शिव भगवान के साथ नंदी की पूजा करना भी जरूरी होता है. Image- Canva
Shiva Nandi Katha: हिंदू धर्म में सभी देवताओं के अपने-अपने वाहन होते हैं. जैसे भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ है, मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है. भगवान गणेश का वाहन मूषक होता है, उसी तरह भगवान शिव की सवारी नंदी है. आपने शिव मंदिरों में देखा होगा भगवान शंकर के साथ बैल रूपी नंदी की मूर्ति भी रहती है.
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शिव भगवान के साथ नंदी की पूजा करना भी जरूरी होता है. भगवान शंकर नंदी के माध्यम से ही भक्तों की पुकार सुनते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं नंदी कैसे भगवान शिव की सवारी बनें. आइये जानते हैं शिव और नंदी की ये पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मचारी व्रत का पालन कर रहे ऋषि शिलाद को भय होने लगा कि उनकी मृत्यु के बाद उनका वंश समाप्त हो जाएगा. इस भय के चलते उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या शुरू की. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शिलाद ऋषि को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा. तब शिलाद ऋषि ने शिव से कहा कि उसे ऐसा पुत्र चाहिए, जिसे मृत्यु ना छू सके और उस पर आपकी कृपा बनी रहे.
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भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि उसे ऐसे ही पुत्र की प्राप्ति होगी. अगले दिन ऋषि शिलाद एक खेत से गुजर रहे थे. उन्होंने देखा कि खेत में एक नवजात बच्चा पड़ा है. बच्चा काफी सुंदर और लुभावना था. उन्होंने सोचा कि इतने प्यारे बच्चे को कौन छोड़कर चला गया. तब शिवजी की आवाज आई कि शिलाद यही तुम्हारा पुत्र है.
ये सुनकर ऋषि शिलाद बेहद प्रसन्न हुए और बच्चे को देखभाल करने अपने साथ ले गए. उस बच्चे का नाम नंदी रखा गया. एक बार ऋषि शिलाद के घर पर दो सन्यासी पहुंचे. उनका खूब आदर सत्कार हुआ. इससे प्रसन्न होकर सन्यासियों ने ऋषि शिलाद को दीर्घ आयु का आशीर्वाद दे दिया लेकिन नंदी के लिए एक शब्द भी नहीं बोला. ऋषि शिलाद ने सन्यासियों से इसका कारण पूछा. तब सन्यासियों ने बताया कि नंदी की उम्र कम है, इसलिए हमने इसे कोई आशीर्वाद नहीं दिया.
यह बात नंदी ने सुन ली और ऋषि शिलाद से कहा कि मेरा जन्म भगवान शिव की कृपा से हुआ है और वे ही मेरी रक्षा करेंगे. इसके बाद नंदी भगवान शिव की स्तुती करने लगे और कठोर तप किया. इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और नंदी को अपना प्रिय वाहन बना लिया. इसके बाद से भगवान शिव के साथ नंदी की भी पूजा की जाने लगी.
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