FILM REVIEW : रिवेंज से भरी है 'शादी में जरूर आना'

शादी में जरूर आना फिल्म में राजकुमार राव और कीर्ति खरबंदा
इस फिल्म के बाद राजकुमार राव को आ सकते हैं शादी के प्रोपोजल.
- News18Hindi
- Last Updated: November 10, 2017, 10:03 AM IST
मिडिल क्लास घरों की 'सोच' बड़ी नाजुक सी होती है. छोटी-छोटी बातों से इसे आघात पहुंचता रहता है. जैसे बेटी ने शादी करने से मना किया तो बुरा मान जाती है, बेटे ने कह दिया कि मेरी बीवी नौकरी करेगी तो रूठ के बैठ जाती है.
इन घरों के मम्मी-पापा 'लोग क्या कहेंगे' के बारे में ज्यादा सोचते हैं और अपने आप के बारे में कम. खुद के साथ-साथ बच्चों को भी इसी फिलोसोफी का घूंट पिलाते हैं.
इस सोच पर एक फिल्म आई है. 'शादी में जरूर आना'. नाम देखकर फिल्म हल्के में लेना गलत होगा. क्योंकि फिल्म न सिर्फ एंटेरटेनिंग है बल्कि इमोशनल और ड्रामा से भरपूर है. सबसे जरूरी बात यह कि आप इससे खुद को रिलेट कर सकेंगे.
तो फिल्म की कहानी इतनी सी है कि सत्तू और आरती की हो रही है अरेंज मैरेज. दोनों पहली दफा मिलते हैं. एक-दूसरे को पसंद भी कर लेते हैं. लेकिन फिर आता है मुश्किलों का पहाड़. दोनों की शादी मंडप तक पहुंच कर टूट जाती है.आरती पढ़ने में एक दम होशियार लड़की है. बोले तो टॉपर है. ऑफिसर बनने के ख्वाब देखती है. पर पापाजी के कहने से शादी के लिए हां कर लेती है. मगर पीछे से मम्मी को फोन करके ताने भी मारती रहती है.
पहली मुलाकात में आरती सत्तू को अपनी दो ख्वाहिशें बताती है. पहली नौकरी करने की और दूसरी शराब पीने की. सत्तू तो पहली नजर के प्यार के ऐसे घायल हुए हैं कि आरती की हर बात मंजूर समझो.
सत्तू को आरती पिंक कलर में अच्छी लगती है और आरती को सत्तू का इंग्लिश वाला एक्सेंट क्यूट लगता है.
शादी से कई मुलाकातें होती हैं. धीरे-धीरे प्यार बढ़ता है. लेकिन बात एक जगह अटक जाती है. रस्मों-रिवाजों के बीच आरती को पता चलता है कि जिस सत्येंद्र मिश्रा से वो शादी करने जा रही है, उनके खानदान के तो उसूल ही अलग हैं.
सत्तू की मां का कहना है कि मिश्रा परिवार की बहुएं नौकरी नहीं करती. शादी वाले दिन ही आरती का सिविल सर्विस का रिजल्ट आ जाता है. मेन्स क्लियर करे बैठी आरती शादी करने और भागने के बीच फंस जाती है. और आखिर में प्यार के साथ समझौता करके चली जाती है. सत्तू मंडप में अकेला खड़ा रह जाता है. अपने सेहरा और क्लर्क की नौकरी के साथ.
यहीं से फिल्म का क्लाइमेक्स शुरू होता है. बदला और नफरत. चार साल बाद क्लर्क सत्तू डीएम बनकर आता है. आगे फिल्म में दोनों के बीच के टकराव की कहानी चलती है.
आगे की कहानी बता कर हम आपका मजा किरकिरा नहीं करना चाहते. इसलिए आप फिल्म खुद देखें. कैसे दो सिविल सर्वेंट्स आपस में प्यार और नफरत का संघर्ष लड़ते हैं.
वैसे तो फिल्म मजेदार है लेकिन दो-चार सीन हैं जो तनु वेड्स मनु से मिलते जुलते हैं. जैसे सत्तू का आरती के साथ जाकर झुमके खरीदवाना. आरती और उसकी बहन का छत पर सेक्स और शादी वाली बातें करना. उनका घरवालों से छुपकर भाई के साथ सिगरेट पीना. ऐसा लगता है जैसे हम तनु वेड्स मनु के सीन ही दोबारा देख रहे हैं. बस शक्लें बदल दी गई हों.
फिल्म में कहीं-कहीं लड़कियों की इमेज को स्टीरियोटाइप भी किया गया है. जैसे लड़कियां सिर्फ पैसे वाले लड़के से ही प्यार करती हैं. क्लर्क को छोड़कर कर आईएएस से ही शादी करने के ख्वाब देखती हैं. लड़के भावनाओं में बह जाते हैं और लड़कियां प्रैक्टिकल होकर सोचती हैं.
