बद्रीनाथ धाम क्षेत्र के देवता माने जाते हैं घंटाकर्ण
Badrinath Dham: भगवान विष्णु की भक्ति का महत्व अतुल्य है, मान्यता है कि जो भी विष्णु जी के पूजन को सिद्ध कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है. यदि किसी पर श्रीहरि की कृपा हो तो उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और वह भगवान के परम धाम को जाता है. भक्त वत्सल श्री नारायण की भक्ति के फल से जन्म, जरा, व्याधि और मृत्य के इस अकाट्य चक्र से मुक्ति मिल जाती है. यह कथा भी एक ऐसे ही भक्त की है, जिसे पिशाच योनि में जन्म लेने के बाद भी भगवान की अनुकंपा प्राप्त हुई और भगवान ने उसके सभी कष्टों को हर लिया. यह कथा है बद्रीनाथ धाम क्षेत्र के क्षेत्रपाल देवता – घंटाकर्ण पिशाच की. पंडित इंद्रमणि घनस्याल से जानते हैं कैसे ये पिशाच बन गया नारायण का भक्त और मिल गया श्रीहरि के चरणों का परम धाम.
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घंटाकर्ण थे शिव के परम भक्त
पुराणों की मान्यता के अनुसार, घंटाकर्ण पिशाच योनि में जन्मा एक पिशाच था, जो भगवान शिव का परम उपासक था. देवाधिदेव महादेव का ये उपासक शिव भक्ति में डूबा रहता था.
क्यों पड़ा घंटाकर्ण नाम
एक तरफ जहां घंटाकर्ण भगवान शिव का भक्त था, वहीं उसे भगवान नारायण के नाम से भी बैर था. अगर कोई भी उसके आसपास नारायण का नाम लेता तो उसके मन में कुढ़न होती, इसलिए उसने भगवान के नाम के श्रवण से बचने के लिए अपने कानों में एक एक घंटा लटका लिया. इससे जब भी कोई उसके आसपास भगवान विष्णु का नाम लेता तो घंटे की आवाज वह स्वर दबा लेती.
जब बन गया घंटाकर्ण विष्णु जी का भक्त
भगवान के नाम से चिढ़ने वाले घंटाकर्ण को मोक्ष की अभिलाषा थी, जिसके लिए उसने अपने आराध्य शिव की तपस्या की. भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए पर उसकी मोक्ष अभिलाषा पूर्ण करने में असमर्थ थे. उन्होंने घंटाकर्ण को श्रीहरि की भक्ति का मार्ग अपनाने को कहा. महादेव के आदेशानुसार घंटाकर्ण अब विष्णु जी की भक्ति करने लगा.
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भगवान हुए प्रसन्न और बरसाई कृपा
घंटाकर्ण ने भगवान विष्णु से मोक्ष की अभिलाषा के साथ बद्रीनाथ में उसी स्थान पर तपस्या की, जहां भगवान नारायण ने अपनी तपस्या की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने घंटाकर्ण को दर्शन दिए और उसे बद्रीनाथ धाम का क्षेत्रपाल नियुक्त करते हुए कहा, “हे घंटाकर्ण, मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं. आज से तुम इस बद्रीनाथ क्षेत्र के क्षेत्रपाल हो और जैसे ही इंद्र का यह काल पूर्ण होगा, मेरे पार्षद स्वयं तुम्हे बैकुंठ लेने के लिए आयेंगे.”
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