नई दिल्ली. Indo-Pakistan War 1965: कश्मीर पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने रची थी ये तीन साजिशें में अभी तक आपने पढ़ा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के नतीजों को देखने के बाद पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर को सैन्य ताकत के बल पर छीनने के लिए बड़ी साजिश तैयार की. भारत की ‘प्रतिकार क्षमता’ को आंकने के लिए पाक ने पहली बड़ी साजिश रची थी. इस साजिश का अंत तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री की मध्यस्था के साथ हुआ. मध्यस्थता में यह तय हुआ कि पाकिस्तान ने जिन भारतीय चौकियों पर कब्जा किया है, उसे वह छोड़ देखा. इसके एवज में, भारत ने पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर की एक सड़क के इस्तेमाल की इजाजत दे दी.
मध्यस्थता बैठक के बाद, पाकिस्तान इस बात को लेकर आश्वस्त हो चुका था कि कश्मीर को हथियाने के लिए तैयार की गई साजिश नंबर 2 को अमलीजामा पहनाने का यही समय है. लिहाजा, पाकिस्तानी सेना ने साजिश नंबर 2 पर काम करना शुरू कर दिया. इस साजिश का लक्ष्य, पाकिस्तानी सेना की कश्मीर में घुसपैठ कराना, स्थानीय लोगों को भड़काना, उनको अपने साथ लेकर हिंसा करना और स्थानीय संचार व्यवस्था को अपने कब्जे में लेना था. पाकिस्तान ने अपनी इस साजिश को ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ का नाम दिया. ऑपरेशन जिब्राल्टर को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी सेना के 30 हजार जवानों और अधिकारियों का चयन हुआ. जिन्हें मुजाहिद बनाकर भारत भेजा जाना था.
15 दिनों में ध्वस्त हुई पाक की नापाक साजिश
पाकिस्तान ने 1 अगस्त से ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरूआत की. 30 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को टॉस्क फोर्स में बांटा गया. 1 से 5 अगस्त 1965 के बीच उनकी हाजी पीर दर्रे से कश्मीर में घुसपैठ कराई गई. गलमर्ग के करीब पाकिस्तानी सेना के दो अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान की इस साजिश का समय रहते खुलाया हो गया. जिसके बाद, भारतीय सेना की इंडियन XV कोर ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई शुरू की. भारतीय सेना ने महज 15 दिनों के भीतर पाकिस्तानी साजिश को पूरी तरह से ध्वस्त कर घुसपैठियों को उनके अंजाम तक पहुंचा दिया. भारतीय सेना का पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ सैन्य अभियान यहां खत्म नहीं हुआ.
POK स्थित हाजी पीर पर लहराया भारतीय तिरंगा
ऑपरेशन जिब्राल्टर को पूरी तरह कुचलने के बावजूद भारतीय सेना अपने बैरक में वापस नहीं लौटी. भारतीय सेना को समझ में आ गया था कि सिर्फ ऑपरेशन जिब्राल्टर को कुचलना समस्या का समाधान नहीं है, उन्हें वे सभी रास्ते बंद करने होंगे, जहां से पाकिस्तानी घुसपैठिए कश्मीर में घुसपैठ कर रहे थे. ऑपरेशन के दौरान, गिरफ्तार किए गए घुसपैठियों से खुलासा हुआ कि वे पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) स्थिति हाजी पीर दर्रे के रास्ते घुसपैठ करके आए हैं. लिहाजा, भारतीय सेना ने सबसे पहले हाजी पीर के दर्रे पर जवाबी कार्रवाई शुरू की. देखते ही देखते, POK स्थित हाजी पीर के दर्रे पर भारतीय ध्वज तिरंगा लहराने लगा. इसके अलावा, कारगिल (लेह सेक्टर), तंगधार (तिथवाल सेक्टर) में मौजूद घुसपैठियों को उनके अंजाम तक पहुंचा दिया गया.
भारतीय सेना ने दुश्मन से छीनी ये दो चौकियां
ऑपरेशन जिब्राल्टर के खुलासे के बाद, भारतीय सेना की तरफ से शुरू हुआ अभियान के तहत पुंछ सेक्टर में मौजूद घुसपैठ के सभी रास्तों को भारतीय सेना ने अपने कब्जे में ले लिया. दुश्मन सेना की राजा और चांद टेकरी चौकियों पर भारतीय तिरंगा फहराने लगा. किशनगंगा नदी के किनारे बसे मीरपुर इलाके पर भी 104 ब्रिगेड का कब्जा हो गया था. इस तरह, 24 अगस्त 1965 को पाकिस्तानी सेना के खिलाफ शुरू हुआ भारतीय सेना का अभियान 21 सितंबर को खत्म हो गया और ऑपरेशन जिब्राल्टर के जरिए कश्मीर में खूनखराबे व भारतीय सेना को कमजोर करने की एक बड़ी नापाक साजिश को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया गया.
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