प्रतीकात्मक तस्वीर
अमित सिंह
प्रयागराज : 27 मार्च को यमुना छठ है. यह पर्व धरती पर देवी यमुना के आगमन का प्रतीक है. मान्यता है कि इस दिन जो भक्त श्रद्धा भाव से मां यमुना की उपासना करता है तो मां उसे यम के दंड और शनि के प्रकोप से बचाती हैं. प्रयागराज के आचार्य लक्ष्मीकांत शास्त्री ने बताया कि परम ब्रह्म श्रीकृष्ण की पटरानी यमुना का पृथ्वी पर आगमन चैत्र शुक्ल पक्ष तिथि को हुआ था. जिसे यमुना छठ पर्व के रूप में मनाया जाता है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी यमुना सूर्य देव की पुत्री है. यमदेव और शनि इनके सबसे प्रिय भाइयों में से हैं और भद्रा इनकी बहन है . गोलोक में जब श्री हरि ने यमुना जी को पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दी तब नदियों में श्रेष्ठ यमुना श्रीकृष्ण की परिक्रमा कर पृथ्वी पर जाने को अवतरित हुई. उसी समय गिरजा और गंगा नदी स्वरूप में आकर यमुना में लीन हो गई. इसलिए परिपूर्णता कृष्ण यमुना को श्री कृष्ण की पटरानी के रूप में भी लोग जानते हैं.
इस विधि से की जाती है पूजा
लोग सुबह जल्दी उठते हैं और सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करते हैं. इस पवित्र नदी में स्नान, आत्मा को शुद्ध करता है और सभी पापों से मुक्त करता है. इसके बाद, छठ पूजा एक विशिष्ट छठ पूजा मुहूर्त पर देवी यमुना को समर्पित की जाती है. इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं. कुछ लोग यमुना छठ पर सख्त उपवास भी करते हैं.
भक्तों को सुबह-शाम पूजा करने और व्रत करने के बाद अगले दिन 24 घंटे के बाद उपवास तोड़ा जाता है. मिठाई तैयार की जाती है और देवी यमुना को समर्पित की जाती है और इसे सभी रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.
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