फिल्म की एंडिंग भी टिपिकल इंडियन सिनेमा जैसी ही है. दो परिवार वाले, जो एक-दूसरे के दुखों में तो मिठाइयां बंटवाते हैं, लेकिन आखिरी में एक जुट हो जाते हैं. जिस सत्तू और आरती की लव स्टोरी में रोड़ा बने हुए थे, उन दोनों को आखिरी में मिलाने में मदद भी खुद ही करते हैं.
फिल्म में राजकुमार राव छोटे शहर के एक टिपिकल शरीफ लड़के का रोल कर रहे हैं. जो मां-बाबूजी का कहना भी मानता है. क्लर्क का पेपर क्लियर करके नौकरी भी लग जाता है. घरवालों के कहने से अरैंज शादी करता है. जिसको पसंद करके आता है, उससे प्यार भी कर लेता है.
राजकुमार अपनी हर मूवी के बाद और निखरते जा रहे हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि बरेली की बर्फी के बाद उन्हें शादी के प्रपोजल आने लगे थे. अब लग रहा है इस फिल्म के बाद रिश्ते सीधे उनके घर पर ही पहुंचेंगे.
राजकुमार राव के अलावा कीर्ति खरबंदा का किरदार भी काफी इंटरेस्टिंग है. कीर्ति पहले से ही कन्नड इंडस्ट्री का एक जाना माना चेहरा है. अब इस फिल्म में बॉलीवुड में एक नया और फ्रेश चेहरा भी आ गया है. जो नटखट भी और समझदार भी.
फिल्म में कानपुर शहर का फ्लेवर है. हंसाने वाला ह्यूमर है. फिल्म के गाने बड़े अच्छे हैं.
'पल्लो लटके' तो इस बार शादी सीजन में डीजे पर खूब बजने वाला है.
हालांकि 'मेरा इंतकाम देखेगी' गाना बिना कॉन्टेक्स्ट के सुना जाए तो नारी विरोधी लग सकता है. लेकिन मूवी में इसे जिस तरह से दिखाया गया है वो जस्टिफाईड है. क्योंकि अपनी कहानी में ना ही सत्तू गलत है. ना ही आरती. कई बार परिस्थितियां ही ऐसी होती हैं कि प्यार नफरत में बदल सकता है और नफरत प्यार में.
फिल्म टोटल पैसा वसूल है. और हां, अगर रिश्तों में प्यार और इज्जत हो तो अरेंज शादियां इतनी भी बुरी नहीं होती. ऐसा हम नहीं राजकुमार राव का कहना है.
'शादी में जरूर आना' एक लाइट हार्टेड फिल्म है. अपने वीकेंड को अच्छा बनाने के लिए देखी जा सकती है.
इन घरों के मम्मी-पापा 'लोग क्या कहेंगे' के बारे में ज्यादा सोचते हैं और अपने आप के बारे में कम. खुद के साथ-साथ बच्चों को भी इसी फिलोसोफी का घूंट पिलाते हैं.
इस सोच पर एक फिल्म आई है. 'शादी में जरूर आना'. नाम देखकर फिल्म हल्के में लेना गलत होगा. क्योंकि फिल्म न सिर्फ एंटेरटेनिंग है बल्कि इमोशनल और ड्रामा से भरपूर है. सबसे जरूरी बात यह कि आप इससे खुद को रिलेट कर सकेंगे.
तो फिल्म की कहानी इतनी सी है कि सत्तू और आरती की हो रही है अरेंज मैरेज. दोनों पहली दफा मिलते हैं. एक-दूसरे को पसंद भी कर लेते हैं. लेकिन फिर आता है मुश्किलों का पहाड़. दोनों की शादी मंडप तक पहुंच कर टूट जाती है.आरती पढ़ने में एक दम होशियार लड़की है. बोले तो टॉपर है. ऑफिसर बनने के ख्वाब देखती है. पर पापाजी के कहने से शादी के लिए हां कर लेती है. मगर पीछे से मम्मी को फोन करके ताने भी मारती रहती है.
पहली मुलाकात में आरती सत्तू को अपनी दो ख्वाहिशें बताती है. पहली नौकरी करने की और दूसरी शराब पीने की. सत्तू तो पहली नजर के प्यार के ऐसे घायल हुए हैं कि आरती की हर बात मंजूर समझो.
सत्तू को आरती पिंक कलर में अच्छी लगती है और आरती को सत्तू का इंग्लिश वाला एक्सेंट क्यूट लगता है.
शादी से कई मुलाकातें होती हैं. धीरे-धीरे प्यार बढ़ता है. लेकिन बात एक जगह अटक जाती है. रस्मों-रिवाजों के बीच आरती को पता चलता है कि जिस सत्येंद्र मिश्रा से वो शादी करने जा रही है, उनके खानदान के तो उसूल ही अलग हैं.
