'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया' में अजय देवगन ने स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक की भूमिका निभाई है.
Bhuj: The Pride of India Movie Review: 15 अगस्त को इस साल हम आजादी का 75वां जश्न मनाएंगे और ऐसे में बॉलीवुड की दो देशभक्ति की भावना से भरी फिल्में रिलीज हो चुकी हैं. करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन की ‘शेरशाह’ एक दिन पहले अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है और कुछ देर पहले ही अजय देवगन (Ajay Devgn) के प्रोडक्शन की मल्टी स्टारर फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ (Bhuj The Pride of India) डिज्नी हॉटस्टार प्लस पर रिलीज हो गई है. ये फिल्म 1971 में पाकिस्तान की भारत के कच्छ पर कब्जे की नाकाम कोशिश को बयां करती है. ये कहानी सिर्फ सेना ही नहीं, बल्कि नागरिकों के जज्बे और उनकी बहादुरी की कहानी भी दिखाती है. जाने आखिर कैसी है ये फिल्म.
कहानी: 1971 की लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सेना ने हमला कर भारतीय वायुसेना के भुज एयरबेस पर हमला कर उसे पूरी तरह बर्बाद कर दिया था. इतना नहीं, कच्छ पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने कच्छ को हिंदुस्तान से जोड़ने वाले सभी रास्तों को भी बर्बाद कर दिया था. ऐसे में भुज के एक गांव मधापुर की 300 महिलाओं ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा कर वायुसेना के इस बेस की हवाई पट्टी को महज 72 घंटे में फिर से बनाने का काम किया था. इन महिलाओं को अपनी मदद के लिए तैयार किया था स्कॉर्डन लीडर विजय कारर्णिक (अजय देवगन) ने. ये युद्ध की एक ऐसी कहानी है जो आपके दिल को गर्व की भावना से भर देगी.
निर्देशक अभिषेक दूधइया की फिल्म ‘भुज’ यूं तो एक मल्टी स्टारर फिल्म है, जिसमें संजय दत्त से लेकर शरद केलकर और सोनाक्षी सिन्हा तक कई स्टार हैं, लेकिन ये फिल्म पूरी तरह अजय देवगन को फोकस में रखकर बनाई गई है. वहीं हीरो हैं और ये साफ है. फिल्म की शुरुआत में ही बता दिया गय है कि ये भले ही सच्ची घटनाओं पर बनी फिल्म है लेकिन इसमें ‘मनोरंजन के आधार पर पटकथा लेखन में स्वतंत्रता’ ली गई है.
कहानी की शुरुआत ही होती है पाकिस्तान की हुकूमत के मनसूबों को दिखाते डायलॉग और भुज एयरबेस पर पाकिस्तानी सेना के हमले से. इस हवाई हमले से बेखबर भारतीय वायुसेना के जवान अचानक जान बचाने के लिए भागते हैं और कुछ लड़ाई में जुट जाते हैं. फर्स्ट हाफ में काफी देर तक कहानी को वॉइस ऑवर से ही समझाया जाता है, जो कनेक्ट पैदा ही नहीं कर पाती.
दरअसल इस फिल्म में सबसे बड़ी कमी हैं असलीयत की. सेट से लेकर किरदारों के डायलॉग तक, सब कुछ नकली और बनावटी लग रहा है. सेना से जुड़ी फिल्म बनाने का मतलब ये कतई नहीं है कि आप जब तक देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषण न दें तब तक आप सैनिक नहीं हैं, जो इस फिल्म में साफ देखा जा सकता है. चारों तरफ से देशभक्ति के डायलॉग्स की भरमार है. नोरा फतेही का सीक्वेंस तो बहुत ज्यादा ही बनावटी लगता है.
लेकिन इस सब के बीच भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अजय देवगन और शरद केलकर अपने किरदारों में चमके हैं. शरद केलकर काफी ऑरिजनल और अपीलिंग नजर आए हैं. वहीं बाकी किरदारों के हिस्से में भी भारीभरकम डायलॉग्स हैं जो उन्होंने उसी अंदाज में बोले हैं.
कहानी में बहुत सारे इवेंट एक साथ हो रहे हैं, और इसी लिए कई बार किरदारों को और इवेंट्स को समझाने के लिए वॉइस-ऑवर का इस्तेमाल किया गया है. यही वजह है कि आपको लगातार समझते रहना पड़ता है कि आखिर क्या चल रहा है. हालांकि फिल्म का सैकंड हाफ बढ़िया है, जिसमें असली लड़ाई और असली इवेंट साफ नजर आते हैं. इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी ये हैं कि ये सच्ची घटना से प्रेरित एक ‘मसाला फिल्म’ जिसमें असली कहानी कम और मसाला ही मसाला हावी हो गया है. देश में इस समय देशभक्ति की लहर खूब जोर-शोर से चल रही है और ऐसे में बॉलीवुड भी उसे भुनाने में पीछे नहीं रहता. ‘भुज’ भी ऐसी ही कोशिश है, बस इस मसाला एक्शन ड्रामा में असलीयत इतनी कम है कि आप ‘प्राउड’ महसूस ही नहीं कर पाते.
अगर इस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप देशभक्ति की भावना से भरपूर कोई कहानी देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आप जरूर देखें. साथ ही 1971 की लड़ाई के दौरान 300 महिलाओं के जज्बे की कहानी को सेना की बहादुरी की ये कहानी जरूर देखी जानी चाहिए. हां अगर ये कहानी सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन को ध्यान में रख कर नहीं बनाई गई होती और इसमें कुछ कनेक्ट पैदा करने की कोशिश की जाती तो ये एक शानदार फिल्म हो सकती थी. मेरी तरफ से इस फिल्म को 2.5 स्टार.
कहानी | : | 2.5/5 |
स्क्रिनप्ल | : | 2.5/5 |
डायरेक्शन | : | 2.5/5 |
संगीत | : | 2.5/5 |
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Tags: Ajay Devgn, Bhuj The Pride of India, Sanjay dutt, Sonakshi sinha
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