जीवन में सफलता पाने के लिए ये हैं संत कबीर के 5 खास दोहे
News18Hindi Updated: November 14, 2019, 11:07 AM IST

जीवन की आपाधापी में हर इंसान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हाथ-पांव मार रहा होता है.
अक्सर आपकी साधना के मार्ग या फिर लक्ष्य की राह में तमाम मुश्किलें आने लगती हैं. एक आम आदमी को आज जो भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, उनके बारे में संत कबीर ने पहले ही चर्चा कर दी थी.
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- Last Updated: November 14, 2019, 11:07 AM IST
कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. वह हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे. उनकी रचनाओं ने हिंदी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया. जीवन की आपाधापी में हर इंसान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हाथ-पांव मार रहा होता है, लेकिन किसी भी क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ना बिल्कुल आसान नहीं होता.
अक्सर आपकी साधना के मार्ग या फिर लक्ष्य की राह में तमाम मुश्किलें आने लगती हैं. एक आम आदमी को समाज में आज जो भी समस्याएं या मुश्किलें दिखाई दे रही हैं, उनके बारे में संत कबीर ने बहुत पहले ही विस्तार से चर्चा कर दी थी. साथ ही उनके व्यवहारिक समाधान भी बताए थे. संत कबीर की दिव्य वाणी का प्रकाश आज भी हमें समस्याओं के अंधेरे से निकाल कर समाधान के प्रकाश में ले जाता है. आइए जिंदगी को सही से जीना सिखाने वाली ऐसी ही कबीर की कुछ दिव्य वाणी का सार जानते हैं.
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गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांयबलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
अर्थ- संत कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु और गोविंद जब एक साथ खड़े हों तो उन दोनों में से आपको सबसे पहले किसे प्रणाम करना चाहिए. कबीरदास जी के अनुसार सबसे पहले हमें अपने गुरु को प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही गोविंद के पास जानें का मार्ग बताया है.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ- संत कबीर कहते हैं कि बड़ी-बड़ी पोथी पढ़ने का कोई लाभ नहीं है, जब तक कि आप में विनम्रता नहीं आती और आप लोगों से प्रेम से बात नहीं कर पाते. कबीर कहते हैं जिसे प्रेम के ढाई अक्षर का ज्ञान प्राप्त हो गया वही इस संसार का असली विद्वान है.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ- कर्मकांड के बारे में कबीरदास जी का कहना है कि लंबे समय तक हाथ में मोती की माला फेरने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. इससे आपके मन के भाव शांत नहीं होंगे. मन को शांत रखने और काबू में रखने पर ही मन को शीतलता प्राप्त होगी. यहां पर कबीर दास जी लोगों को अपने मन को मोती के माला की तरह सुंदर बनाने की बात कह रहे हैं.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ- कबीरदास जी ने हमेशा ही जात-पात का विरोध किया. उनका कहना था कि आप किसी से ज्ञान प्राप्त कर रहे हो तो उसकी जाति के बारे में ध्यान न दो क्योंकि उसका कोई महत्व नहीं होता है. बिल्कुल वैसे ही, जैसे तलवार का महत्व उसे ढकने वाले म्यान से ज्यादा होता है.
इसे भी पढ़ेंः जानिए क्यों पूजा में इस्तेमाल किया जाता है गेंदे का फूल, क्या है इसकी अहमियत
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
अर्थ- कबीर मन की पवित्रता पर ज्यादा जोर देते हैं. वह कहते हैं कि यदि आपका मन साफ और शीतल है तो इस संसार में कोई भी मनुष्य आपका दुश्मन नहीं हो सकता है. लेकिन अगर आप अपने अहंकार को नहीं छोड़ेंगे, तो आपके बहुत से लोग दुश्मन बन जाएंगे. ऐसे में यदि आप समाज में खुश रहना चाहते हैं तो किसी को भी अपना दुश्मन न बनाएं. सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करें. सभी आपके दोस्त बनकर रहेंगे.
अक्सर आपकी साधना के मार्ग या फिर लक्ष्य की राह में तमाम मुश्किलें आने लगती हैं. एक आम आदमी को समाज में आज जो भी समस्याएं या मुश्किलें दिखाई दे रही हैं, उनके बारे में संत कबीर ने बहुत पहले ही विस्तार से चर्चा कर दी थी. साथ ही उनके व्यवहारिक समाधान भी बताए थे. संत कबीर की दिव्य वाणी का प्रकाश आज भी हमें समस्याओं के अंधेरे से निकाल कर समाधान के प्रकाश में ले जाता है. आइए जिंदगी को सही से जीना सिखाने वाली ऐसी ही कबीर की कुछ दिव्य वाणी का सार जानते हैं.
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गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांयबलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
अर्थ- संत कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु और गोविंद जब एक साथ खड़े हों तो उन दोनों में से आपको सबसे पहले किसे प्रणाम करना चाहिए. कबीरदास जी के अनुसार सबसे पहले हमें अपने गुरु को प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही गोविंद के पास जानें का मार्ग बताया है.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ- संत कबीर कहते हैं कि बड़ी-बड़ी पोथी पढ़ने का कोई लाभ नहीं है, जब तक कि आप में विनम्रता नहीं आती और आप लोगों से प्रेम से बात नहीं कर पाते. कबीर कहते हैं जिसे प्रेम के ढाई अक्षर का ज्ञान प्राप्त हो गया वही इस संसार का असली विद्वान है.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ- कर्मकांड के बारे में कबीरदास जी का कहना है कि लंबे समय तक हाथ में मोती की माला फेरने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. इससे आपके मन के भाव शांत नहीं होंगे. मन को शांत रखने और काबू में रखने पर ही मन को शीतलता प्राप्त होगी. यहां पर कबीर दास जी लोगों को अपने मन को मोती के माला की तरह सुंदर बनाने की बात कह रहे हैं.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ- कबीरदास जी ने हमेशा ही जात-पात का विरोध किया. उनका कहना था कि आप किसी से ज्ञान प्राप्त कर रहे हो तो उसकी जाति के बारे में ध्यान न दो क्योंकि उसका कोई महत्व नहीं होता है. बिल्कुल वैसे ही, जैसे तलवार का महत्व उसे ढकने वाले म्यान से ज्यादा होता है.
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जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
अर्थ- कबीर मन की पवित्रता पर ज्यादा जोर देते हैं. वह कहते हैं कि यदि आपका मन साफ और शीतल है तो इस संसार में कोई भी मनुष्य आपका दुश्मन नहीं हो सकता है. लेकिन अगर आप अपने अहंकार को नहीं छोड़ेंगे, तो आपके बहुत से लोग दुश्मन बन जाएंगे. ऐसे में यदि आप समाज में खुश रहना चाहते हैं तो किसी को भी अपना दुश्मन न बनाएं. सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करें. सभी आपके दोस्त बनकर रहेंगे.
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First published: November 14, 2019, 11:05 AM IST