बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड फिल्मों ने एड्स को लेकर जागरूकता फैलाने का काम किया है.
मुंबई. एचआईवी/एड्स के लक्षणों, कारणों और बचने के उपायों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए दुनियाभर में 1 दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है. इस लाइलाज बीमारी के कारण अब तक दुनियाभर में लाखों लोगों की जान जा चुकी है. यूनाइटेड नेशंस प्रोग्राम ऑन एचआईवी/एड्स (UNAIDS) की रिपोर्ट ‘इन डेंजर: ग्लोबल एड्स अपडेट 2022’ के अनुसार अकेले साल 2021 में एचआईवी संक्रमण के 15 लाख नए मरीज सामने आए. इनमें से 6.5 लाख लोगों को असमय जिंदगी गंवानी पड़ी. दूसरे शब्दों में कहें तो हर दिन एचआईवी/एड्स के 4,000 नए मामले आ रहे हैं. वहीं, हर दिन 1,800 मौतें इस बीमारी की वजह से हो रही हैं.
दुनियाभर में जहां एक तरफ हजारों सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं एड्स अवेयरनेस प्रोग्राम चला रही हैं. वहीं, बॉलीवुड और हॉलीवुड ने भी एचआईवी/एड्स से जुड़े भ्रमों को तोड़ने के लिए कुछ फिल्में बनाकर अपना योगदान भी दिया है. इसके अलावा कोरियाई, चीनी फिल्म निर्माताओं ने इस दिशा में काम किया है. आज हम बात करेंगे 8 बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्मों के बारे में, जिनके जरिये एड्स से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को लेकर जागरूकता फैलाने की कवायद की गई. इन फिल्मों का सेंट्रल आइडिया एचआईवी/एड्स ही है.
‘फिलाडेल्फिया’ से प्रभावित थी ‘फिर मिलेंगे’
सलमान खान, शिल्पा शेट्टी और अभिषेक बच्चन स्टारर बॉलीवुड फिल्म ‘फिर मिलेंगे’ साल 2003 में रिलीज हुई थी. ये फिल्म डेंजेल वॉशिंगटन (Denzel Washington) और टॉम हेंक्स (Tom Hanks) स्टारर हॉलीवुड फिल्म ‘फिलाडेल्फिया’ से प्रभावित थी. इस फिल्म में एक कर्मचारी के एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने के बाद उसको गलत तरीके से नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. फिल्म में बताया गया कि एचआईवी पॉजिटिव होने से मरीज को नौकरी से निकाल देना गलत है. अगर उसकी परफॉर्मेंस पर बीमारी का कोई असर नहीं पड़ रहा है तो उसे काम करने का बेहतर माहौल दिया जाना चाहिए. फिल्म का डायरेक्शन रेवती ने किया था.
शानदार कोर्टरूम ड्रामा है ‘फिलाडेल्फिया’
हॉलीवुड मूवी ‘फिलाडेल्फिया’ (Philadelphia) एड्स के मरीज के साथ लोगों के घृणित व्यवहार और समलैंगिकता के प्रति समाज के डर पर चर्चा करती है. साल 1993 में आई इस फिल्म में डेंजेल वॉशिंगटन के किरदार जो मिलर को कोई भूल नहीं सकता. वह अपने क्लाइंट एंड्रयू बेकेट के लिए कोर्ट में बहस पर बहस करते हुए नजर आते हैं. टॉम हेंक्स ने फिल्म में एंड्रयू बेकेट का किरदार निभाया था. इस किरदार के लिए हेंक्स को बेस्ट एक्टर का एकेडमी अवार्ड मिला था. ये एड्स को लेकर बनाई गई सबसे यादगार फिल्मों में गिनी जाती है.
‘निदान’ में ब्लड चढ़ाने पर हुआ एड्स
महेश मांजरेकर की साल 2000 में आई फिल्म ‘निदान’ में एक किशोरी को ब्लड चढ़ाने पर एड्स हो जाता है. इस फिल्म की पूरी कहानी इसी लड़की के इर्दगिर्द घूमती है. जब उसके परिवार को उसकी बीमारी का पता चलता है तो वे ज्यादा से ज्यादा समय उसके साथ बिताना चाहते हैं. इस फिल्म में रीमा लागू, सुनील बरवे और शिवाजी साटम ने शानदार अभिनय किया.
