राजा रंतिदेव की दयालुता देखकर भगवान ने उनकी परीक्षा ली थी. (Image- Canva)
अक्सर बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जीवन में जब भी दुख या बुरे समय से गुजरना पड़े तो हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, क्योंकि बुरे समय में ईश्वर हमारे संयम, ईमानदारी व धैर्य की परीक्षा ले रहा होता है. धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों में भी यही सिखाया गया है. मनुष्य को परखने के लिए ईश्वर सबसे कठिन परीक्षा गढ़ता है. आज हम आपको एक ऐसे ही दानवीर राजा की कथा सुनाएंगे, जिन्होंने ईश्वर की परीक्षा के समय अपना सर्वस्व दान कर दिया. राजा रंतिदेव का नाम महान दानवीरों में आता है. आइये जानते हैं राजा रंतिदेव की ये प्रचलित कथा.
ये भी पढ़ें: मां भगवती को इसलिए लेना पड़ा भ्रामरी और शाकंभरी माता का अवतार, पढ़ें कथा
कौन थे राजा रंतिदेव?
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा रंतिदेव बड़े ही दयालु और दानवीर थे. राजा रंतिदेव के पिता का नाम राजा सकृति था. रंतिदेव दूसरे को कष्ट में नहीं देख सकते थे. वह जब भी किसी गरीब या असहाय को देखते, तो कुछ भी मिलता उसे दान कर देते थे. राजा रंतिदेव ने अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया.
अकाल के समय राजा की परीक्षा
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि एक बार जब राज्य में अकाल पड़ गया था, तो राजा रंतिदेव ने अपना सबकुछ दान में देकर लोगों की मदद की. रंतिदेव स्वयं 48 दिन तक भूखे प्यासे रहे. भूख प्यास के कारण राजा का शरीर कांपने लगा था. 50वें दिन उनको कहीं से भोजन मिला. उन्होंने भोजन का निवाला हाथ में लिया ही था कि एक ब्राह्मण अतिथि के रूप में उनके सामने आ गए. रंतिदेव ने श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को भोजन दिया. शेष भोजन अपने परिवार को देना चाहा, परंतु एक शूद्र अतिथि याचक उनके द्वार पर आ गया. राजा ने अन्न उसको भी दे दिया. तब अतिथि बोला कि उसका कुत्ता भी भूखा है, इसलिए उसके लिए अन्न चाहिए. राजा ने बचा हुआ अन्न शूद्र अतिथि को दे दिया.
ये भी पढ़ें : मृत्यु के बाद व्यक्ति के शरीर को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता? जानें
त्रिदेवों ने दिए दर्शन
अन्न समाप्त हो जाने के बाद राजा के पास केवल इतना ही पानी बचा था कि किसी एक व्यक्ति की प्यास बुझ सके, वह जल ग्रहण करने वाला ही था कि चांडाल की दीन करुण याचना सुनी. राजा ने जल उस चांडाल को दे दिया. राजा ने प्रार्थना कि, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस सभी प्राणियों की रक्षा हो, उनके सभी कष्ट मैं भोग लूंगा. तभी त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश राजा रंतिदेव के समक्ष पेश हो गए. परीक्षा में राजा रंतिदेव का संयम, धैर्य व परोपकारिता देखकर तीनों देव प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा व उसके परिवार को मोक्ष प्रदान किया. इस कथा से यह सीख मिलती है कि जब भी ईश्वर परीक्षा लेते हैं तो भक्त को संयम व धैर्य बनाकर रखना चाहिए.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Dharma Aastha, Hinduism, Religion