सत्तू की मां का कहना है कि मिश्रा परिवार की बहुएं नौकरी नहीं करती. शादी वाले दिन ही आरती का सिविल सर्विस का रिजल्ट आ जाता है. मेन्स क्लियर करे बैठी आरती शादी करने और भागने के बीच फंस जाती है. और आखिर में प्यार के साथ समझौता करके चली जाती है. सत्तू मंडप में अकेला खड़ा रह जाता है. अपने सेहरा और क्लर्क की नौकरी के साथ.
यहीं से फिल्म का क्लाइमेक्स शुरू होता है. बदला और नफरत. चार साल बाद क्लर्क सत्तू डीएम बनकर आता है. आगे फिल्म में दोनों के बीच के टकराव की कहानी चलती है.
आगे की कहानी बता कर हम आपका मजा किरकिरा नहीं करना चाहते. इसलिए आप फिल्म खुद देखें. कैसे दो सिविल सर्वेंट्स आपस में प्यार और नफरत का संघर्ष लड़ते हैं.
वैसे तो फिल्म मजेदार है लेकिन दो-चार सीन हैं जो तनु वेड्स मनु से मिलते जुलते हैं. जैसे सत्तू का आरती के साथ जाकर झुमके खरीदवाना. आरती और उसकी बहन का छत पर सेक्स और शादी वाली बातें करना. उनका घरवालों से छुपकर भाई के साथ सिगरेट पीना. ऐसा लगता है जैसे हम तनु वेड्स मनु के सीन ही दोबारा देख रहे हैं. बस शक्लें बदल दी गई हों.
फिल्म में कहीं-कहीं लड़कियों की इमेज को स्टीरियोटाइप भी किया गया है. जैसे लड़कियां सिर्फ पैसे वाले लड़के से ही प्यार करती हैं. क्लर्क को छोड़कर कर आईएएस से ही शादी करने के ख्वाब देखती हैं. लड़के भावनाओं में बह जाते हैं और लड़कियां प्रैक्टिकल होकर सोचती हैं.
फिल्म की एंडिंग भी टिपिकल इंडियन सिनेमा जैसी ही है. दो परिवार वाले, जो एक-दूसरे के दुखों में तो मिठाइयां बंटवाते हैं, लेकिन आखिरी में एक जुट हो जाते हैं. जिस सत्तू और आरती की लव स्टोरी में रोड़ा बने हुए थे, उन दोनों को आखिरी में मिलाने में मदद भी खुद ही करते हैं.
फिल्म में राजकुमार राव छोटे शहर के एक टिपिकल शरीफ लड़के का रोल कर रहे हैं. जो मां-बाबूजी का कहना भी मानता है. क्लर्क का पेपर क्लियर करके नौकरी भी लग जाता है. घरवालों के कहने से अरैंज शादी करता है. जिसको पसंद करके आता है, उससे प्यार भी कर लेता है.
राजकुमार अपनी हर मूवी के बाद और निखरते जा रहे हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि बरेली की बर्फी के बाद उन्हें शादी के प्रपोजल आने लगे थे. अब लग रहा है इस फिल्म के बाद रिश्ते सीधे उनके घर पर ही पहुंचेंगे.
राजकुमार राव के अलावा कीर्ति खरबंदा का किरदार भी काफी इंटरेस्टिंग है. कीर्ति पहले से ही कन्नड इंडस्ट्री का एक जाना माना चेहरा है. अब इस फिल्म में बॉलीवुड में एक नया और फ्रेश चेहरा भी आ गया है. जो नटखट भी और समझदार भी.
फिल्म में कानपुर शहर का फ्लेवर है. हंसाने वाला ह्यूमर है. फिल्म के गाने बड़े अच्छे हैं.
'पल्लो लटके' तो इस बार शादी सीजन में डीजे पर खूब बजने वाला है.
हालांकि 'मेरा इंतकाम देखेगी' गाना बिना कॉन्टेक्स्ट के सुना जाए तो नारी विरोधी लग सकता है. लेकिन मूवी में इसे जिस तरह से दिखाया गया है वो जस्टिफाईड है. क्योंकि अपनी कहानी में ना ही सत्तू गलत है. ना ही आरती. कई बार परिस्थितियां ही ऐसी होती हैं कि प्यार नफरत में बदल सकता है और नफरत प्यार में.
फिल्म टोटल पैसा वसूल है. और हां, अगर रिश्तों में प्यार और इज्जत हो तो अरेंज शादियां इतनी भी बुरी नहीं होती. ऐसा हम नहीं राजकुमार राव का कहना है.
'शादी में जरूर आना' एक लाइट हार्टेड फिल्म है. अपने वीकेंड को अच्छा बनाने के लिए देखी जा सकती है.
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : | 2.5/5 |
स्क्रिनप्ल | : | 3/5 |
डायरेक्शन | : | 3/5 |
संगीत | : | 3/5 |