नई दिल्ली. ऑपरेशन जिब्राल्टर और ऑपरेशन ग्रांड स्लैम के बाद भारत ने पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर सबक सिखाने का फैसला किया था. फैसले के तहत, भारतीय सेना ने 6 सितंबर 1965 की सुबह पाकिस्तान के सीमा में घुसकर दुश्मन सेना को अंजाम तक पहुंचाना शुरू कर दिया. 6 सितंबर 1965 को शुरू हुए इस युद्ध के पहले दिन भारतीय सेना के 7 महावीरों ने इतिहास लिख दिया. इन 7 महावीरों में 2 महावीर ऐसे भी थे, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया. भारतीय सेना के इन सात महावीरों को अद्भुत साहस, युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आइये, आपको आज भारतीय सेना के इन सात महावीरों से रूबरू कराते हैं.
मेजर जनरल गुरबख्श सिंह
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, मेजर जनरल गुरबख्श सिंह माउंटेन डिवीजन के जनरल कमांडिंग ऑफिसर थे. उन्हें खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तान के खिलाफ ऑॅपरेशन की जिम्मेदारी दी गई थी. ऑपरेशन के दौरान, मेजर जनरल सिंह का सामना पाकिस्तान के तीन आर्मर्ड ग्रुप और पूरी इन्फेंट्री डिविजन से था. दुश्मन सेना से संख्या बल में कम होने के बावजूद मेजर जनरल सिंह अपने लक्ष्यों पर कब्जा करने में कामयाब रहे. मेजर जनरल गुरबख्श सिंह की यह नेतृत्व क्षमता था कि उन्होंने न केवल डेढ़ टैंक रेजीमेंट को नेस्तनाबूद कर दिया, बल्कि बाकी बचे दुश्मन सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया. अनुकरणीय नेतृत्व और अदम्य साहस के लिए मेजर जनरल गुरबख्श सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
मेजर जनरल राजिंदर सिंह
आर्मर्ड डिवीजन डिवीजन के कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल राजिंदर सिंह को सियालकोट सेक्टर के फिल्लोरा और पगीवाल पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था. इस युद्ध में दो आर्मर्ड रेजिमेंट के साथ सामने था. मेजर जनरल राजिंदर सिंह का युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता ही थी कि उन्होंने संख्या बल में कम होने के बावजूद पाकिस्तानी सेना के 69 टैंकों को खाक कर दिया. जबकि, पाकिस्तान अपने अत्याधुनिक पैटन टैंकों से सिर्फ 9 भारतीय टैंक छतिग्रस्त कर पाया. इस युद्ध में 17 हॉर्स के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल तारापुर ने भी अभूतपूर्ण साहस और युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया था. इस युद्ध के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल तारापुर को परमवीर चक्र और मेजर जनरल राजिंदर सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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मेजर जनरल एच के सिब्बल
खालरा एक्सिस पर पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की जिम्मेदारी इन्फ्रेंटरी डिवीजन के जनरल कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल एचके सिब्बल को दी गई थी. 6 सितंबर 1965 को पाकिस्तान के खिलाफ उसी की जमी पर शुरू कार्रवाई का हिस्सा मेजर जनरल सिब्बल भी थे. उन्होंने अपने सैनिकों के साथ मिलकर भारतीय सीमा से पाकिस्तान की इछोगिल नहर तक दुश्मन सेना का सफाया किया था. बुर्की के गढ़वाले गांव में मौजूद सभी पाकिस्तानी सिपाहियों का मेजर जनरल एके सिब्बल ने अपने साथियों के साथ मिलकर सफाया किया था. उन्होंने अपने युद्ध कौशल से इछोगिल नहर के पूर्वी तट को दुश्मन से मुक्त कराया था. मेजर जनरल सिब्बल को उनके साहिसक प्रदर्शन, नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण को देखते हुए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
ब्रिगेडियर खेमकरण सिंह
