भारत ही नहीं बल्कि इंग्लैंड समेत पूरी दुनिया शेखर के डायरेक्शन की कायल है. (फोटो साभार-Instagram@shekharkapur)
मुंबई. बॉलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर शेखर कपूर आज अपना 77वां जन्मदिन मना रहे हैं. 6 दिसंबर 1945 को गुलाम भारत के लाहौर शहर में जन्मे शेखर कपूर के आजाद खयालों ने फिल्मी आसमान पर सफलता की अमिट इबारत लिख दी है.
शेखर की फिल्में आज हमेशा सिनेमा इतिहास में उनके योगदान के लिए जानी जाएंगी. रिश्ते में मशहूर फिल्म अभिनेता और सुपरस्टार देवानंद के भांजे शेखर कपूर को अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी और एक नहीं बल्कि तीन बार हताशा और निराशा का साया डराता रहा.
फिल्म मेकिंग एक पेशा नहीं बल्कि एडवेंचर है: शेखर कपूर
लेकिन शेखर के लिए फिल्म मेकिंग एक करियर नहीं बल्कि एक एडवेंचर रहा है. शेखर अपने शब्दों में कहते हैं कि ‘मेरे लिए फिल्म मेकिंग एक पेशा नहीं बल्कि एक एडवेंचर है. आप जैसे ही पहाड़ से उतरते हैं तो आपको वापस चढ़ने के लिए जूतों के फीते कस लेने चाहिए.’ लाहौर शहर में जन्मे शेखर कपूर के पिता कुलभूष्ण कपूर एक डॉक्टर थे और उनकी मां शीलाकांता कपूर मशहूर अभिनेता देवानंद की बहन थी. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद शेखर कपूर अपने तीन भाई बहनों और मां के साथ भारत आ गए. बचपन से ही अंतरिक्ष, चंद्रमा और आसमान में दिलचस्पी रखने वाले शेखर कपूर ने सिनेमा के आकाश पर अपना बसेरा बनाया.
पाकिस्तान से दिल्ली आया परिवार
बचपन से ही पढ़ाई में रुचि ना रखने वाले शेखर ने किसी तरह दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से शेखर ने स्नातक की पढ़ाई पूरी की. कॉलेज के दिनों में शेखर कपूर काफी फेमस हुआ करते थे. अपने मामा देवानंद की स्टार्डम का फायदा उठाकर शेखर दिनभर कॉलेज की खूबसूरत लड़कियों के बीच खुश रहते थे.
कॉलेज पूरा करने के बाद शेखर चार्टेड अकाउंटेंट की पढ़ाई करने लंदन चले गए. लंदन में शेखर का दिल एक हसीन लड़की पर आ गया. शेखर ने उस लड़की को इंप्रेस करने के लिए फोटोग्राफी सीखी और कैमरा खरीद लिया. ZEE TV के प्रोग्राम ‘जीना इसी का नाम है’ में दिए इंटरव्यू में शेखर बताते हैं कि ‘लड़की को लुभाने के लिए कैमरा खरीदा. लंदन में कैमरा खरीदते ही फोटोग्राफी शुरू कर दी. बाद में लड़की तो चली गई लेकिन कैमरा साथ रह गया.’ यहीं से शेखर का कैमरे के प्रति प्यार जाग गया और वे लंदन से दिल्ली लौट आए.
लंदन से लौटे दिल्ली फिर पहुंच गए मुंबई
दिल्ली आने के बाद शेखर ने मुंबई जाने का फैसला लिया. शेखर के मामा बॉलीवुड के बड़े सुपरस्टार थे तो ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा और फिल्म ‘इश्क इश्क इश्क’ में छोटे किरदार के जरिए ब्रेक मिल गया. साल 1974 में आई फिल्म ‘इश्क इश्क इश्क’ बुरी तरह फ्लॉप रही. इसके बाद 1975 में शेखर कपूर के फिल्म ‘जान हाजिर है’ जरिए हीरो के तौर पर लॉन्च किया गया.
यह फिल्म भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई. इसके बाद एक्टिंग में तीसरी बार अपनी किस्मत आजमाने के लिए साल 1978 में आई फिल्म ‘टूटे खिलौने’ में बतौर हीरो काम किया. शबाना आजमी के साथ बनी यह फिल्म भी शेखर के सपनों को तोड़ गई. कैफी आजमी ने फिल्म के गाने लिखे और बप्पी लहरी जैसे दिग्गजों के बाद भी यह फिल्म फ्लॉप रही. इसके बाद शेखर ने एक्टिंग की वजाए डायरेक्शन में हाथ आजमाने का फैसला लिया.
फिल्म मासूम ने बदल दी सारी कहानी
शेखर कपूर ने बतौर डायरेक्टर साल 1983 में मासूम नाम की फिल्म बनाई. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर दिया और शेखर के डायरेक्शन ने प्रोड्यूसर्स का दिल जीत लिया. फिर साल आया 1987 का और शेखर ने फिल्म बनाई मिस्टर इंडिया. इस फिल्म ने सफलता की ऐसी इबारत लिखी कि शेखर देशभर में छा गए. इसके बाद शेखर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1994 में आई शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन (Bandit Queen) आज भी भारतीय सिनेमा की जैम (Jewel and Gem) मानी जाती है.
शेखर कपूर ने इंग्लैंड में जाकर भी अपने डायरेक्शन का दीवाना बनाया. साल 1998 में आई फिल्म एलिजाबेथ (Elizabeth) की लीड एक्ट्रेस Cate Blanchett को ऑस्कर में नॉमिनेट किया गया. साथ ही शेखर कपूर के डायरेक्शन की धमक भी पूरी दुनिया में गूंजी. अब शेखर केवल बॉलीवुड ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपने डायरेक्शन कौशल के लिए जाने जाते हैं. शेखर कपूर आज 77 साल के हो गए हैं. बॉलीवुड समेत पूरी दुनिया के दिग्गजों ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी है.
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Tags: Bollywood news, Shekhar Kapoor
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