नंदा सप्तमी व्रत को करने से सूर्य लोक का सुख प्राप्त होता है. image-canva
Nanda Saptami 2022: मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी नंदा सप्तमी कहलाती है. इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक सूर्य भगवान का पूजन व व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छा पूरी हो जाती है. अंत समय में सूर्य लोक की प्राप्ति भी होती है. भविष्यपुराण सहित कई धर्म ग्रंथों में इस व्रत की विधि बताई गई है.
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नंदा सप्तमी की व्रत विधि
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, नंदा सप्तमी के व्रत के लिए व्रतकर्ता को पंचमी तिथि को एकभुक्त (आधे दिन का) और षष्ठी तिथि में नक्त व्रत (रात्रि व्रत) कर सप्तमी तिथि को उपवास करना चाहिए. इस दिन व्रती को सुबह जल्दी स्नान कर मालती के फूल, चंदन, कपूर व अगर से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए. सूर्य भगवान के विष्णु, भग तथा धाता नाम का स्मरण करते हुए मिश्री, दही व भात का भोग लगाना चाहिए. ब्राह्मण को भी भात, दही व मिश्री का भोजन करवाकर खुद भी यही भोजन करना चाहिए.
तीन पारणा का विधान
पंडित जोशी के अनुसार नंदा सप्तमी व्रत में तीन पारणा करने का विधान है.पहले पारणा में पलाश के फूल, कपूर, चंदन, कुटकी, कस्तूरी, गुन्जन, कुंकुम व धूप आदि से भगवान सूर्य की पूजा करनी चाहिए. दूसरे पारणा में कृष्णागरु, सफेद कमल, सुगन्धबाला, कस्तूरी, चंदन, तगरु, नागर मोथा, शक्कर, धूप के साथ सूर्य नारायण को पूए का भोग लगाना चाहिए.
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इसी तरह तीसरे पारणा में नीले या सफेद कमल और गुग्गुल के धूप और खीर का भोग सूर्य भगवान को अर्पित करना चाहिए. दूसरे पारणा में व्रर्तकर्ता के लिए निम्ब के पत्ते व तीसरे पारणा में चंदन के सेवन का विधान है. हर पारणा में ‘विष्णु: प्रीयताम’ का उच्चारण करते हुए व्रतकर्ता को ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए.
भविष्यपुराण के अनुसार इस विधि से व्रत करने पर मनुष्य की सभी सांसारिक इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. अनंत काल तक आनंदित रहते हुए मनुष्य सूर्य लोक का सुख भी भोगता है.
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