मृत्यु के बाद आत्माओं को यमराज के समक्ष पेश होना पड़ता है. Image- Canva
धार्मिक शास्त्रों में यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है. सृष्टि से भौतिक शरीर के नष्ट हो जाने के बाद व्यक्ति की आत्माओं को यमराज के समक्ष पेश होना पड़ता है, जहां व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उनको स्वर्ग या नरक में भेजा जाता है. यमराज के सहयोगी चित्रगुप्त आत्माओं के कर्मों का हिसाब रखते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं, जो स्वयं दूसरों के प्राण हरते हैं, उनकी भी मृत्यु हो गई थी. जिसकी एक पौराणिक कथा प्रचलित है. चलिए जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से यमराज की मृत्यु से जुड़ी इस कथा के बारे में.
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सूर्य देव के पुत्र हैं यमराज
मार्कंडेय पुराण के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से सूर्य देव का विवाह हुआ था. तब संज्ञा ने भय से सूर्य की तरफ देखा तो सूर्य देव ने कहा कि तुम्हारा जो पुत्र होगा, वह लोगों के प्राण लेने वाला होगा. इसके बाद संज्ञा ने चंचल दृष्टि से सूर्य देव की ओर देखा तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी पुत्री चंचल होगी और चंचलता से नदी के रूप में बहेगी. इसके बाद संज्ञा के जुड़वां बच्चे हुए, जिसमें पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना पड़ा.
कार्तिकेय के प्रहार से हुई थी यमराज की मृत्यु
एक कथा के अनुसार, एक बार राजा श्वेत अपना राज्य त्याग कर भगवान शिव की भक्ति में लीन हो गए थे. कुछ समय बीतने के बाद यमदूत मुनि श्वेत के प्राण लेने आए. तब श्वेत मुनि प्राण त्यागना नहीं चाहते थे. तब भगवान शिव ने अपने गण भैरव को भेजा और भैरव ने डंडे के प्रहार से यमदूतों पर हमला किया. इससे यमराज क्रोधित होकर भैंसे पर बैठकर यमदंड हाथ में लेकर वहां पहुंचे. उस समय कार्तिकेय श्वेत मुनि की रक्षा करने के लिए वहां मौजूद थे. तब कार्तिकेय ने शक्ति अस्त्र से यमराज का वध कर दिया.
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शिव जी ने दिया पुनः जीवन
यमराज की मृत्यु के बाद समस्त देवतागण एकत्रित हुए और भगवान शिव से यमराज को पुनः जीवित करने की प्रार्थना की. देवताओं ने कहा कि यमराज की मृत्यु से सृष्टि में संतुलन बिगड़ जायेगा. तब सूर्य देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी से यमुना नदी का जल मंगवाया और उस जल के छींटे यमराज के मृत शरीर पर डाले, जिससे यमराज पुनर्जीवित हो गये.
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