'लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो...' या 'नैना बरसें रिमझिम, रिमझिम...' जैसे गीतों के पीछे जो शख्स थे, उनका नाम था मदन मोहन.
हिंदी सिनेमा को 50 से 70 के दशक के बीच बेहतरीन गाने देने वाले कंपोजर. बगदाद में जन्मे. ईराक की आज़ादी के बाद भारत आ गये.
नरगिस की मां जद्दनबाई को सुनते-सुनते ही म्यूजिक सीखने लगे. दो साल आर्मी में भी रहे. आकाशवाणी में प्रसारक भी बने. फिर एक्टर बनने मुंबई आ गये. गाने भी गाये पर अंत में पहचाने गये एक म्यूजिक कंपोजर के रूप में. मदन मोहन, बॉडी बिल्डिंग के शौकीन. दारा सिंह को यह कहने वाले कि आपसे बेहतर मसल्स मेरी हैं. खेलों के शौकीन. क्रिकेट बेहतरीन खेलने वाले. और तैराकी के साथ ही बॉलरूम डांस करने वाले. बिलियर्ड्स के उस्ताद मदन मोहन. लेकिन इतने सारे फनों के उस्ताद होने के बाद भी कई बार उदास और शराब में डूबे रहते. वजह उनका मानना कि उनके म्यूजिक को वह मुकाम नहीं मिला, जो मिलना चाहिये था.
हालांकि मदन मोहन का म्यूजिक आज के दौर में भी उतनी ही ताजगी और आनंद से भरा है. लेकिन यह बात आज मदन मोहन को नहीं बताई जा सकती कि आज भी वे लाखों भारतीयों के दिलों पर राज कर रहे हैं.
अपने म्यूजिक के नंबर वन न बनने के गम में आज ही के दिन यानी 14 जुलाई को 1975 में उनका निधन हो गया. उनके पार्थिव शरीर को अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना और राजेंद्र कुमार ने कंधा दिया. पर ऐसा क्या रहा कि आज भी सर्वकालिक महान माना जाने वाला उनका संगीत नंबर वन नहीं माना गया?
ये रही वजहें कि मदन मोहन नंबर 1 म्यूजिक कंपोजर नहीं बन सके
बॉलीवुड म्यूजिक के जानकार अनुराग भारद्वाज बताते हैं कि क्या संभावित कारण रहे जिनके चलते मदन मोहन कभी नंबर एक म्यूजिक डायरेक्टर नहीं बन सके. वे कहते हैं कि जब मदन मोहन म्यूजिक कंपोज कर रहे थे तो उनके दौर में ही नौशाद, शंकर-जयकिशन, एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, सी. रामचंद्र भी म्यूजिक कंपोजर थे. और पश्चिम में एल्विस प्रेस्ली, फ्रैंक सिनात्रा, पॉल एंका और बीटल्स आ चुके थे. ऐसे में तीन बातें थीं-
1. जैसा कि बताया गया मदन मोहन के दौर में भारतीय सिनेमा के सर्वकालिक महान नौशाद और सी. रामचंद्र जैसे संगीतकार भी थे. तो कई बार सारी अच्छी फिल्में इन्हीं की झोली में चली जाती थीं. इससे भी उनके अवॉर्ड्स और रैंकिंग पर असर हुआ.
2. सभी कंपोजर अपनी धुनों के साथ कुछ-कुछ वेस्टर्न प्रयोग भी करने लगे. कुछ मामलों में किसी वेस्टर्न धुन से इंस्पायर भी होने लगे पर मदन मोहन इंडियन म्यूजिक की ही डोर थामे रहे. ऐसे में बहुत बेहतरीन गीत देने के बाद भी वे न ही अवॉर्ड्स अपनी झोली में डाल सके और न ही नंबर वन बन पाये.
3. मदन मोहन के संबंध बॉलीवुड में भले ही बेहद अंतरंगी रहे हों पर वे अपने काम को लेकर उतने मुखर नहीं थे. बेहतरीन काम करने के बावजूद उन्होंने कभी अपने संगीत का प्रचार-प्रसार नहीं किया. इसने भी उनके करियर पर असर डाला.

मोहम्मद रफी के साथ मदन मोहन
जब अवॉर्ड लेने के लिये संजीव कुमार ने मदन मोहन को मनाया
शैलेश चतुर्वेदी, फर्स्टपोस्ट पर लिखते हैं कि दौर में गीतों की लोकप्रियता के लिए बिनाका गीतमाला बहुत अहम था. अमीन सायानी इसे पेश करते थे. मदन मोहन का कोई गीत कभी नंबर वन नहीं रहा. वो कभी बाजार के संगीतकार नहीं बन पाए. उन्हें कभी फिल्मफेयर अवॉर्ड नहीं मिला. उनके बेटे संजीव कोहली ने एक इंटरव्यू में कहा था कि गीतमाला में अनपढ़ फिल्म का गीत आपकी नजरों ने समझा नंबर दो पर आया. यही उनका बेस्ट था. मदन मोहन के दिल में हमेशा ये कसक रही कि वो नंबर वन नहीं हो पाए. गीतमाला में भी और फिल्मफेयर में भी. वो कसक इस कदर थी कि जब फिल्म दस्तक के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला, तो उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. संजीव कुमार ने उन्हें मनाया. उनसे कहा कि अगर आप नहीं लेंगे, तो मैं भी अवॉर्ड लेने नहीं जाऊंगा. उसके बाद ही मदन मोहन अवॉर्ड लेने गए.
बहरहाल वह भले ही बाजार की दुनिया के नंबर वन नहीं रहे हों, लेकिन संगीत प्रेमियों के दिलों में उनकी जो जगह थी, वो बीतते समय के साथ और मजबूत ही हुई है. कहा जाता है कि मदन मोहन ने एक गीत लता मंगेशकर से भी बेहतरीन गाया था. वह गीत है 'माए री...' लता जी का गीत तो आपने सुन ही रखा है, सुनिये मदन मोहन की आवाज में 'दस्तक' फिल्म का गीत माए री..
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Tags: Bollywood, Filmfare, S.D. Burman
FIRST PUBLISHED : July 14, 2018, 16:19 IST