कैलाश खेर (Kailash Kher) एक इंडियन प्ले बैक सिंगर और म्यूजिक कंपोजर हैं. बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर के फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित कैलाश की गायिकी पर सूफी संगीत का काफी असर है. 7 जुलाई 1973 में पैदा हुए कैलाश ने पंडित भीमसेन जोशी, पंडित कुमार गंधर्व, पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर से लेकर नुसरत फतेह अली खान जैसे दिग्गज संगीतकारों की सोहबत में अपनी गायिकी को तराशा है. उत्तर प्रदेश के मेरठ में जन्में कैलाश को बचपन से ही संगीत का जुनून था. आज सफलता की कहानी लिख रहे कैलाश को अपने इस जुनून के लिए काफी संघर्ष भरे दिन देखने पड़े.
कहते हैं कि कैलाश खेर ने 4 साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया था. अपनी मीठी आवाज से सबको खुश कर देने वाले कैलाश ने जब गायिकी में ही करियर बनाने का फैसला किया तो परिवार ने साथ नहीं दिया. लेकिन जुनून ऐसा कि संगीत के लिए मात्र 14 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया. कैलाश घर छोड़ लोक संगीत के बारे में जानकारी इकट्ठी करने लगे और सीखने भी लगे. कैलाश के सामने जब रोटी-रोटी की समस्या आई तो बच्चों को संगीत सिखा कुछ पैसे कमाने लगे. तमाम दिक्कतों के साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की और साल 2001 में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मायानगरी का रुख किया.
मुंबई में काफी भटकने के बाद कैलाश खेर को मिला काम
कैलाश खेर मुंबई तो आ गए लेकिन लेकिन ना काम था ना पैसे थे. उनके पास कुछ था तो सिर्फ संगीत का ज्ञान और इसी का भरोसा. काम की तलाश में भटक रहे कैलाश को सबसे पहले एक एड के जिंगल में गाने का मौका म्यूजिक डायरेक्टर राम संपत्त ने दिया था. इस जिंगल्स में कैलाश की आवाज का जादू ऐसा चला कि उनके पास जिगल्स की लाइन लग गई.
‘रब्बा इश्क न होवे’ से खुली बॉलीवुड की राह
कैलाश खेर को मुंबई में पैर टिकाने की एक वजह मिल गई. इसके बाद लगातार कोशिश करते रहे और एक दिन फिल्म ‘अंदाज’ में सूफियाना गाना गाने का मौका मिल गया. ‘रब्बा इश्क न होवे’ गाने को कैलाश ने इस कदर डूब कर गाया कि जब फिल्म रिलीज हुई तो इस गाने ने धूम मचा दी. इसके बाद ‘अल्लाह के बंदे’ के बाद तो कैलाश सफलता की ऊंचाई छूने लगे. इसके बाद तो उनके पास ना गाने की कमी हुई ना ही दौलत की.
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