरी प्रवृत्तियों अर्थात दुर्गुणों को त्यागकर सद्गुणों को धारण करने के लिए प्रेरित करती है.
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कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की मिलेगी कृपा
कार्तिक महीना भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह माना जाता है. इसी कारण इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा. नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर संपूर्ण सद्गुणों की प्राप्ति और शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के दर्शन करने का विधान है. पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप-तप, पूजन, कीर्तन और दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा का श्रवण, गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्जमुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्ज्वलित करने चाहिए, गंगा जैसी पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए.(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें).
गंगा स्नान से मिलता है पूरे वर्ष का फल
कार्तिक पूर्णिमा लोगों को देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है. इस माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को पुराणों ने अति पुष्करिणी कहा है. स्कंद पुराण के अनुसार जो इंसान कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है, वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करे तो भी पूर्ण फल का भागी हो जाता है. कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है. माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है. इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है.
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इसी दिन ब्रह्मा जी का ब्रह्म सरोवर पुष्कर में अवतरण हुआ था. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों तीर्थ यात्री पुष्कर आते हैं. पवित्र पुष्कर सरोवर में स्नान कर ब्रह्मा जी के मंदिर में पूजा करते हैं और दीपदान करते हैं. एक कथा यह भी प्रचलित है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया, जो शिव के अनेक नामों में से एक है.
इसी दिन हुआ था त्रिपुरासुर का अंत
इस संदर्भ में एक कथा है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे. त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया था. त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था. उसके तप से तीनों लोक जलने लगे. तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं. इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा. सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से इस दैत्य के अंत का उपाय पूछा. ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया. देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए प्रार्थना की. तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का निर्णय लिया. महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा. कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया. उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानी काशी में आकर दीपावली मनाई.
इस दिन देवता काशी में मनाते हैं दीपावली
यह परंपरा काशी में चली आ रही है. माना जाता है कि कार्तिक मास के इस दिन काशी में दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है. पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने धर्म, वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था. इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को दोबारा जगते हैं.
योगनिद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु
भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवताओं ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती करके दीप प्रज्ज्वलित किए थे. इस दिन देवताओं की दीपावली होती है. इस दिन दीप दान व व्रत-पूजा करके हम भी देवों की दीपावली में शामिल होते हैं ताकि हम अपने भीतर देवत्व धारण कर सकें अर्थात सद्गुणों को अपने अंदर समाहित कर सकें. देवों की दीपावली हमें आसुरी प्रवृत्तियों अर्थात दुर्गुणों को त्यागकर सद्गुणों को धारण करने के लिए प्रेरित करती है.
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कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की मिलेगी कृपा
कार्तिक महीना भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह माना जाता है. इसी कारण इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा. नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर संपूर्ण सद्गुणों की प्राप्ति और शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के दर्शन करने का विधान है. पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप-तप, पूजन, कीर्तन और दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा का श्रवण, गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्जमुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्ज्वलित करने चाहिए, गंगा जैसी पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए.(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें).