भीष्म ने अपने पिता की खुशी के लिए बड़ा त्याग किया था. image-canva
भीष्म पितामह महाभारत काल के प्रमुख पात्रों में एक हैं. ब्रह्मचारी रहने व राजा नहीं बनने की अपनी प्रतिज्ञा को उन्होंने आजीवन निभाया था. भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त के रूप में भी उनकी पहचान है. पर बहुत कम लोग हैं, जो उनकी प्रतिज्ञा व जीवन की जानकारी रखते हैं. ऐसे में आज हम आपको भीष्म पितामह का पूरा जीवन चरित्र सार रूप में बताने जा रहे हैं.
भीष्म पितामह की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, भीष्म महाराज शांतनु के औरस पुत्र थे, जो गंगा देवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. उनका नाम देवव्रत रखा गया था. निषाद की बेटी सत्यवती पर मोहित हुए शांतनु की पीड़ा देखकर देवव्रत ने मंत्रियों द्वारा पिता के दुख का कारण जान लिया. पिता की प्रसन्नता के लिए उन्होंने सत्यवती के पिता दासराज के पास जाकर पिता के लिए सत्यवती का हाथ मांगा.
इस पर दासराज ने जब उनके रहते सत्यवती के पुत्रों के राजा नहीं बनने की बात उठाई तो उन्होंने आजीवन सिंहासन पर ना बैठने और अपने पुत्रों के राजा बनने की संभावना खत्म करने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा ले ली. जिसके बाद से ही देवव्रत भीष्म व उनकी प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा कहलाई. सत्यवती से विवाह होने के बाद पिता शांतनु ने प्रसन्न होकर बेटे भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया.
परशुराम से सीखी शस्त्र विधा
भीष्म ने परशुरामजी से शस्त्र विद्या सीखी थी. दुर्योधन की नीति देखकर उन्होंने उसे कई बार समझाया था, पर वह नहीं समझा. जब युद्ध का समय आया तब पांडवों में मन होने पर भी उन्होंने राज सिंहासन के प्रति प्रतिबद्ध होने की वजह से कौरवों के सेनापति के रूप में पांडवों से युद्ध किया.
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श्रीकृष्ण भक्त थे भीष्म
भीष्म ज्ञानी, दृढ प्रतिज्ञ और योद्धा होने के साथ भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. महाभारत युद्ध में शिखंडी के सामने बाण न चलाने के कारण वे उसके बाणों से बिंधकर शरशैय्या पर गिर पड़े. मृत्यु के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए वे श्रीकृष्ण का नाम जपते रहे. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब श्रीकृष्ण ध्यान में थे तो युधिष्ठिर ने उनसे ध्यान के बारे में पूछा था.
तब श्रीकृष्ण ने कहा कि शरशैय्या पर लेटे भीष्म उन्हें याद कर रहे थे, इसलिए वे भी उन्हीं का ध्यान कर रहे थे. श्रीकृष्ण जब भीष्म के पास गए तो उनकी शरशैय्या की पीड़ा भी खत्म हो गई थी. श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने भीष्म से धर्म का उपदेश प्राप्त कर महाभारत युद्ध से हुए शोक को भी शांत किया था.
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