Pagalpanti Movie Review: इस फिल्म को देखना भी 'पागलपंती' ही होगी साहब

फिल्म 'पागलपंती' शुक्रवार को रिलीज हो गई है.
मैं निर्देशक अनीस बज्मी (Anees Bazmee) को पूरे 100 में से 100 नंबर इस बात के लिए देती हूं कि उन्होंने इस फिल्म की पूरी सच्चाई इसके टाइटल में ही बता दी है. सिर्फ और सिर्फ पागलपंती (Pagalpanti) में ही कोई ऐसी फिल्म बना सकता है.
- News18Hindi
- Last Updated: November 22, 2019, 8:34 PM IST
नई दिल्ली: निर्देशक अनीस बज्मी (Anees Bazmee) की मल्टी स्टारर फिल्म 'पागल पंती' (Pagalpanti) आज रिलीज हो गई है. कॉमेडी फिल्में अक्सर दर्शकों को सिनेमाघरों तक जरूर खींचती हैं और अनीस बज्मी की बात करें तो वह पिछले कुछ समय से लगातार कॉमेडी फिल्मों पर ही हाथ आजमा रहे हैं. अपने लकी चार्म अनिल कपूर के अलावा उनकी इस फिल्म में इस बार जॉन अब्राहम, (John Abraham) पुलकित सम्राट (Pulkit Samrat) और अरशद वारसी (Arshad Warsi) की जोड़ी पर्दे पर साथ नजर आ रही है. अगर आप भी इस वीकेंड पर इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं तो ये रिव्यू (Pagalpanti Movie Review) आपकी काफी मदद कर सकता है.
कहानी: 'पागल पंती' की कहानी तीन ऐसे दोस्तों की कहानी है, जो अपनी मनहूसीयत से परेशान हैं. इनमें से सबसे बड़ा वाला पनौती है जॉन अब्राहम, जो जिस काम को भी हाथ लगाता है, उसे बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता. ये तीनों दोस्त टकराते हैं एक डॉन जीजा साले की जोड़ी से और उन्हीं के चंगुल में फंस जाते हैं. बस फिर इस चंगुल से निकलने की ये तीनों कोशिश करते हैं और फिल्म चलती चली जाती है.

अनीस बज्मी, ये पागल पंती क्योंइस फिल्म पर कुछ भी बात करने से पहले मैं साफ कर दूं कि मैं निर्देशक अनीस बज्मी को पूरे 100 में से 100 नंबर इस बात के लिए देती हूं कि उन्होंने इस फिल्म की पूरी सच्चाई इसके टाइटल में ही बता दी है. सिर्फ और सिर्फ पागलपंती में ही कोई ऐसी फिल्म बना सकता है. फिल्म में कब क्या हो रहा है, इसका अंदाजा न तो दर्शकों को लगा है और शायद एडिटिंग में भी नहीं सोचा गया. सोचिए एक सीन में हीरो की दुकान में आग लगती है और अगले ही सीन में हीरो-हीरोइन एक दूसरे से लिपटकर डांस करने लगते हैं...

पागल पंती में चुटकुलों से लेकर, हॉरर एंगल, हॉट लुक में डांस करती हंसीनाएं, देशभक्ति का एंगल.. शायद सब कुछ घुसाने की कोशिश की गई है, लेकिन मुसीबत ये है एक फिल्म के तौर पर कुछ भी काम नहीं कर पाया. कई सीन बहुत अधूरे से लगते हैं तो कई सीन अचानक शुरू हो जाते हैं. सिनेमा हॉल में बैठकर आप अपना सर भी पकड़ सकते हैं कि आखिर ये हो क्या रहा है. 'पागल पंती' टाइटल के साथ ही अनीस बज्मी ने इस फिल्म के स्लोगन में कहा था कि 'दिमाग मत लगाना', इस आधार पर इस फिल्म से बहुत ज्यादा कंटेंट की उम्मीद भी नहीं थी, लेकिन मुसीबत ये है कि यहां पागल पंती भी हंसा नहीं पाई.
इतना सब जब खराब हो, तो अच्छे से अच्छा एक्टर भी किसी फिल्म को सिर्फ अपने कंधे पर नहीं ले जा सकता. अनिल कपूर को हम 'वेलकम' में मजनू भाई के मजेदार किरदार में देख चुके हैं. इस फिल्म में भी उनसे कुछ ऐसा ही कराने की कोशिश है पर वैसा मजेदार किरदार 'वाइफाई' के तौर पर तैयार नहीं हुआ. अरशद वारसी की टाइमिंग अच्छी है, लेकिन वो इससे पहले हर फिल्म में ऐसा ही कुछ करते देखे गए हैं. कुछ भी नया नहीं है. बाकी सभी किरदार फिल्म में हैं क्योंकि बहुत सारे एक्टर्स दिखने चाहिए बस.

