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How Army dogs recruited: सेना में कैसे होती है डॉग की भर्ती, जानें उनकी ट्रेनिंग से ड्यूटी तक सबकुछ

How Army dogs recruite: सेना में भर्ती किये जाने वाले डॉग्स की ट्रेनिंग काफी कठिन होती है.

How Army dogs recruite: सेना में भर्ती किये जाने वाले डॉग्स की ट्रेनिंग काफी कठिन होती है.

How Army dogs recruited: सेना में भर्ती किये जाने वाले डॉग्स की ट्रेनिंग काफी कठिन होती है. यह किसी डिटेक्टिव की तरह ही ...अधिक पढ़ें

    हाइलाइट्स

    डॉग्स की ब्रीड और बौद्धिक परख के बाद उन्हें ओबेडिएंस ट्रेनिंग दी जाती है.
    इस ट्रेनिंग के बाद इन डॉग्स की पहचान पेट्रोल डॉग्स, माइन डिटेक्शन डॉग्स,सर्च एंड रेस्क्यू डॉग की तरह होती है.
    यह सब उनकी भर्ती प्रक्रिया में शामिल होता है .

    How Army dogs recruited: सेना में डॉग्स का बहुत अहम रोल होता है. उनके जरिए सेना में बड़ी-बड़ी घटनाओं के पीछे के साक्ष्यों का पता लगाने का काम किया जाता है. इसके लिए उनको विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है. डॉग्स की भर्ती प्रशिक्षण के आधार पर तय होती है. सेना में हैंडलर डॉग्स को इस हद तक प्रशिक्षित कर देते हैं कि मुसीबत के समय डॉग्स को कमांड देने की जरूरत नहीं पड़ती और बिना किसी दिशा निर्देश के अपना काम शुरू कर देते हैं.

    कैसे होती है इनकी भर्ती
    एक्सपर्ट के अनुसार डॉग्स की ब्रीड और बौद्धिक परख के बाद उन्हें ओबेडिएंस ट्रेनिंग दी जाती है. इस ट्रेनिंग के बाद इन डॉग्स की पहचान पेट्रोल डॉग्स, माइन डिटेक्शन डॉग्स,सर्च एंड रेस्क्यू डॉग की तरह होती है. यह सब उनकी भर्ती प्रक्रिया में शामिल होता है .

    क्या होती है ड्यूटी
    सेना में डॉग्स एक डिटेक्टिव की तरह ही काम करते हैं. उनकी सहायता बहुत ही खतरनाक कामों जैसे विस्फोटक को सूंघना, माइन का पता लगाना, पेट्रोलिंग करना, ड्रग्स जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं को सूंघ कर पता लगाना, किसी खतरे का आगाज होने पर सूचित करना , किसी संभावित टारगेट पर हमला करना ,आतंकवादी घुसपैठ का पता लगाने के लिए तलाशी अभियान का हिस्सा बनना, गार्ड ड्यूटी करना, किसी अनजान घटना और अनजान व्यक्ति को लेकर सचेत होना जैसे काम एक आर्मी डॉग के होते हैं.

    यहां है ट्रेनिंग स्कूल
    मेरठ में 1960 में डॉग के विशेष प्रशिक्षण के लिए में एक डॉग ट्रेनिंग स्कूल खोला गया था. ये ट्रेनिंग स्कूल “रिमाउंट एंड वेटनरी कोर सेंटर एंड” के नाम से जाना जाता है. इस स्कूल में डॉग्स को सेना की विभिन्न तरह की गतिविधियों और जरूरतों के अनुसार विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है है .

    कितनी उम्र से शुरू होती है डॉग्स की ट्रेनिंग
    यह ट्रेनिंग डॉग्स की 6 से 9 महीने की उम्र में शुरू होती है .यही प्रशिक्षण ही एक तरह से उनकी भर्ती होती है .यह प्रशिक्षण काफी टफ होता है जिसमें डॉग का एक फिजिकल टेस्ट होता है . अगर वह शारीरिक और मानसिक तौर पर  तरह से फिट पाया गया तो उसे सेना में भर्ती कर लिया जाता है. अगर टेस्ट में किसी तरह की कोई कमी होती है तो उनकी अवधि 12 माह की  जाती है .

     कौन करता है इनकी रखवाली
    1. कुत्ते की देखरेख के लिए विशेष हैंडलर रखे जाते हैं जो नियमों के अनुसार उसे गाइड करता है. इन हैंडलर्स को भी ट्रेनिंग स्कूल में ही डॉग्स की रखवाली करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है .यह डॉग के खाने पीने से लेकर उसकी सुरक्षा का ध्यान रखता है और उसे अलग अलग तरह से विभिन्न बातों के लिए दिशा निर्देश देता है.
    2. यह ट्रेनर न केवल विस्फोटकों का पता लगाने, बल्कि सर्च और रेस्क्यू अभियान चलाने से लेकर खदानों का पता लगाने और यहां तक कि भीड़ नियंत्रण जैसे कामों के लिए इन्हें ट्रेनिंग देते हैं. इन्हें ट्रेनिंग के दौरान आंखों के इशारे से समझना और काम करना सिखाया जाता है.
    इन ब्रीड के डॉग्स को किया जाता हैं सेना में भर्ती
    सैनिकों की तरह ही सेना में भर्ती किए जा रहे डॉग के लिए भी ये देखा जाता है कि वे शारीरिक तौर पर मजबूत और फुर्ती से भरे-पूरे होने चाहिए. जिन कुत्तों को सेना में रखा जाता हैं उनमें लेब्राडोर, बेल्जियन मैलिनॉयस और जर्मन शेफर्ड को चुना जाता है. ये तेज-तर्रार तो होते ही हैं, साथ ही कम समय में ज्यादा सीख पाते हैं.

    डॉग्स की सैलरी

    डॉग्स को कोई सैलरी नहीं दी जाती बल्कि उन्हें रैंक दी जाती हैं. केवल उनके खाने पीने का विशेष प्रबंध किया जाता हैं और डाइट का खास ख्याल रखा जाता हैं .

    Tags: Career, Top 10 career tips

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