प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है.
प्रदोष व्रत 2020 (Pradosh Vrat 2020): प्रदोष व्रत 12 नवंबर गुरुवार को है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. प्रदोष व्रत इस बार धनतेरस के दिन पड़ रहा है, जिससे व्रत का महत्व काफी बढ़ गया है. प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है. मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था. माना जाता है श्राप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था. तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी. पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने वाले साधक पर सदैव भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और उसकी दुख दारिद्रता दूर होती है और कर्ज से मुक्ति मिलती है. प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है, जो साधक के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हुए उसका कल्याण करती हैं. प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा दिन और वार के अनुसार बदल जाता है. गुरुवार के दिन पड़ने के कारण आज गुरु प्रदोष व्रत है....
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए जल्दी सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें और भगवान शिव को जल चढ़ाकर भगवान शिव का मंत्र जपें. इसके बाद पूरे दिन निराहार रहते हुए प्रदोषकाल में भगवान शिव को शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं.
प्रदोष व्रत का है विशेष महत्व
प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है. इस व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है. एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव ने महाराजा दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था. मगर इन सबमें उन्हें एक बहुत प्रिय थी. इस बात से क्रोधित होकर महाराजा दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया. कुछ समय बाद यह श्राप उन्हें लग गया और वह मृत्यु अवस्था में पहुंच गए. इसके बाद महादेव की कृपा से प्रदोष काल में चंद्र देव को पुनर्जीवन मिला. इसके बाद से ही त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखा जाने लगा.
गुरु प्रदोष व्रत कथा:
गुरु प्रदोष व्रत कथा की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है जब एक बार देवराज इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ. देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला. यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ. आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया. सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे. बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं.
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया. पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था. एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया.
वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे.'
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है. मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!'
माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं.'
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना.
गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो.'
देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई. अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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Tags: Dhanteras 2020, Religion, Shiv ji
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