वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को रखते हैं. इस साल वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) 30 मई दिन सोमवार को है. इस दिन पति की लंबी आयु के लिए सुहागन महिलाएं व्रत रखती हैं, वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और वट सावित्री व्रत कथा सुनती या पढ़ती हैं. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव बताते हैं कि सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाने में सफल रहीं और साथ ही अपने पतिव्रता धर्म और चतुराई से यमराज को प्रभावित कर दिया. क्या है वट सावित्री व्रत कथा, आइए जानते हैं इसके बारे में.
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पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थीं, जो अपने पिता की एकमात्र संतान थीं. सावित्री का विवाह द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ. नारद जी ने सावित्री के पिता अश्वपति को बताया कि सत्यवान गुणवान और धर्मात्मा है, लेकिन वह अल्पायु है. विवाह के एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी.
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पिता ने सावित्री को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानीं. उन्होंने कहा कि सत्यवान ही उनके पति हैं, वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती हैं. सत्यवान अपने माता पिता के साथ वन में रहते थे, सावित्री भी उनके साथ रहने लगीं.
नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था, उससे पूर्व समय से सावित्री उपवास करने लगीं. जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन निश्चित था, उस दिन वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगे, तो सावित्री भी उनके साथ वन में गईं.
सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे, वैसे ही उनके सिर में तेज दर्द होने लगा. वह वट वृक्ष के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए. कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज मयदूतों के साथ सत्यवान के प्राण लेने आए हैं. वे सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे. उनके पीछे पीछे सावित्री भी चलने लगीं.
कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे पीछे चली आ रही हैं, तो उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान से तुम्हारा साथ धरती तक ही था. अब तुम वापस लौट जाओ. सावित्री ने कहा कि जहां पति जाएंगे, वहां उनके साथ जाना एक पत्नी का धर्म है.
यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा. सावित्री ने अपने सास ससुर की आंखों की रोशनी वापस आने का वर मांगा. यमराज ने वह वरदान दे दिया. कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही हैं, तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने अपने ससुर का खोया राजपाट वापस मिलने का वरदान मांगा. यमराज ने वह भी वरदान दे दिया.
इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रहीं. यमराज ने उनसे एक और वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने सत्यवान के 100 पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा. अपने वचन से बंधे यमराज ने सावित्री को 100 पुत्रों की माता होने का वरदान दिया और सत्यवान के प्राण लौटा दिए. वे वहां ये अदृश्य हो गए.
सावित्री वहां से लौटकर वट वृक्ष के पास आ गईं. उन्होंने देखा कि सत्यवान पुन:जीवित हो गए हैं, उनको यमराज ने जीवन दान दे दिया है. सावित्री के व्रत और पतिव्रता धर्म से सत्यवान को दोबारा जीवन मिल गया और उनके ससुर को खोया राजपाट भी मिल गया. वे पहले की तरह देखने भी लगे.
इसके बाद से ही सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत करने लगीं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो, उन्हें भी पुत्र सुख प्राप्त हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो.
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Tags: Dharma Aastha, Vat Savitri Vrat
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