हीरोइनें इस फिल्म में बस गानों में दिखने और ग्लैमरक का तड़का लगाने के लिए ही हैं. एक सौरभ शुक्ला का किरदार है, जिसे देखकर कुछ देर थिएटर्स में टिका जा सकता है. इतनी तारीफ के बाद आप समझ ही गए होंगे कि आपको वीकेंड पर इस फिल्म में जाना चाहिए या नहीं. बाकी मेरी तरफ से इस फिल्म को 1.5 स्टार.
कहानी: 'पागल पंती' की कहानी तीन ऐसे दोस्तों की कहानी है, जो अपनी मनहूसीयत से परेशान हैं. इनमें से सबसे बड़ा वाला पनौती है जॉन अब्राहम, जो जिस काम को भी हाथ लगाता है, उसे बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता. ये तीनों दोस्त टकराते हैं एक डॉन जीजा साले की जोड़ी से और उन्हीं के चंगुल में फंस जाते हैं. बस फिर इस चंगुल से निकलने की ये तीनों कोशिश करते हैं और फिल्म चलती चली जाती है.

अनीस बज्मी, ये पागल पंती क्योंइस फिल्म पर कुछ भी बात करने से पहले मैं साफ कर दूं कि मैं निर्देशक अनीस बज्मी को पूरे 100 में से 100 नंबर इस बात के लिए देती हूं कि उन्होंने इस फिल्म की पूरी सच्चाई इसके टाइटल में ही बता दी है. सिर्फ और सिर्फ पागलपंती में ही कोई ऐसी फिल्म बना सकता है. फिल्म में कब क्या हो रहा है, इसका अंदाजा न तो दर्शकों को लगा है और शायद एडिटिंग में भी नहीं सोचा गया. सोचिए एक सीन में हीरो की दुकान में आग लगती है और अगले ही सीन में हीरो-हीरोइन एक दूसरे से लिपटकर डांस करने लगते हैं...

पागल पंती में चुटकुलों से लेकर, हॉरर एंगल, हॉट लुक में डांस करती हंसीनाएं, देशभक्ति का एंगल.. शायद सब कुछ घुसाने की कोशिश की गई है, लेकिन मुसीबत ये है एक फिल्म के तौर पर कुछ भी काम नहीं कर पाया. कई सीन बहुत अधूरे से लगते हैं तो कई सीन अचानक शुरू हो जाते हैं. सिनेमा हॉल में बैठकर आप अपना सर भी पकड़ सकते हैं कि आखिर ये हो क्या रहा है. 'पागल पंती' टाइटल के साथ ही अनीस बज्मी ने इस फिल्म के स्लोगन में कहा था कि 'दिमाग मत लगाना', इस आधार पर इस फिल्म से बहुत ज्यादा कंटेंट की उम्मीद भी नहीं थी, लेकिन मुसीबत ये है कि यहां पागल पंती भी हंसा नहीं पाई.
Loading...

इतना सब जब खराब हो, तो अच्छे से अच्छा एक्टर भी किसी फिल्म को सिर्फ अपने कंधे पर नहीं ले जा सकता. अनिल कपूर को हम 'वेलकम' में मजनू भाई के मजेदार किरदार में देख चुके हैं. इस फिल्म में भी उनसे कुछ ऐसा ही कराने की कोशिश है पर वैसा मजेदार किरदार 'वाइफाई' के तौर पर तैयार नहीं हुआ. अरशद वारसी की टाइमिंग अच्छी है, लेकिन वो इससे पहले हर फिल्म में ऐसा ही कुछ करते देखे गए हैं. कुछ भी नया नहीं है. बाकी सभी किरदार फिल्म में हैं क्योंकि बहुत सारे एक्टर्स दिखने चाहिए बस.

हीरोइनें इस फिल्म में बस गानों में दिखने और ग्लैमरक का तड़का लगाने के लिए ही हैं. एक सौरभ शुक्ला का किरदार है, जिसे देखकर कुछ देर थिएटर्स में टिका जा सकता है. इतनी तारीफ के बाद आप समझ ही गए होंगे कि आपको वीकेंड पर इस फिल्म में जाना चाहिए या नहीं. बाकी मेरी तरफ से इस फिल्म को 1.5 स्टार.
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : |
1/5
|
स्क्रिनप्ल | : |
1/5
|
डायरेक्शन | : |
1/5
|
संगीत | : |
1.5/5
|
News18 Hindi पर सबसे पहले Hindi News पढ़ने के लिए हमें यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें. देखिए फ़िल्म रिव्यू से जुड़ी लेटेस्ट खबरें.
First published: November 22, 2019, 8:30 PM IST
Loading...