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बच्चे को कोटा भेजना है? तो मेडिकल-इंजीनियरिंग की तैयारी से पहले करें ये काम, एक्सपर्ट की भी यही सलाह

न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. चंद्र शेखर सुशील ने बताया कैसे छात्रों से बातचीत करें माता पिता. (File Photo)

न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. चंद्र शेखर सुशील ने बताया कैसे छात्रों से बातचीत करें माता पिता. (File Photo)

Kota Coaching News: न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. चंद्र शेखर सुशील ने कहा कि माता-पिता अपने ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

कोचिंग के लिए कोटा भेजने वाले माता-पिता को बच्चों की पहले काउंसलिंग करनी चाहिए
बच्चों को कोचिंग केंद्र भेजने से पहले उनकी पेशेवर योग्यता जांच कराई जानी चाहिए
अक्सर छात्र अधिक पाठ्यक्रम और परिवार की अपेक्षाओं का दबाव झेल नहीं पाते

जयपुर. विशेषज्ञों ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी के लिए अपने बच्चों को कोचिंग केंद्र कोटा भेजने वाले माता-पिता से आग्रह किया है कि वे उन्हें यहां भेजने से पहले उनकी काउंसलिंग करें. कोटा में आत्महत्या के हालिया मामलों पर नजर रख रहे विशेषज्ञों एवं मनोचिकित्सकों ने कहा कि बच्चों को कोचिंग केंद्र भेजने से पहले उनकी पेशेवर योग्यता जांच कराई जानी चाहिए, मानसिक रूप से उन्हें मजबूत करना चाहिए और उन्हें रोजमर्रा के कामों के अनुसार ढलने की क्षमता विकसित करनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को बिना किसी तैयारी के प्रशिक्षण के लिए कोटा भेज देते हैं और उनका ध्यान केवल वित्तीय एवं साजो सामान की व्यवस्था करने पर होता है. हाल में कोचिंग संस्थानों के चार छात्रों की आत्महत्या की घटना ने उन छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में फिर से एक बहस छेड़ दी है, जो अक्सर अधिक पाठ्यक्रम और परिवार की अपेक्षाओं का दबाव झेल नहीं पाते.

‘एलन करियर इंस्टीट्यूट’ के प्रिंसिपल काउंसलर और छात्र व्यवहार विषय के विशेषज्ञ हरीश शर्मा ने कहा कि अधिकतम माता-पिता अपने बच्चों को लगभग शून्य तैयारी के साथ कोटा भेजते हैं और उनका ध्यान केवल वित्तीय एवं सामान की व्यवस्था करने पर होता है. शर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जब कोई बच्चा पांचवीं या छठी कक्षा में पढ़ रहा होता है, तभी माता-पिता तय कर लेते हैं कि दो साल या चार साल बाद उसे कोटा भेज दिया जाएगा. वे उसी के अनुसार बचत करना शुरू कर देते हैं या पहले से ही शहर जाने की योजना बनाना शुरू कर देते हैं, लेकिन वे कभी पेशेवर रूप से यह विश्लेषण करने की कोशिश नहीं करते कि क्या उनका बच्चा वास्तव में ऐसा करना चाहता है या वह ऐसा करने में सक्षम भी है या नहीं.’’

उन्होंने कहा कि ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझे बिना अधिक अंक लाने पर ध्यान देते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘10वीं या 12वीं कक्षा में 90 प्रतिशत से ऊपर अंक यह तय करने का मानक नहीं हो सकता कि बच्चा इंजीनियरिंग या चिकित्सा की पढ़ाई करने के योग्य है. हम पाते हैं कि यहां अक्सर ऐसे छात्र आते हैं, जो या तो माता-पिता के दबाव में यहां आते हैं या उन्हें पता नहीं होता कि उन्हें क्या पढ़ना पसंद है. ऐसे में व्यावसायिक योग्यता जांच मददगार हो सकती है.’’

यहां न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. चंद्र शेखर सुशील ने कहा कि माता-पिता अपने बच्चों को चिकित्सक और इंजीनियर बनाने का दबाव बनाने के बजाय उनकी काउंसलिंग कराएं और यह तय करें कि उनके लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है. उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं मानता कि छात्रों की आत्महत्या में कोचिंग संस्थानों की ज्यादा भूमिका होती है. हमें यह स्वीकार करना होगा कि जेईई और एनईईटी बहुत कठिन परीक्षाएं हैं और इसलिए शिक्षण और सीखने का स्तर भी समान स्तर का होना चाहिए.’

सुशील ने कहा ‘छात्रों को कोटा भेजने से पहले एप्टीट्यूड टेस्ट लेना बहुत महत्वपूर्ण है. उतना ही महत्वपूर्ण है कि बच्चे को कोटा भेजने से कम से कम दो साल पहले उसकी किसी तरह की काउंसलिंग और ग्रूमिंग की जाए क्योंकि इनमें से अधिकांश बच्चे पहले कभी घर से दूर नहीं रहे.’’ कोटा के एक अन्य प्रमुख कोचिंग संस्थान ‘रेजोनेंस’ के प्रबंध निदेशक और अकादमिक प्रमुख आर के वर्मा ने भी उनके विचारों का समर्थन किया और कहा कि माता-पिता एवं उनके बच्चों के बीच आपसी संवाद के उचित माध्यम पहले से विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा, ‘‘माता-पिता यह उम्मीद नहीं कर सकते कि जब बच्चा यहां आएगा तो वह अचानक उनसे बातचीत करना शुरू कर देगा. इस संबंध और सहजता के स्तर को पहले से विकसित करना होगा. हमने यह भी देखा है कि बच्चे यहां आने से पहले तक पूरी तरह से माता-पिता पर निर्भर होते हैं.’’

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उन्होंने कहा कि कोटा के कोचिंग सेंटरों में शैक्षणिक दबाव कोचिंग हब में आने से पहले छात्रों को आमतौर पर होने वाले दबाव से कहीं अधिक है. उन्होंने कहा, ‘अकादमिक दबाव जो अब तक वे जितना झेल रहे हैं, उससे कहीं अधिक है. इसके अलावा अपनी अलमारी व्यवस्थित रखना, धोने के लिए कपड़े भेजना, भोजन करने के लिए समय पर मेस में पहुंचना, खुद जागना – ऐसे नियमित कामों का जिम्मा खुद नहीं संभाल पाना – ये सब काम यहां आने से पहले बच्चों ने खुद नहीं किए होते हैं.’’

वर्मा कहते हैं, ‘‘ इसलिए यहां आकर बच्चा अचानक खुद को भंवर में फंसा पाता है. इसलिए हम माता-पिता को सलाह देंगे कि वे यहां भेजने से पहले अपने बच्चे को कम से कम दो साल पहले से गोद में बिठाकर खिलाना बंद करें.’’ कोटा में 11 दिसंबर को 12 घंटे में तीन छात्रों की आत्महत्या के बाद जिला एवं कोचिंग प्राधिकारी इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए सक्रिय हो गए हैं.

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