ब्रिगेडियर खेमकरण सिंह आर्मर्ड ब्रिगेड के कमांडर थे. सियालकोट सेक्टर में पाकिस्तान के खिलाफ चल रहे युद्ध में उन्होंने 6 से 22 सितंबर 1965 के बीच अपनी ब्रिगेड सहित अतिरिक्त आर्मर्ड यूनिट्स इकाइयों का नेतृत्व किया. युद्ध के दौरान, ब्रिगेडियर सिंह के सामने तकनीकी तौर पर बेहद बेहतर और संख्या बल में बहुत अधिक टैंक थे. युद्ध के पहले तीन दिनों में ब्रिगेडियर सिंह की कमान के तहत भारतीय जाबांजों ने पाकिस्तान के 75 से अधिक टैंकों को मिट्टी में मिला दिया. ब्रिगेडियर खेमकरण सिंह द्वारा स्थापित किए गए कम्युनिकेशन सेंटर की मदद से दुश्मन सेना को भारतीय जाबांजों ने पीठ दिखाकर भागने को मजबूर कर दिया. तीन दिन और रात चली फिल्लोरा की लड़ाई में अद्भुद युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता के लिए ब्रिगेडियर खेमकरण सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
लेफ्टिनेंट कर्नल डीई हेडे
6 सितंबर 1965 को भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ उसी की सरजमी लछोगिल नहर पर जवाबी कार्रवाई शुरू थी. लछोगिल नगहर के पश्चिमी किनारे पर मौजूद दुश्मन सेना को नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी जाट रेजिमेंट के बटालियन कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल हेडे को दी गई थी. दुश्मन की मजबूत स्थित और कड़े प्रहार के बावजूद लेफ्टिनेंट कर्नल हेडे ने न केवल लछोगिल के पश्चिमी किनारे पर कब्जा करने में कामयाब रहे. युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना ने उन पर और उनके साथियों पर पैटन और शेरमेन टैंकों के साथ हवाई हमला भी किया. लेफ्टिनेंट कर्नल डी ई हेडे ने अपने युद्ध कौशल से दुश्मन के इस हमले को नाकाम पर पूरे इलाके में भारतीय परचम फहरा दिया. युद्ध में दिखाए गए अद्भुत साहस के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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लेफ्टिनेंट कर्नल एन एन खन्ना
जम्मू और कश्मीर में एलओसी के पार बनी राजा पिकेट दुश्मन के मजबूत गढ़ की तरह था. 6 सितंबर 1965 को 2 सिख रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल एनएन खन्ना को तीन कंपनियों के साथ पिकेट पर कब्जे की जिम्मेदारी दी गई. कार्रवाई के दौरान, सुरक्षित गढ़ में बैठी दुश्मन सेना ने स्वचालित हथियारों, मीडियम मशीनगनों और ब्राउनिंग्स से फायरिंग शुरू कर दी. इस फायरिंग से लेफ्टिनेंट कर्नल खन्ना की दो कंपनियों को भारी नुकसान हुआ. लेफ्टिनेंट कर्नल खन्ना का एक हाथ भी ग्रेनेड फटने से जख्मी हो गया. बावजूद इसके, वे अपने जवानों के साथ राजा पीकेट पर भारतीय तिरंगा फहराने में कामयाब रहे. युद्धोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल एनएन खन्ना ने इस युद्ध में अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया था.
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सूबेदार अजीत सिंह
पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारतीय सेना ने पाकिस्तान के बुर्की इलाके पर 6 सितंबर 1965 को हमला किया था. बुर्की के करीब पहुंचने पर मजबूत स्थिति पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना पर मशीनगन से फायरिंग शुरू कर दी थी. दुश्मन के इस हमले की वजह से भारतीय सेना आगे नहीं बढ़ पा रही थी. आखिर में, इस मशीनगन को ख्त्म करने की जिम्मेदारी सूबेदार अजीत सिंह को दी गई. सूबेदार अजीत सिंह अपनी जान की परवाह किए बगैर दुश्मन के बंकर तक पहुंचे और मशीनगन की नाल पकड़कर खींच ली. इस दौरान, मशीनगन से निकला बस्ट फायर सूबेदार अजीत सिंह की छाती भेदता हुआ निकल गया. इस युद्ध में सूबेदार अजीत सिंह ने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया. उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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