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Infiesto Film Review : स्पेनिश फिल्म में कोविड को भुनाने की गई है असफल कोशिश

फिल्म इन्फिएस्तो में बहुत सी ऐसी बातें हैं नहीं जिसके लिए दर्शक इसे देखना चाहेंगे

फिल्म इन्फिएस्तो में बहुत सी ऐसी बातें हैं नहीं जिसके लिए दर्शक इसे देखना चाहेंगे

नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ इस फिल्म इन्फिएस्टो में बहुत सी ऐसी बातें हैं नहीं जिसके लिए दर्शक इसे देखना चाहेंगे, लेकिन ये जो ...अधिक पढ़ें

नई दिल्ली. कोविड एक ऐसी विचित्र बीमारी बन कर इंसानों के सामने आयी जिसमें उनके अस्तित्व पर तो संकट डाला ही इसके साथ लोगों की पूरी पूरी सोच को बदल डाला. अनिश्चितता को अब ज़िन्दगी का हिस्सा बना के रख दिया है इस बीमारी में. कोविड के शुरुआती दिनों में बसी एक कहानी में सीरियल किलर वाला ट्रैक घुसाया जाए तो कहानी में कोई नयापन आ जायेगा ऐसा लगता तो नहीं है क्योंकि दो नेगेटिव मिल कर एक पॉजिटिव को जन्म नहीं दे सकते. यही हश्र स्पेनिश फिल्म इन्फिएस्टो का हुआ है. इन्फिएस्टो वैसे तो प्लेग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है लेकिन अब इसे किसी भी संक्रमण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

फिल्म की कहानी
इन्फिएस्टो में सैमुएल गार्सिया (इज़ैक फेरिज़) और मार्ता कास्त्रो (इरिया डेल रिओ) को एक सीरियल किलर का केस हाथ लगता है, कोविड वाले लॉक डाउन के पहले दिन. इस केस की तफ्तीश करते करते वो कई जगहों और कई लोगों से मिलते हैं, पूछ ताछ करते हैं. दोनों डिटेक्टिव कई जगह पर छापा मारते हैं, गाडी चला कर अलग अलग जगह जा कर केस को सुलझाने की कोशिश करते हैं. सैमुएल की माँ और मार्ता का बॉयफ्रेंड कोविड की वजह से आइसोलेशन में है लेकिन दोनों डिटेक्टिव बिना ग्लव्स के सिर्फ मास्क पहने केस को सुलझाने की कोशिश करते रहते हैं. ऐसा करते रहने से फिल्म का लगभग 75% भाग निकल जाता है. फिर गुत्थी सुलझ जाती है. फिल्म ख़त्म हो जाती है.

एक सीरियल किलर की कहानी है
आम दर्शक की दृष्टि से देखें तो ये एक सीरियल किलर की कहानी है. इसमें लोकेशन, कहानी की रफ़्तार, डिटेक्टिव्स का गेटअप, म्यूजिक, कैमरा एंगल्स…ऐसी सब बातें काफी हद तक माहौल बना देती हैं. डेविड फिंचर की फिल्म सेवन में भी इसी तरह की सीरियल किलिंग का प्लाट था, और इन्फिएस्तो को देख कर उसकी याद आना स्वाभाविक है क्योंकि बहुत कुछ वहीँ से उधार लिया हुआ दिखता है खास कर रफ्तार, कैमरा एंगल्स और शॉट्स. इन्फिएस्तो में ये कोविड का एंगल क्यों लिया गया है ये समझना मुश्किल है. क्या बगैर इस बीमारी या लॉक डाउन के ये कहानी बनायीं जा सकती थी, बिलकुल. यदि दोनों लीड कैरेक्टर्स को किसी बैकस्टोरी की ज़रुरत थी, नहीं. टेक्निकल गलतियों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता था, नहीं. तो कैसे दोनों डिटेक्टिव, डीमन के ट्रक में मास्क लगा कर तो चढ़ते हैं लेकिन ग्लव्स नहीं लगाते? किसी जांच में तो मास्क्स भी गायब हैं. पुलिस स्टेशन में तो आधे से ज़्यादा लोग बिना मास्क के घूम रहे होते हैं. कोविड की उपयोगिता ही नहीं थी. जहाँ तक समझ है उसके हिसाब से किसी भी क्राइम सीन को बगैर ग्लव्स के जांचा नहीं जा सकता, तो फिर ये मेहेरबानी क्यों?

 यहां ठगा हुआ महसूस करते हैं
इन्फिएस्तो की रफ़्तार धीमी है और थोड़ी थोड़ी देर में किसी भी सीरियल किलर वाली फिल्म की तरह कुछ न कुछ सबूत मिलता रहता है. लोकेशन बढ़िया हैं, लेकिन काफी डिप्रेसिंग हैं. जंगल, नदी, पहाड़ वाले इलाकों में कोविड कैसे पहुंच पाया, ये शोध का विषय बन सकता है. फिल्म का अंत, कायदे से खूंखार और एक बड़े रहस्य से पर्दा उठाने वाला होना चाहिए था और डिटेक्टिव द्वय को असली कातिल तक पहुंचने में मशक्कत लगनी चाहिए थी, गुत्थी सुलझानी चाहिए थी. अफ़सोस, ऐसा कुछ नहीं होता. कहानी मंथर गति से, सीन दर सीन आगे बढ़ती जाती है और फिर ख़त्म हो जाती है. दर्शक ठगा हुआ महसूस करते हैं. फिल्म को अवॉइड करें तो ही बेहतर है.

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