‘माय ब्रदर…निखिल’ है सबसे बेहतरीन
ओनीर निर्देशित 2005 में आई ‘माय ब्रदर…निखिल’ एचआईवी/एड्स पर आई अब तक की सबसे बेहतरीन बॉलीवुड फिल्म मानी जाती है. ये फिल्म स्विमिंग चैंपियन निखिल चोपड़ा के इर्दगिर्द घूमती है. जब पता चलता है कि उसे एड्स है तो उसकी पूरी जिंदगी ही बदल जाती है. इस दौरान उसके साथ सिर्फ उसकी बहन अनामिका (जूही चावला) ही खड़ी रहती है. ये फिल्म समलैंगिक संबंधों को भी सामने रखती है.
‘जहीर’ एड्स के मुद्दे पर करती है बात
छह अलग-अलग डायरेक्टर्स की 10 शॉर्ट फिल्म को मिलाकर बनी ‘दर कहानियां’ में से एक ‘ज़हीर’ एड्स के मुद्दे पर ही है. इसे संजय गुप्ता ने डायरेक्ट किया था. मुख्य भूमिकाओं में दिया मिर्जा और मोज वाजपेयी हैं. इसमें सिया (दिया मिर्जा) की दोस्ती अपने पड़ोसी साहिल (मनोज वाजपेयी) से हो जाती है. दोस्ती बढ़ने पर साहिल सिया के साथ फिजिकल होना चाहता है तो वो इनकार कर देती है. एक दिन जब साहिल अपने दोस्तों के साथ एक बार जाता है तो उसे पता चलता है कि सिया बार डांसर है. बदहवास और नशे में धुत साहिल सिया का रेप कर देता ळै. बाद में पता चलता है कि सिया को एड्स था.
रॉन वुडरूफ की सच्ची कहानी है ‘डेलास बायर्स क्लब’
मैथ्यू मैक्कॉय और जार्ड लेटो को ‘डेलास बायर्स क्लब’ के लिए बेस्ट एक्टर और बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का एकेडमी अवॉर्ड 2014 मिला था. ये रॉन वुडरूफ की सच्ची कहानी पर अधारित थी. ये एड्सग्रस्त मरीजों को लेकर लोगों में फैली भ्रांतियों को बेहतरीन तरीके से दिखाती है. ये एक होमोफोबिक कैरेक्टर के जीवन में एड्स के बाद आए बदलावों की कहानी है.
एड्सग्रस्त पिता और बेटे की कहानी है ‘पॉजिटिव’
फरहान अख्तर की ‘पॉजिटिव’ उस आदमी की कहानी है, जिसे पता चलता है कि उसके पिता को कई साल ही एड्स हो चुका है. समय के साथ वो अपने पिता को मां के साथ धोखा करने के लिए माफ कर देता है ताकि आखिरी सांसें गिन रहे उसके पिता को आराम से मौत मिल सके. फिल्म में शबाना आज़मी और बमन ईरानी अहम भूमिकाओं में हैं.
ऐतिहासिक फिल्म है ‘पार्टिंग ग्लांसेस’
पार्टिंग ग्लांसेस एड्स पर बनी फिल्मों के इतिहास में खास जगह रखती है. 1984 में आई इस फिल्म के डायरेक्टर बिल शेरवुड ने जब ये फिल्म बनाई थी तो वो खुद एड्स के मरीज थे. शेरवुड इसके बाद कोई फिल्म नहीं बना सके क्योंकि एड्स के कारण 1990 में उनकी मृत्यु हो गई. ये फिल्म एक गे-कपल के जीवन के 24 घंटों पर आधारित है. इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत थी कि इसमें एड्स जैसे जटिल और स्याह मुद्दे को भी हंसते-हंसते बयां किया गया था.
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