शब-ए-बारात मुसलमानों के लिए मुकद्दस महीना है.
Shab-E-Barat 2023: शब-ए-बारात इबादत, तिलावत और सखावत की रात है. इस दिन अल्लाह की सच्चे मन से इबादत यानी अराधना की जाती है. इसके साथ ही तिलावत यानी कुरान की आयतें पढ़ी या सुनी जाती है और सखावत यानी दान-पुण्य भी किया जाता है. शब-ए-बारात मुसलमानों के लिए मुकद्दस महीना है. शब-ए-बारात के दिन मस्जिदों और कब्रिस्तानों को खास तौर पर सजाया जाता है. लोग देर रात तक कब्रिस्तानों में पूर्वजों को दुआएं पढ़ते हैं और गुनाहों की माफी मांगते हैं. इस्लाम में शब-ए-बारात का खास महत्व है. हालांकि शब-ए-बारात का विशेष महत्व दक्षिण एशिया में ही देखने को मिलता है. यह इस्लाम के प्रमुख पर्वों में से एक है.
दरअसल, इस दिन इस्लामिक धर्मावलंबी अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. अल्लाह इस दिन सारे गुनाहों को माफ कर देते हैं. यही कारण है इस दिन देर रात तक इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात इस्लाम में लोग अपने पूर्वजों के लिए मोक्ष की दुआएं पढ़ते हैं. सोमवार की रात चांद देखने के बाद यह तय किया गया कि इस बार शब-ए-बारात 7 मार्च को मनाई जाएगी.
कब मनाया जाता है शब-ए-बारात
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बारात (Shab-e-Barat 2023 Date) दीन-ए-इस्लाम के आठवें महीने शाबान में मनाई जाती है. यह शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाई जाती है. इस्लाम धर्म में माह-ए-शाबान बहुत ही मुबारक महीना होता है. इसके 15 दिन बाद पवित्र रमजान का महीना शुरू हो जाता है. इसलिए रमजान की तैयारी शब-ए-बारात के बाद से ही होने लगती है.
क्यों मनाई जाती है शब-ए-बारात
शब-ए-बारात में शब का अर्थ है रात और बारात का अर्थ है बरी होना. यानी रात में गुनाहों से बरी होना. शब-ए-बारात के दिन धरती से रुखसत हो चुके पूर्वजों के लिए परिजन उनकी कब्रों पर जाते हैं और उनके लिए वहां रोशनी करते हैं और कब्र पर गुलाब के फूल चढ़ाते हैं. अगरबत्ती व मोमबत्ती आदि जलाते हैं. फिर वहीं दुआएं पढ़ते हैं. मान्यता है कि इस पवित्र रात को अल्लाह अपने चाहने वालों का हिसाब-किताब करने के लिए आते हैं. इसलिए जो भी सच्चे मन से अल्लाह की इबादत करते हैं उनके गुनाहों को माफ कर उनके लिए जन्नत के दरवाजे खोल देते हैं. अल्लाह उन्हें पाक साफ कर देते हैं. यही कारण है कि लोग शब-ए-बारात में रात भर जागकर अल्लाह की तिलावत करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. इस मौके पर घरों को भी सजाया जाता है. हलवा, बिरयानी आदि पकवान बनाए जाते हैं और इसे गरीबों में बांटा जाता है.
मुकद्दस रातों में से एक
इस्लामी मान्यता के अनुसार शब-ए-बारात की रात को मुकद्दस की रात मानी जाती है. मुकद्दस का मतलब है पवित्र. शब-ए-बारात चार मुकद्दस रातों में से एक है. इस्लाम में चार मुकद्दस रातें हैं. आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र. ये सभी रातें बहुत ही पाक मानी जाती हैं. इन सभी मुकद्दस रातों से कुछ न कुछ खास मान्यताएं जुड़ी हुई है.
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